जयपुर: तीन साल पहले जयपुर की हिंगोनिया गौशाला उस वक्त देश भर में चर्चित हुई थी जब यहां बारिश की वजह से हुए कीचड़ में फंसकर हजारों गायों ने दम तोड़ दिया था. उस समय इस गौशाला का संचालन जयपुर नगर निगम के जिम्मे था. तब नगर निगम को गौ शाला के बाड़ों में सफाई के माकूल इंतजाम नहीं रखने की वजह से जबरदस्त आलोचना झेलनी पड़ी थी. गायों की मौतों की वजह से हुए बवाल के बाद तत्कालीन बीजेपी सरकार ने हिंगोनिया गौशाला का संचालन नगर निगम से लेकर अक्षय पात्र फॉउंडेशन से जुड़े श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को सौंप दिया था. इसके लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर कर नगर निगम और ट्रस्ट के बीच लिखित करार भी हुआ लेकिन अभी भी गौ शाला में गायों की मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है.
गायों के लिए मिल रहा अनुदान
इस करार के बाद से गौशाला की देख रेख श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट कर रहा है. नगर निगम यहां की करीब 14 हज़ार गायों के लिए अनुदान राशि भी ट्रस्ट को हर महीने दे रहा है जो कई करोड़ होती है. यहां प्रत्येक बड़ी गाय के लिए 40 और छोटी गाय के लिए 20 रुपए प्रतिदिन की अनुदान राशि तय है. लेकिन कई करोड़ रुपए हर महीने खर्च करने के बावजूद गौ शाला में गायों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है.
बीते दो तीन महीने के दौरान हिंगोनिया गौ शाला में सैंकड़ों गायों ने दम तोड़ा है. आज भी यहां सत्तर से लेकर अस्सी गाय रोजाना मर रही हैं. इन गायों में से अधिकांश की मौत यहां के अस्पताल में हो रही है. गौ शाला के संचालक श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट से जुड़े महा हरिदास का तर्क है कि यहां रोजाना शहर भर में घूम रहे आवारा गौ वंश को लाया जाता है. इनमें से ज़्यादातर घायल, बीमार और भूखे होते हैं. गौशाला के अस्पताल में इनका इलाज किया जाता है लेकिन सभी को बचाया नहीं जा सकता.
80 से 130 गायों की हो रही मौत
गौशाला में नगर निगम और पशु पालन विभाग की तरफ से गौवंश के उपचार के लिए अस्पताल भी चलाया जा रहा है और इस अस्पताल में आईसीयू की सुविधा भी है. लेकिन पिछले दो महीने से अस्पताल के इन्हीं आईसीयू से सुबह और शाम के समय कभी 80 तो कभी 130 मृत गायों के शव भी निकाले जा रहे हैं. पिछले दो महीने से बना हुआ भीषण सर्दी का प्रकोप भी गायों की मौत की एक बड़ी वजह है. अस्पताल से जुड़े पशुपालन विभाग के उप निदेशक डॉ हनुमान सहाय मीणा के अनुसार शहर के आवारा गौवंश की मौत के बाद यहां जब उनका पोस्ट मार्टम किया जाता है तो कई किलो पॉलीथिन उनके पेट से निकलता है. इसके अलावा दुर्घटना में घायल गौवंश भी अक्सर यहां अस्पताल लाने के बाद बचाए नहीं जा पाते.
पड़ताल में हुआ खुलासा
लेकिन सिर्फ यही कहना कि बाहर से लाए गए गौ वंश ही हिंगोनिया गौ शाला में दम तोड़ रहे है गलत होगा।.यहां पहले से रह रहीं गायों के बाड़ों की पड़ताल में ये खुलासा हुआ कि गाय तो गौशाला में रह रहीं गाय भी मर रहीं हैं. पशु पालन से जुड़े जानकार मानते है कि यहां मौसम के मुताबिक गायों को खाद्य सामग्री नहीं दी जाती. अच्छा चारा महंगा पड़ता है इसलिए तूड़ी जैसा सूखा चारा यहां गायों को दिया जाता है जो आसानी से गाये पचा नहीं पातीं. अब ऐसे में हर महीने करोड़ों रुपए की अनुदान राशि हासिल कर रह रहे श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को गायों की लगातार हो रहीं मौतों की जिम्मेदारी से अलग तो बिलकुल नहीं माना जा सकता है.
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