गोरखपुरः राजनीति भी ऐसी ही होती है. पल में ऊंट इस करवट, तो पल में उस करवट बैठ जाता है. ऐसी सीट जिस पर पूरे देश और दुनिया की नजर टिकी हुई है, उस सीट पर बड़ा उलटफेर होने की संभावना है. राजनीति के गणितज्ञों की गणित भी इस अहम सीट पर फेल होती नजर आ रही है. योगी और मंदिर की सीट मानी जाने वाली गोरखपुर सदर सीट इस समय फिर चर्चा में है. उसका कारण भी साफ है. निषाद पार्टी के भाजपा के साथ आने के दिल्ली में हुए औपचारिक ऐलान के बीच सपा से गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद के भाजपा में शामिल होने से उनके गोरखपुर सदर सीट से टिकट पाने की सम्भावना बढ़ गई है. यानी जिसने उपचुनाव में शिकस्त दी थी, बीजेपी उसी पर दांव लगा सकती है.
लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बजने के साथ ही गोरखपुर सदर सीट को लेकर कयासों का दौर शुरू हो चुका है. भाजपा खेमें में इस बात की चर्चा जोरों पर रही है कि पार्टी किसे गोरखपुर सदर से चुनाव मैदान में उतारती है. ये सीट भाजपा के लिए इसलिए भी अहम है, क्योंकि बीते उप-चुनाव में भाजपा को सपा प्रत्याशी और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद के हाथों शिकस्त खानी पड़ी थी. भाजपा के प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ल को उन्होंने साढे बाइस हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की थी. भाजपा खेमें में खलबली इस बात को लेकर रही है कि सपा के टिकट पर जीत हासिल कर चुके प्रवीण निषाद के खिलाफ किसे चुनाव मैदान में उतारा जाए.
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वहीं सपा-बसपा गठबंधन इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त रहा है कि वे इस बार फिर से सिटिंग एमपी प्रवीण निषाद को भाजपा के खिलाफ उतारकर मास्टर कार्ड के रूप में इस्तेमाल करेंगे. सपा को पूरा विश्वास रहा है कि वे इस चुनाव में फिर गोरखपुर की सीट निकाल लेंगे. लेकिन, भाजपा खेमें में चेहरे को लेकर उधेड़बुन खत्म होती नजर नहीं आ रही थी. अभी ये सब चल ही रहा था कि इसी बीच सपा छोड़कर अपनी मां राजमती निषाद के साथ भाजपा में शामिल हुए अमरेन्द्र निषाद को भाजपा के प्रत्याशी के चेहरे के रूप में देखा जाने लगा.
लेकिन, एक समय था जब भाजपा के धुर विरोधी रहे उनके पिता स्व. जमुना निषाद ने साल 1999 में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव में महज सात हजार वोटों से हार का सामना किया था. यही वजह है कि भाजपा के लोग इस चेहरे को सहज रूप में नहीं ले पा रहे थे. यही वजह है कि गोरखपुर सीट पर प्रत्याशी के नाम की घोषणा में देरी होती जा रही थी. इसके बाद गठबंधन पर आरोप लगाते हुए निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय निषाद ने साथ छोड़ने का ऐलान कर दिया.
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सपा को उन्होंने बड़ा झटका दे दिया. इसका कारण बनी महराजगंज सीट पर डा. संजय निषाद अपनी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन, ऐसा नहीं हो सका. नतीजा भाजपा के साथ आने के लिए उन्होंने पहले स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय से मुलाकात की. उसके बाद वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिले. लेकिन, फिर महराजगंज सीट को लेकर पेंच फंस गया. बाद में भाजपा ने भदोही और जौनपुर सीट देने की बात कही. लेकिन, महराजगंज के अलावा गोरखपुर सीट भी हाथ से निकलना डा. संजय निषाद को मंजूर नहीं था.
यही वजह कि उन्होंने कुछ दिनों तक दिल्ली में ही बैठे-बैठे चुप्पी साधी रही. आज केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने प्रवीण निषाद को दिल्ली में ही भाजपा की सदस्यता दिलाई. वहीं निषाद पार्टी भी अब भाजपा के साथ खड़ी हो गई. इस ऐलान के बाद से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि गोरखपुर सीट पर बात बनती दिख रही है. ऐसा हुआ तो गोरखपुर सीट पर प्रवीण निषाद पर भाजपा दांव खेल सकती है. वे जिस सपा से उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ जीत हासिल किए थे, उसी के उम्मीदवार घोषित हो चुके रामभुआल निषाद के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं.
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