नई दिल्लीः सोशल मीडिया पर एक मैसेज इन दिनों शेयर किया जा रहा है कि ''भेड़ों से नेताजी ने वादा किया कि वे हर भेड़ को एक-एक कंबल देने जा रहे हैं.भेड़ों का झुंड खुशी से झूम उठा. उनकी हर्ष ध्वनि से आकाश में चहुंओरमिमियाहट गूंजने लगी. फिर एक मेमने ने धीरे से अपनी मां से पूछ लिया, ये नेताजी हमारे कंबलों के लिए ऊन कहां से लाने वाले हैं ?फिर वहां सन्नाटा छा गया.

काश कि ये सवाल लोग राजनीतिक दलों से पूछते कि फ्री चीनी, दूध, घी, मोबाइल फोन, साइकिल, लैपटॉप आदि कहां से ला कर देंगे?

सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है ये मैसेज ही आज के चुनावों की हकीकत बन गया है. जनता को मूढ कर उन्हीं के पैसे से मुफ्तखोरी कराने का नारा हर पार्टी लगा रही है और अब ये सवाल पूछा जाने लगा है कि आखिर फ्री की पॉलिटिक्स के लिए नेताजी पैसे कहां से लाकर देंगे?

आज उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने भी मुफ्त योजनाओं का पिटारा खोला दिया
बीजेपी के घोषणापत्र में एलान किया है कि सरकार आई तो

लैपटॉप के साथ एक साल तक 1 जीबी इंटरनेट फ्री
सभी कॉलेजों में मुफ्त वाईफाई देंगे
ग्रेजुएशन तक लड़कियों को मुफ्त शिक्षा
बारहवीं तक लड़कों के लिए मुफ्त शिक्षा
खेती करने वाले मजदूरों का 2 लाख तक का मुफ्त बीमा
इन वादों में सबसे आकर्षक लैपटॉप बांटने का वादा है लेकिन ये आपकी जेब पर कितनी तगड़ी चोट डाल सकता है ये समझने के लिए हम
आपको पांच साल पीछे लेकर चलते हैं.

अखिलेश यादव इसी तरह मुफ्त लैपटॉप बांटने का वादा करके सत्ता में आए थे तब अनुमान लगाया गया था कि ऐसे लॉलीपॉप वाले वादों को पूरा करने में सरकार को करीब 40 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा. जबकि तब उत्तर प्रदेश पहले से ही 19 हजार करोड़ के राजकोषीय घाटे के बोझ से दबा था. इसके बावजूद अखिलेश ने सरकार बनने के बाद बारहवीं पास बच्चों को लैपटॉप बांटना शुरु किया. 2014 के लोकसभा चुनाव तक साढ़े 15 लाख लैपटॉप बांट भी डाले. सरकार को एक लैपटॉप की कीमत 19 हजार रुपये पड़ी.
मुफ्त लैपटॉप बांटने में करीब 3 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए.लोकसभा चुनाव से पहले जो मुफ्त लैपटॉप हर बारहवीं पास बच्चे को मिल रहा था
वो लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद सिर्फ टॉपर्स को दिया जाने लगा.
पिछले साल यूपी में 25 लाख 62 हजार बच्चों ने बारहवीं पास की है. अगर सभी बच्चों को लैपटॉप दिए जाएं और कीमत 15 हजार भी मान ली जाए तो 3843 करोड़ रुपये का बोझ सरकार पर पड़ेगा. सालभर एक जीबी डाटा का खर्च अलग से होगा.

लैपटॉप के एक वादे का खर्च बताने के पीछे मकसद आपको ये समझाना है कि सरकार अपने वादे पूरे करने के लिए जो खर्च कर रही है वो बोझ आपके ऊपर ही पड़ेगा.

इससे पहले समाजवादी पार्टी फ्री गेहूं और चावल के अलावा रजिस्ट्रेशन कराने वालों को स्मार्टफोन के वायदे से मुंडन का ऐलान कर चुकी है.
1.40 करोड़ लोगों ने फ्री फोन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है. अगर 2000 रुपये का भी स्मार्टफोन दिया तो 2800 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
अखिलेश सरकार ने वादा किया है कि गरीब बच्चों को 1 लीटर घी, मिल्क पाउडर दिया जाएगा. अभी राज्य में 1 करोड़ 80 लाख बच्चों को मिड-डे मील दिया जाता है. इस हिसाब से सरकार को 720 करोड़ रुपये हर महीने घी पर और 540 करोड़ रुपये मिल्क पाउडर पर खर्च होंगे.
इसके अलावा गरीब महिलाओं को प्रेशर कुकर और बस किराये में 50 फीसदी की छूट का भी अखिलेश सरकार ने एलान किया है.

अब आप सोच रहे होंगे कि मुफ्त की चीजें लेने में जनता का क्या नुकसान है. सरकार फ्री में दे रही है बदले में कुछ ले तो नहीं रही. तो आपको बता दें कि सरकार अगर ये मुफ्त के वादे पूरे करने में खर्च करने की जगह राज्य की बुनियादी जरूरतों पर वही हजारों रुपये खर्च होते तो राज्य की क्या सूरत कुछ और ही होती.
एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 1 करोड़ 32 लाख नौजवान बेरोजगार नहीं होते.
एक लाख नवजातों पर 46 मासूमों की मौत का आंकड़ा सुधर जाता.
गैंगरेप के मामलों में उत्तर प्रदेश देश का नंबर वन राज्य की बदनामी से बचता
अब आपको ये बात समझ आ गई होगी मुफ्त की चीजें देने का जो जाल राजनीतिक पार्टियां बिछाती हैं उसकी जगह अगर सड़क, स्कूल, बिजली, पानी जैसी सुविधाओं पर खर्च हो तो जनता को ज्यादा सहूलियत होगी.

बीजेपी ने एलान किया है कि सरकार बनी तो एक साल में डेढ़ लाख पुलिसवालों की भर्ती होगी. जबकि हकीकत ये है कि पिछले कई दशकों में यूपी में अभी सिर्फ ढाई लाख पुलिसवालों की भर्ती हो पायी है. मान लेते हैं कि भर्ती करनी शुरू कर दी तो क्या होगा. 82 भर्ती रोज करनी पड़ेगी. एक पुलिसवाले की तनख्वाह 18 हजार रुपये है यानी 270 करोड़ हर महीने सैलरी का बोझ बढ़ेगा. यहां वायदे पर भरोसा करने से पहले ये जान लीजिए कि फिलहाल उत्तर प्रदेश का हर व्यक्ति करीब 17859 रुपये का कर्ज है.

वित्तीय वर्ष के अंत तक राज्य पर कुल मिलाकर 375049 करोड का कर्ज हो जाएगा. अभी वेतन, भत्तों व पेंशन पर यूपी सरकार सालाना 95000 करोड़ रुपये खर्च करती हैं. सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद 16 हजार 825 करोड़ का बोझ बढ़ जाएगा. राज्य में अभी 1 लाख 32 हजार परिवार गरीबी की रेखा से नीचे हैं और प्रतिव्यक्ति आय 48,584 रुपए है जो कि राष्ट्रीय आय प्रतिव्यक्ति 1 लाख रु से आधी है. सोचिए ये बोझ कैसे पूरा होगा और उसपर से प्रदेश का क्या होगा?