नई दिल्ली: एक पर्यावरण प्रेमी कार्यकर्ता ने उत्तर प्रदेश में ‘अवैध’ बूचड़खाने के खिलाफ आज राष्ट्रीय हरित अधिकरण का रूख करते हुए आरोप लगाया कि ये सभी बिना निस्तारित किए अवजल खुली नाली में बहा देते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं.
एनजीटी के 2015 के आदेश की तामील करने की मांग
न्यायमूर्ति जवाद रहीम की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध याचिका में राज्य में अवैध बूचड़खाना बंद करने के एनजीटी के 2015 के आदेश की तामील करने की मांग भी की गयी है. याचिका में मामले में यूपी सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य भूजल विभाग और अन्य को पक्ष बनाया गया है.
वकील अनुजा चौहान के जरिए दाखिल की गयी याचिका में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में चार ‘‘अवैध’’ बूचड़खाने के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गयी है. उन्होंने आरोप लगाया है कि बूचड़खाने से जानवरों के अपशिष्ट और मृत जानवरों के खून से मिला अवजल बिना निस्तारित किए खुले नाले में बहा दिया जाता है जो गंगा और यमुना की सहायक नदियों में जाकर उन्हें प्रदूषित करती है.
अनुमति के बिना अवैध रूप से भूजल दोहन का मामला
याचिका में बूचड़खाने द्वारा सक्षम प्राधिकारों की अनुमति के बिना अवैध रूप से भूजल दोहन का मामला भी रेखांकित किया गया है और जानवरों की हड्डियों से वसा निकालने में भट्टियों से निकले धुआं से होने वाले वायु प्रदूषण के मुद्दे को भी उठाया गया है. अधिकरण ने मई 2015 में राज्य प्राधिकारों को मांस दुकानों के समुचित नियमन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था.