प्रयागराज: देश में सियासत की नर्सरी कही जाने वाली इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ को ख़त्म कर दिया गया है. यहां का छात्रसंघ छियानबे साल पुराना है और इसे देश ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे पुराना छात्रसंघ कहा जाता है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ ने देश को पूर्व राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर - वीपी सिंह और गुलजारी लाल नंदा समेत पूर्व सीएम एनडी तिवारी व मदन लाल खुराना जैसे सियासी दिग्गजों को राजनीति की एबीसीडी सिखाई है. यूनिवर्सिटी प्रशासन की दलील है कि छात्रसंघ की वजह से कैम्पस में अराजकता का माहौल रहता है और इस पर पाबंदी लगाए जाने के बाद 132 साल पुरानी इस यूनिवर्सिटी का गौरव फिर से वापस आ सकेगा.
इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में मुहर लगते ही यहां का छात्रसंघ अब औपचारिक तौर पर ख़त्म होकर इतिहास बनने की राह पर चल पड़ा है. वैसे छात्रसंघ को ख़त्म किये जाने का फैसला तो चौबीस जून को एकेडमिक काउंसिल की बैठक में ही हो चुका था, लेकिन लोगों को उम्मीद थी कि एकेडमिक काउंसिल शायद छात्रों की आवाज़ को दबाने वाले फैसले को पलटकर छात्रसंघ के गौरवमयी इतिहास को ख़त्म होने से बचाने में पहल करेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
छात्रसंघ ख़त्म करने पर आमादा यूनिवर्सिटी प्रशासन का आख़िरी फैसला भी सियासत की नर्सरी और छात्रों की आवाज़ के खिलाफ ही गया. यूनिवर्सिटी प्रशासन की दलील है कि छात्रसंघ की वजह से पूरब का आक्सफोर्ड कही जाने वाली इस यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का माहौल ख़त्म हो गया था. यहां साल भर अराजकता रहती थी और छात्रसंघ के चलते ही कभी बम फूटते हैं तो कभी खून बहता है. दलील यह भी है कि छात्रसंघ ख़त्म किये जाने के बाद इस यूनिवर्सिटी का 132 साल पुराना गौरव फ़िर से बहाल हो जाएगा और देश ही नहीं बल्कि दुनिया की नामी यूनिवर्सिटीज में टॉप की रैंकिंग पर पहुंच जाएगा.
इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी 132 साल पुरानी है, जबकि यहां का छात्रसंघ छियानबे साल पुराना। 1923 में यहां छात्रसंघ का तब गठन हुआ था, जब देश ही नहीं समूचे एशिया की यूनिवर्सिटीज में छात्रों के बीच चुनाव कराकर उनके संगठन को खड़ा करने की कोई परंपरा नहीं थी. यहां के छात्रसंघ ने देश को कई प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री - गवर्नर और मंत्री दिए हैं. यहां से राजनीति की एबीसीडी सीखकर देश के सियासी फलक तक पहुंचने वालों की फेरहिस्त काफी लम्बी है.
यूनिवर्सिटी प्रशासन का तर्क है कि छात्रसंघ के बिना भी यहां के छात्र राजनीति के क्षेत्र में कदम रखकर देश की सेवा कर सकेंगे. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रसंघ के बदले छात्र परिषद का एलान किया है. उसका कहना है कि अब हर क्लास में मॉनीटर चुना जाएगा. इसके साथ ही यूनिवर्सिटी भी कुछ छात्रों को छात्र परिषद का सदस्य मनोनीत कर उन्ही के बीच पदाधिकारियों का सेलेक्शन करा देगी. हालांकि इसमें छात्रों की पसंद कोई मायने नहीं रखेगी. यूनिवर्सिटी प्रशासन अपने बचाव में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दे रही है, लेकिन उस फैसले को अपनी तरह से एक्सप्लेन कर रही है.
इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ का इतिहास गौरवमयी रहा है. इसी वजह से तमाम दूसरे छात्र संगठनों के साथ ही केंद्र व यूपी की सत्ता पर काबिज़ बीजेपी का छात्र संगठन एबीवीपी भी यूनिवर्सिटी प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ लगातार आवाज़ उठा रहा है और कैम्पस से लेकर सड़कों तक प्रदर्शन व हंगामा कर रहा है. छात्रसंघ ख़त्म किये जाने के फैसले को लेकर यूनिवर्सिटी इन दिनों अखाड़ा बनी हुई हैं. रोज़ प्रदर्शनकारी छात्रों की पुलिस से झड़प हो रही है. उन पर लाठियां चलाई जा रही हैं और उन्हें गिरफ्तार कर थानों व पुलिस लाइंस में रखा जा रहा है. छात्रों का आरोप है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ज़रूरी मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए छात्रसंघ को ख़त्म किया है.
यूनिवर्सिटी प्रशासन की दलील अपनी जगह है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या छात्रसंघ ख़त्म हो जाने भर से पूरब के आक्सफोर्ड में फ़ैली अराजकता ख़त्म हो जाएगी और यहां फिर से पढ़ाई का माहौल कायम हो पाएगा और 132 साल पुरानी यूनिवर्सिटी का गौरव वापस आ जाएगा. यह सवाल इसलिए भी उठना लाजिमी है कि क्योंकि यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफ़ेसर हांगलू खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं. मंत्रालय उनके खिलाफ जांच करा रहा है और जांच की वजह से ही साढ़े पांच सौ के करीब टीचर्स की भर्ती को बीच में ही रोक दिया गया है.