सोनौली (महराजगंज): एक तरफ तो सरकार सारी कर प्रणाली को डिजिटल और पारदर्शी करने की कवायद में लगी हुई है, वहीं दूसरी तरफ उसके ही कुछ महकमे इस डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया का मखौल बनाए हुए हैं. हम बात कर रहे हैं सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर से सटे नेपाल से लगने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा की एक प्रमुख उत्पाद एवं सीमा शुल्क चौकी -सोनौली की, जहां पिछले दस दिनों से नियमित तौर पर ट्रकों की मीलों लम्बी कतारें लगी हुई दिख रही हैं. शुक्रवार को जब एबीपी की टीम मौके पर पहुंची तो अंतरराष्ट्रीय सीमा के 15-16 किलोमीटर यानि लगभग दस मील पहले से ट्रकों की कतार दिखनी शुरू हो गयी. पूछने पर ट्रक चालकों ने बताया कि ये कतार पुलिस ने लगवा रखी है और पुलिस के मनचाहे तरीके से बॉर्डर पर करने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नही है. आलम यह है कि सीमा से 15-16 किलोमीटर पहले से हजारों ट्रक कतारबद्ध होकर इंतजार कर रहे हैं.


ऑनलाइन परमिट सिस्टम हुआ ध्वस्त: बीएसएनएल के अधिकारी लाचार


सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम ऑफिस के कर्मचारियों ने बताया कि 16 अप्रैल से एक्सपोर्ट परमिट प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है. इससे पहले व्यवस्था मैनुअल थी. जब परमिट व्यवस्था मैनुअल थी तब प्रतिदिन अमूमन चार से पांच सौ गाड़ियां पास हो जाती थीं. लेकिन जबसे ऑनलाइन हुआ है तबसे किसी भी दिन सर्विस प्रोवाइडर बीएसएनएल पूरे दिन काम नहीं किया है, जिस वजह से किसी भी दिन दो-ढाई सौ से ज्यादा टोकन रिलीज नहीं हो पाए हैं. शुक्रवार को सुबह से ही सर्वर बैठ गया और बीएसएनएल ने असमर्थता व्यक्त कर दी, जिससे टोकन मिलना एकदम ही बंद हो गया. जब एबीपी न्यूज की टीम मौके पर पहुंची तो टोकन काउंटर के कर्मचारी नो सर्विस लिंक की तख्ती लगाए बैठे हुए थे.



पुलिस चला रही समानांतर निकासी व्यवस्था


आसपास पता करने पर जानकारी हुई कि इस परेशानी के आलम में स्थानीय पुलिस परमिटेड वाहनों को मनचाहे तरीके से पास करा रहे हैं. जिसने इस व्यवस्था में कोढ़ में खाज का काम किया है. बताया जाता है कि पुलिस के लोग परमिट हासिल किए वाहनों को एक निश्चित रकम लेकर सुबह कतार से निकालकर सीमा पार करवा देते हैं. जो ट्रक मालिक निश्चित रकम नही देता उसे उसी तरह कतार में खड़ा रहना पड़ता है. सोनौली कोतवाली के पुलिसकर्मियों ने उत्पाद एवं सीमा शुल्क कार्यालय के बगल में स्थित एक लॉज को इस काम के लिए अपना ठिकाना बना रखा है.


छह से सात दिन तक फंसे रह रहे हैं वाहन


पता करने पर जानकारी हुई कि कुछ वाहन परमिट और पुलिस के गोरखधंधे में फंसकर छह/सात दिनों से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं लेकिन कोई भी उनकी पीड़ा समझने वाला नही है.लोगों का कहना है कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो परमिट व्यवस्था को फिर से मैनुअल करना पड़ जाएगा. ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि व्यवस्था को डिजिटल और पारदर्शी बनाने की कवायद बस सफेद हाथी साबित हुई है.