हवाई चप्पल पहने मजदूरों को हवाई जहाज से उनके घर भेजकर सियासी चक्रव्यूह में घिरे सदी के महानायक, पार्टियों में छिड़ा संग्राम
कोरोना काल में फंसे मजदूरों और गरीब परिवार को अमिताभ बच्चन द्वारा हवाई जहाज से अपने घर भेजने पर जहां एक तरफ उनकी तारीफ हो रही है. वहीं, अब इसपर सियासत भी शुरू हो गई है. साथ ही बिग-बी के दोबारा राजनीति में आने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं.
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प्रयागराज: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने कोरोना महामारी के मुश्किल दौर में मुंबई में फंसे गरीबों और मजदूरों को परिवार वालों के साथ उनके घर वापस भेजकर एक बार फिर ये साबित किया है कि वह सिर्फ फिल्मी पर्दे के ही नहीं बल्कि रियल जिंदगी में भी हीरो हैं. अमिताभ को सियासत भले ही कभी रास न आई हो, लेकिन उनकी इस पहल पर अब सियासत शुरू हो गई है. सियासी पार्टियां इस पर राजनीतिक रोटियां सेंकने में जुट गईं हैं. उनके बीच संग्राम छिड़ गया है.
पार्टियां बिग बी की इस नेक पहल से एक -दूसरे की सरकारों के मुंह पर तमाचा पड़ने के आरोप लगाकर उन्हें घेरने की कोशिश कर रही हैं. इतना ही नहीं, चर्चा तो इस बात पर भी शुरू हो गई कि बरसों पहले राजनीति से तौबा कर चुके महानायक कहीं फिर से सियासत में सक्रिय तो नहीं होने जा रहे हैं. इसे सियासी सितम कहें या फिर सियासत की मजबूरी. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने चौतीस बरस पहले सियासत से तौबा कर ली थी, लेकिन स्वार्थ की राजनीति है कि उनका पीछा छोड़ने को कतई तैयार नहीं है. संगम के शहर के अमिताभ ने सितारों की नगरी मुंबई में कोरोना और लॉकडाउन में फंसे लोगों की मदद के लिए संजीदगी दिखाते हुए कुछ हवाई जहाज के इंतजाम क्या कर दिए, सियासी पार्टियां इसमें भी अपना नफा -नुकसान तलाशने में जुट गईं. अपने लिए संभावनाएं तलाशने लगी हैं.
साथ ही, हवाई चप्पल पहनने वालों के हवाई सफर के बहाने विरोधियों की सियासी कब्र खोदने में सक्रिय हो गईं हैं. यूपी कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता बाबा अभय अवस्थी ने सीधे तौर पर मोदी और योगी की सरकार पर निशाना साध डाला. दलील ये दी कि जब दोनों सरकारें गरीब प्रवासी मजदूरों को अमिताभ की जन्मस्थली प्रयागराज समेत यूपी के दूसरे हिस्सों में वापस लाने में नाकाम साबित हुईं, तो सदी के महानायक ने उनके मुंह पर तमाचा मारते हुए उन लोगों को हवाई जहाज से उनके घर वापस भेजने के इंतजाम कर दिए, जिनके लिए हवाई सफर बचपन के किसी सपने के हकीकत में बदलने से कतई कम नहीं है.
छत्तीस साल पहले अमिताभ को सांसद बनाने वाली कांग्रेस ने जब सियासी तीर चलाने शुरू किए, तो भला बीजेपी पलटवार कैसे न करती. यूपी की योगी सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने ट्विटर के जरिये अमिताभ की दरियादिली की तारीफ कर उनका शुक्रिया अदा किया, तो पार्टी के दूसरे नेता भी एक्टिव हो गए. कांग्रेस को इस बात की याद दिलाई गई कि महाराष्ट्र में बीजेपी की नहीं, बल्कि खुद उसकी ही सरकार है. बात निकली तो फिर प्रियंका वाड्रा के एक हजार बसों तक भी पहुंच गईं. बीजेपी नेता आशीष गुप्ता ने सवाल ये उठाया कि अगर ये एक हजार बसें महाराष्ट्र भेज दी गई होतीं, तो मुंबई में फंसे मजदूर अब तक घर वापस आ चुके होते और अमिताभ को हवाई जहाज के इंतजाम न करने पड़ते.
