वाराणसी: डेढ़ साल का आयुष रिश्ते के चाचा की गोद में बैठा आने-जाने वालों को देख रहा है. उसे नहीं मालूम कि देश में सीआरपीएफ पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ है. इसी हमले में उसके पिता रमेश यादव भी शहीद हो चुके हैं. आयुष की एक टांग जन्म से ही छोटी और टेढ़ी है. रमेश उसे अगली छुट्टी में दिखाकर इलाज शुरू करवाने वाले थे. लेकिन अब उसका इलाज कौन कराएगा.
वाराणसी के चौबेपुर इलाके के तोफापुर गांव के रहने वाले रमेश यादव दो दिन पहले ही छुट्टी से वापस ड्यूटी पर पहुंचे थे. जाते समय उन्होंने कहा था कि वे डॉक्टर के कहे अनुसार आयुष के लिए स्पेशल जूते लाएंगे और किसी बढ़िया स्पेशलिस्ट डॉक्टर को दिखाएंगे भी.
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गुरुवार को आयुष की मां रेणु ने उसके पापा से फोन पर बात की थी और इसके थोड़ी देर बाद वो मनहूस खबर आ गई कि वे अब इस दुनिया मे नहीं हैं. मां रेनू को बिलखता देख आयुष मां के पास जाने के लिए रोता है तो गांव के लोग उसे गोद मे उठाकर दूर चल देते हैं.
बात करने पर आयुष केवल एक शब्द बोलता है... पापा... उसका यह कहना ही सबकी आंखों में आंसू ला देता है.
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उधर आयुष के दादा और शहीद के बूढ़े पिता किसान श्याम नारायण गश खाकर जमीन पर गिर जा रहे हैं. उनके कंधों पर जवान बेटे की अर्थी का बोझ आन पड़ा है. मां अलग पछाड़ खाकर गिर पड़ती हैं, गांव की औरतें उन्हें और बहु रेणु को सम्भालने में लगी हैं.
Ramesh Yadav
मां बार-बार गुहार लगाती हैं कि उनके बेटे की शहादत का बदला सरकार कड़ी से कड़ी कार्रवाई करके ले. 26 साल के रमेश के बड़े भाई कर्नाटक में दूध का व्यापार करते हैं, छोटे भाई की शहादत की खबर सुन वे भी गांव की ओर चल पड़े हैं.
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उधर गांव के लोगों में आक्रोश है कि शहादत की खबर गुरुवार शाम को ही आ जाने के बाद भी न तो जिला प्रशासन का कोई अफसर वहां पहुंचा, न इलाके के विधायक अनिल राजभर या फिर सांसद महेंद्र नाथ पांडेय.
अधिकारियों और राजनीतिकों की इस बेरूखी से आक्रोशित गांव वाले अपना गुस्सा दबाए, उनकी आलोचना कर चुप हो जाते हैं. लेकिन इलाके का हर शख्स यही सवाल पूछ रहा है आखिर जवानों की शहादत कब तक?
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