मेरठ: उत्तर-प्रदेश की राजनीति में प्रियंका गांधी की एंट्री कांग्रेस के लिए सियासत की चौसर पर तुरूप का पत्ता चलने जैसी है. लेकिन लंबे वक्त से हाशिये पर पड़ी कांग्रेस को क्या प्रियंका गांधी के चेहरे का जादू जीवन दे पायेगा. यह फिलहाल चुनावी नतीजों के गर्त में है. मगर सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी की सियासी आमद ने बीजेपी के खेमे में बैचेनी जरूर बढ़ा दी है.
मेरठ के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हाजी युसुफ कहते हैं कि पूर्वी उत्तर-प्रदेश में प्रियंका गांधी ने लंबे वक्त तक गरीब और किसानों के बीच रहकर बहुत काम किये हैं. जनता को उनमें इंदिरा गांधी की छवि दिखाई देती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी कराई है. इन दोनों नेताओं के आने से प्रदेश के संगठन में ऊर्जा आयेगी और चुनावी समीकरण भी बदलेगा.
लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लंबे वक्त से चुनावी नतीजे कांग्रेस के हक में नहीं रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा 2014 के नतीजों में कांग्रेस के प्रत्याशी दूर-दूर तक नजर नहीं आये. गाजियाबाद से राजबब्बर और सहारनपुर से इमरान मसूद पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की लोकसभा सीटों पर ऐसे कांग्रेस प्रत्याशी थे जो पहले रनरअप थे. रामपुर लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी नबाब काजिम अली खान मुकाबले में तीसरे नंबर रहे थे. मेरठ से नगमा और मुजफ्फरनगर से पंकज अग्रवाल चुनाव जीतने वाले प्रत्य़ाशी से चौथे नंबर पर थे.
बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, बागपत, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, नगीना, बिजनौर और कैराना सीटों पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी का नाम टॉप 4 में भी नहीं रहा. 2009 में भी कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर नहीं रही. पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की केवल मुरादाबाद सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अजहरूद्दीन ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के अधिकतर प्रत्याशी नतीजों में टॉप-3 में भी नहीं दिखाई दिये. वेस्ट यूपी के गढ़ मेरठ में पिछले कई बार से कांग्रेस पैराशूट प्रत्याशी उतार रही है. जमीनी तौर पर खस्ता पड़े संगठन में कोई भी स्थानीय नेता ऐसा नहीं है जो लोकसभा चुनाव में दूसरी पार्टियों के मुकाबिल हो सके.