सियासी तीर के साथ ही आरोप -प्रत्यारोप के दौर भी चलने लगे, तो सियासी गलियारों में अमिताभ के सियासत में फिर से सक्रिय होने की संभावनाओं पर काना-फूसी भी शुरू हो गई. सियासत भले ही उन्हें कभी रास न आई हो. 1984 में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था, तो जिस अमर सिंह की वजह से वो समाजवादी पार्टी में सक्रिय हुए और पत्नी जया बच्चन को राज्यसभा भिजवाया, बाद में उसी अमर सिंह ने उनके खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि घर के बंद कमरों में टेलीफोन पर हुई बातों के टेप सार्वजनिक करने की धमकियों से भी उन्हें दो चार होना पड़ा था.
बहरहाल, अमिताभ बच्चन के हवाई जहाज पर भले ही सियासी कोहराम मचा हो, लेकिन उनके सियासत में सक्रिय होने और चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर सभी पार्टियां एक हैं. सभी ऐसा होने की सूरत में इस फैसले का स्वागत करने की बातें कह रहीं हैं, तो साथ ही उन्हें अपनी पार्टियों से ज़्यादा करीब होने का दिखावा करने में भी पीछे नहीं रहना चाहतीं. वैसे ऐसा करना उनकी दरियादिली नहीं, बल्कि सियासी मजबूरी भी है, क्योंकि अमिताभ बच्चन इतना बड़ा नाम है, जिसका इस्तेमाल कर मझधार में फंसी अपनी चुनावी नैया को आसानी से पार लगाया जा सकता है. प्रयागराज की मेयर अभिलाषा गुप्ता ने तो उन्हें रियल और सुपर हीरो बताकर अपनी तरफ से शुभकामनाएं तक दे डालीं.
अमिताभ का जन्म उसी संगम नगरी प्रयागराज में हुआ है, जिसने देश को कई प्रधानमंत्री दिए हैं. वो शहर जहां की नुमाइंदगी, वो देश की सबसे बड़ी पंचायत में कर चुके हैं. बात अभी सिर्फ हवाओं और फिजाओं में ही अटकी हो, लेकिन महानायक के सियासत में वापसी के ख्याली पुलाव भर से उनके अपने शहर के लोग उत्साहित और रोमांचित हो उठे हैं. उन्हें लगता है कि फिल्मी परदे का नायक जब रियल लाइफ हीरो बनकर काम करेगा, तो नाकारा हो चुके सिस्टम को वो मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की फिल्मों के हीरो की तरह अग्निपथ पर चलते हुए चुटकी बजाते ठीक कर देगा. प्रयागराज के लोगों को अमिताभ के सियासत में वापसी और चुनाव लड़ने की चर्चाएं भले ही हवा हवाई लग रही हों, लेकिन वो छत्तीस साल बाद फिर से उन्हें दिल से लगाने और दिल में बसाने के दावे ज़रूर कर रहे हैं. 1984 के चुनाव में अमिताभ के सहयोगी रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील वीसी श्रीवास्तव ने तो साफ़ तौर पर कहा कि प्रयागराज अपने इलाहाबादी मुन्ना का हमेशा खुले दिल से स्वागत करेगा.
अमिताभ के हवाई जहाज ने भले ही सियासी पारे को गरमाकर कई तरह की सियासी अटकलों को जन्म दिया हो, लेकिन जानकार मानते हैं कि ऐसे संवेदनशील मसलों पर सियासत के बजाय सीख लेने की ज़्यादा जरूरत है. प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार रतन दीक्षित के मुताबिक, अमिताभ की पहल को सियासी चश्मे से देखना पूरी तरह गलत है. वो एक संवेदनशील इंसान हैं. साधारण से परिवार से ताल्लुक रखने की वजह से आम आदमी के दर्द को समझते हैं. सांसद रहते हुए भी उन्होंने बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कई काम किए थे. गांव के लोगों के इलाज के लिए मोबाइल मेडिकल वैन चलवाई थी, लिहाजा उनकी पहल से सबक लेते हुए दूसरे लोगों को भी इस मुश्किल वक्त में गरीब व परेशान लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए.
अमिताभ बच्चन ने हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई सफर के जरिये उनके घर तक पहुंचकर न तो किसी पार्टी के मुंह पर तमाचा मारा है और न ही किसी सरकार के मुंह पर, बल्कि उन्होंने उस सिस्टम को आइना दिखाने की कोशिश की है, जिसकी यह काम करने की ज़िम्मेदारी थी, लेकिन जो अक्सर ही अपनी इस ज़िम्मेदारी को पूरा कर पाने में नाकाम और नाकारा साबित होता है.
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