प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की कमान, भाई राहुल की लाज बचाने की चुनौती बहन प्रियंका की
लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा ने आखिरकर सक्रिय राजनीति में कदम रखते हुए सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में अहम जिम्मेदारी स्वीकार कर ली. प्रियंका को कांग्रेस में अहम पद दिये जाने की पुरजोर मांग बहुत पहले से चल रही थी.
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लखनऊ: अमेठी से राहुल गांधी लोकसभा चुनाव जीत गए थे. उनकी मां सोनिया गांधी उनके लिए ये सीट छोड़ कर रायबरेली चली गई थीं. राहुल के लिए राजनीति में ये शुरूआती दिन था. जब वे जीत का सर्टिफ़िकेट लेने अमेठी पहुंचे. तो प्रियंका गांधी आगे आगे चल रही थीं और राहुल उनका हाथ पकड़ कर पीछे पीछे चल रहे थे. ऐसा लग रहा था प्रियंका ही राहुल की गार्डियन हैं और ये सच भी तो था. चुनाव प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट तक सब प्रियंका ने संभाला था. राहुल कहां पर और किस वक़्त क्या बोलेंगे? किससे और कब मिलेंगे? सब कुछ बहन प्रियंका ही तय करती थीं. एक तरह से कह लें तो पर्दे के पीछे से प्रियंका ही चुनाव लड़ रही थीं. वहीं अपने बड़े के बदले चुनाव लड़ रही थीं. जब मां सोनिया गांधी अमेठी से चुनाव लड़ती थीं तब भी प्रियंका चुनाव प्रचार में हाथ बंटाती थी.
बात ठीक दस साल बाद की है. 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए थे. देश भर में कांग्रेस की जीत हुई थी. राहुल की हर तरफ़ वाह वाह हो रही थी. विशेष विमान से राहुल जीत का सर्टिफ़िकेट लेने अमेठी पहुंचे थे. उनके साथ प्रियंका भी थीं. लेकिन इस बार वे अपने भाई के पीछे पीछे चल रही थीं. प्रियंका का हाथ पकड़ कर राहुल मीडिया के सामने आए मैं दोनों तस्वीरों को लेकर सोचने लगा. पांच सालों में ही कितना कुछ बदल गया था. ये दोनों तस्वीरें बिना कुछ कहे सब कुछ कह चुकी थीं. जो राहुल हाथ पकड़ कर प्रियंका के पीछे चला करते थे. उनमें आत्म विश्वास आ चुका था. वे अब एक नेता बन चुके थे. वे आगे की चुनौती लेने को तैयार थे. बहन प्रियंका भी तो यही चाहती थीं.
कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी ऐसा ही सुझाव दिया था
जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव बनाने का एलान हुआ. वे ख़ुद विदेश में हैं. राहुल गांधी अमेठी में ही थे. तय कार्यक्रम के मुताबिक़ सोनिया गांधी को भी साथ होना था. लेकिन ख़राब स्वास्थ्य के कारण वो नहीं पहुंच पाईं. वैसे तो प्रियंका को सक्रिय राजनीति लाने की मांग कई सालों से पार्टी के नेता और कार्यकर्ता करते रहे हैं. 2017 में जब विधानसभा चुनाव हो रहे थे. तब तो मांग और बढ़ गई थी. तब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन था. कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी ऐसा ही सुझाव दिया था. लेकिन परिवार के लोग तैयार नहीं हुए और बात वहीं की वहीं रह गईं.
