नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद भारत के 14वें राष्ट्रपति चुने गए हैं. बिहार का गवर्नर बनने से पहले रामनाथ कोविंद को कम ही लोग जानते थे.
परौंख के कोविंद का महामहिम बनने तक का सफर...
घर से ही परचून की दुकान चलाते थे रामनाथ के पिता
रामनाथ कोविंद का जन्म देश की आज़ादी से क़रीब दो साल पहले हुआ था. एक अक्टूबर 1945 को मैकूलाल और फूलमती के घर में रामनाथ पैदा हुए थे. रामनाथ नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. उनके पिता परचून की दुकान घर से ही चलाते थे. रामनाथ जब पांच साल के थे तो आग में जल कर उनकी मां की मौत हो गई थी. दलितों के कोरी जाति में जन्मे रामनाथ की पांचवीं तक पढ़ाई गांव में ही हुई, वो भी एक ऐसे स्कूल में जहां छत तक नहीं था.
लखनऊ से 160 किलोमीटर दूर कानपुर जिले के परौंख गांव में अब एक सरकारी स्कूल बन गया है. पक्की सड़कें भी हैं. लेन देन के लिए स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा भी है. गांव से कुछ दूरी पर एक इंटर कॉलेज है. और ये सब रामनाथ कोविंद की मेहरबानी से हुआ है. गांववालों के लिए वे उम्मीदों के ख़ज़ाने हैं, इसीलिए तो सब मिल कर उनकी जीत के लिए अखंड पाठ कर रहे हैं. गांव वालों का कहना है कि रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने तक यह पूजा चलती रहेगी.
गांव के बड़े बुज़ुर्गों के लिए तो रामनाथ कोविंद अब भी रामू ही हैं, लेकिन यहां के नौजवानों के लिए वे बस एक रोल मॉडल हैं. बिहार का गवर्नर बनने के बाद पिछले साल दिसंबर में रामनाथ कोविंद कुछ घंटों के लिए अपने गांव आए थे. राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद ने गांव आने का वादा किया है.
कोविंद ने अपना पुश्तैनी घर भी सरकार को कर दिया दान
रामनाथ कोविंद तो बचपन में ही गांव छोड़ चुके थे. आठवीं की पढ़ाई के बाद उनका गांव आना जाना कम ही रहा. यहां अब उनका कोई नहीं रहता. कोविंद ने तो अपना पुश्तैनी घर भी सरकार को दान दे दिया है. बाद में उनके सारे नाते रिश्तेदार झिंझक में बस गए. रामनाथ भले ही राष्ट्रपति बन जाएं लेकिन अपनी भाभी के लिए आज भी वे लल्ला ही हैं, जिसे कचौड़ी और गन्ने के रस वाली खीर पसंद है.
अपने बड़े भाई शिवबालक के सबसे क़रीब रहे रामनाथ
रामनाथ कोविंद के पुश्तैनी गांव से क़रीब 20 किलोमीटर दूर एक क़स्बा है झिंझक. यहां उनके तीन भाईयों शिवबालक, मनोहरलाल और प्यारेलाल का परिवार रहता है. रामनाथ से पांच साल बड़े प्यारेलाल की कपड़े की छोटी सी दुकान है. रामनाथ कोविंद पांच भाईयों में सबसे छोटे हैं और इन सबके साथ वाली ये इकलौती तस्वीर है, वो भी 43 साल पुरानी. दो बड़े भाई मोहनलाल और शिवबालक अब दुनिया में नहीं रहे. रामनाथ अपने बड़े भाई शिवबालक के सबसे क़रीब रहे.
1991 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े थे रामनाथ
झिंझक में रहकर रामनाथ कोविंद ने 1991 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा. वे घाटमपुर सुरक्षित सीट से बीजेपी के उम्मीदवार थे, लेकिन रामनाथ चुनाव हार गए. फिर वे जो बार राज्यसभा के सांसद बने. ज़िंदगी की कमाई के नाम पर रामनाथ कोविंद के पास कानपुर में बस एक घर है. सांसद रहने के बाद भी वे यहां दस साल तक किराए के मकान में रहे. कानपुर में ही रामनाथ ने दसवीं से लेकर क़ानून तक की पढ़ाई की.
बीएनएसडी इंटर कॉलेज से इन दिनों जो भी गुज़रता है, वह कुछ देर के लिए रूक जाता है. हर दिन यहां ढोल नगाड़े बज रहे हैं. टीचर और बच्चे मिल कर मिठाईयां खा रहे हैं. दरअसल अपने गांव से निकल कर रामनाथ कोविंद ने चार सालों तक यहीं पढ़ाई की थी. साल 1960 में उन्होंने अपना एडमिशन कराया था. अब कॉलेज वाले बड़े गर्व से रामनाथ का एडमिशन रजिस्टर दिखाते हैं.
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों इस कॉलेज में कर चुके हैं पढ़ाई
इंटर के बाद से आगे की पढ़ाई रामनाथ कोविंद ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से की थी. यहां से उन्होंने पहले बीकॉम और फिर क़ानून की पढ़ाई की. उन दिनों स्नातक का कोर्स दो साल का ही होता था. डीएवी कॉलेज के लिए रामनाथ के एडमिशन वाला रजिस्टर किसी ख़ज़ाने से कम नहीं. यहां के प्रिंसिपल अमित श्रीवास्तव ने बताया डीएवी देश का इकलौता कॉलेज है जहां प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों पढ़ाई कर चुके हैं.
2004 में दूसरी बार राज्य सभा सांसद बने रामनाथ
1991 में रामनाथ कोविंद ने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा. दिल्ली में वकालत कर रहे रामनाथ फिर कानपुर आ बसे. रामनाथ कोविंद साल 2004 में दूसरी बार राज्य सभा के सांसद बने. उससे साल भर पहले वे एक घर के मालिक बन गए. कानपुर में रामनाथ का यही नया ठिकाना है. दो साल पहले बिहार का गवर्नर बनने के बाद उनका यहां आना जाना कम हो गया. रामनाथ के घर में अब केयरटेकर कुसुमलता राठौर का परिवार रहता है.
राष्ट्रपति बनने पर कॉलोनी में जश्न की तैयारी
रामनाथ कोविंद के गांव से लेकर जहां वे पले बढ़े, हर जगह आज किसी उत्सव जैसा माहौल है. इन दिनों कॉलोनी में उनके राष्ट्रपति बनने पर जश्न की तैयारी है. हर तरफ साफ़ सफ़ाई हो रही है. जिस पार्क में रामनाथ मॉर्निंग वॉक पर जाते थे, उसे संवारा जा रहा है. रामनाथ ने फ़ोन पर अपने मोहल्ले के लोगों को जीत पर तमाशा न करने को कहा है.