राजनीति में प्रतीकों को बख़ूबी जानती हैं प्रियंका गांधी
प्रियंका के कांग्रेस महासचिव बनने के बाद सबके मन में बस एक सवाल है ‘ क्या पार्टी के अच्छे दिन आयेंगे. इस सवाल का सीधा जवाब तो शायद ही किसी के पास हो. वैसे यूपी की जनता उन्हें पहले ही टेस्ट कर चुकी है. रायबरेली और अमेठी की पब्लिक तो उन्हें ख़ूब समझती है. उनके चुनाव प्रचार के अंदाज को जानती है. प्रियंका को आपने फूलों की माला गले में पहने हुए कई बार भाषण देते देखा और सुना होगा. जो भी उन्हें माला पहना देता है, ले उसे गले में डाले रहती हैं. वो भी घंटों तक. अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह ही वे साड़ी पहन कर रायबरेली और अमेठी का दौरा करती हैं. यूपी से बाहर जींस शर्ट पहनने वाली प्रियंका राजनीति में प्रतीकों को बख़ूबी जानती हैं.
प्रियंका के बयान ने बदल दिया था रायबरेली का चुनावी माहौल
जनता से कनेक्ट करने में प्रियंका अपने भाई राहुल से बेहतर मानी जाती हैं. पहली बार लोगों ने उनका लोहा 1999 में माना. जहां उनके चाचा जैसे अरूण नेहरू बीजेपी से चुनाव लड़ रहे थे. जबकि गांधी परिवार के क़रीबी कैप्टन सतीश शर्मा कांग्रेस के उम्मीदवार थे. अमेठी में मां का चुनाव प्रचार छोड़ कर वे सीधे रायबरेली पहुंच गईं. उन्होंने भाषण शुरू किया “ यहां से बीजेपी के जो उम्मीदवार हैं उन्होंने मेरे परिवार की पीठ में छुरा घोंपा है. आपने ऐसे ग़द्दार आदमी को रायबरेली में घुसने कैसे दिया’ उनका इतना कहते ही सन्नाटा छा गया.प्रियंका के इस बयान ने रायबरेली का चुनावी माहौल बदल दिया. कैप्टन जीत गए.
प्रियंका गांधी के आ जाने से क्या बदल जाएगा?
अब सवाल ये है कि प्रियंका गांधी के आ जाने से क्या बदल जाएगा? अगले आम चुनाव में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. प्रियंका चुनाव लड़ेंगी या नहीं, अभी फ़ैसला नहीं हो पाया है. रायबरेली से क़िस्मत आज़माएंगी या फिर नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ वाराणसी से ये अभी तय नहीं है. प्रियंका गांधी नहीं आंधी हैं. ये नारा क्या सच साबित होगा? राहुल गांधी ने अपना आख़िरी तुरूप का ऐक्का भी चल दिया है. कांग्रेस कार्यकर्ता ख़ुशी मना रहे हैं. मिठाइयां बांटी जा रही हैं. लेकिन आख़िर ये सब कब तक?
भाई राहुल ने बहन के सामने अग्नि परीक्षा में पास होने की चुनौती रख दी है
रायबरेली और अमेठी से बाहर प्रियंका गांधी का करिश्मा अब तक नहीं चल पाया है और ये करिश्मा भी सिर्फ़ लोकसभा चुनाव तक ही सीमित रहा है. विधानसभा के चुनावों में कभी समाजवादी पार्टी तो कभी बीजेपी बाज़ी जीत ले जाती है. अब उन्हें पूर्वी यूपी की ज़िम्मेदारी मिली है. यूपी के उस इलाक़े की जहां पिछली बार पार्टी को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी. इसी पूर्वांचल के वाराणसी से पीएम नरेन्द्र मोदी सांसद हैं. तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि भाई राहुल ने बहन के सामने अग्नि परीक्षा में पास होने की चुनौती रख दी है. दूसरी तरफ़ बीएसपी और एसपी का मज़बूत गठबंधन भी है. वैसे राहुल के पास यूपी में पार्टी को खड़ा करने के लिए कोई और विकल्प बचा भी नहीं था. राहुल जानते हैं कि अगर यूपी में पार्टी फ़ेल हुई तो फिर दिल्ली की सत्ता का रास्ता सपना ही रह जायेगा.
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