अलवर: राजस्थान के अलवर में रकबर खान उर्फ अकबर की मौत ने सिस्टम, सरकार और समाज की संवेदनशीलता की पोल खोल दी है. रकबर पर हमला करने वाले कथित गो-रक्षकों की भीड़ के बाद अब पूरा पुलिस महकमा सवालों के घेरे में है. रकबर की मौत के साथ ही पुलिस ने दावा किया था कि भीड़ की हिंसा में उसकी मौत हुई. लेकिन चश्मदीदों और बीजेपी के विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने अपनी की सरकार की पुलिसिया तंत्र पर आरोप लगाया की उसकी पिटाई में अकबर की मौत हुई है.
दावों और सबूत के आधार पर राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने कल माना की रकबर की मौत पुलिस कस्टडी में ही हुई थी. गृहमंत्री गुलाब चंद्र कटारिया ने कहा, ''घटना पूरी जांच के बाद यह बात लगभग स्पष्ट है कि पुलिस वाले रकबर को थाने लेकर आ गए, इसके पहले उन्होंने रास्ते में चाय भी. पुलिस वाले रकबर को अस्पताल ले जाने के बजाए पहले गायों को गोशाला लेकर गए. जो उन्हें नहीं करना था. सबसे पहला काम उनका था कि थाने ले जाने पहले उस आदमी को अस्पताल ले जाते और जो भी इलाज की जरूरत होती वो कराते.'' उन्होंने कहा, ''इस मामले में जो सबूत हमने इकट्ठे किए हैं उसके मुताबिक रकबर की मौत पुलिस की हिरासत में हुई.''
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रकबर की मौत पिटाई से होने की बात सामने आई है. उसके शरीर पर चोट के 12 निशान मिले हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एक हाथ और एक पैर की पसलियां टूटी होने की बात सामने आई है.
चश्मीद पर उठे सवाल
इस बीच चश्मदीद नवल किशोर की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. नवल किशोर गो रक्षक दल का सक्रिय कार्यकर्ता है और रकबर की मौत के लिए सीधे तौर पर पुलिस को दोषी बताकर गिरफ़्तार किए गए धर्मेन्द्र, परमजीत और नरेश को बेगुनाह बता रहा है.
लेकिन सबसे हैरानी की बात ये है कि ख़ुद नवल किशोर ने ही रकबर की भीड़ से पिटाई की सूचना रामगढ़ के थाने के कार्यवाहक प्रभारी मोहन सिंह को दी थी. रेड्डी कमेटी की जांच के दौरान ये ख़ुलासा हुआ. थाने के कार्यवाही प्रभारी मोहन सिंह समेत चार को निलंबित किया जा चुका है. गिरफ्तार किए गए तीन आरोपियों के मोबाइल की पड़ताल में पुलिस को इनके नवल के साथ टेक्स्ट मैसेज भी मिले हैं.
थाने के ग्यारह पुलिस कर्मी एक साथ छुट्टी पर
घटना वाले दिन ही रामगढ़ थाने के प्रभारी नवल किशोर मीणा तबादला होने की वजह से कार्यमुक्त हो गए थे और इसी दिन दोपहर में उन्होंने थाना स्टाफ के कुल ग्यारह पुलिस कर्मियों को एक साथ छुट्टी दे दी थी. थाने के डेढ़ दर्जन लोगों के स्टाफ़ में से ग्यारह को एक साथ छुट्टी देने से स्टाफ में कमी आ गई. खास बात ये है कि रामगढ़ थाने के जिन तीन पुलिस कर्मियों को लाइन हाज़िर किया गया है उनमे सुरेन्द्र सिंह नाम का पुलिसकर्मी भी है जो उस दिन रात को पुलिस टीम के साथ घटना स्थल पर गया ही नहीं था.
गाय को लाने वाली गाड़ी खुद नवल ने उपलब्ध करवाई
अकबर के साथ मारपीट के बाद रात करीब एक बजे नवल को लेकर तीनों पुलिसकर्मी थाने से रवाना हुए और पचीस मिनट बाद घटना स्थल पर पहुंचे. मौके पर रकबर कीचड़ और मिट्टी में सना हुआ ज़मीन पर पड़ा था. नवल और दूसरे लोगों ने उसे सहारा देकर उठाया. एक पेड़ के नीचे दो गाय खड़ी थी और इनको ले जाने के लिए नवल ने अपने रिश्तेदार की गाड़ी मंगाई. फिर रकबर को पुलिस की गाड़ी में और गायों को कुछ देर बाद आयी पिक अप गाड़ी में चढ़ाया गया. घटना स्थल से निकल कर कुछ दूर चलने के बाद पुलिस की गाड़ी जानवरों को पानी पिलाने के लिए एक खेत में बने पानी के कुंड के पास रुकी.
रकबर को नीचे उतारकर उसको एक पत्थर पर बैठाया गया. पानी का कुंड भरा था लेकिन पानी निकालने के लिए कोई बालटी या मग नहीं था. तब एक शख़्स पास के मकान से जाकर वहां से एक टीन का कनस्तर लेकर आने लगा. ये मकान मुन्नी देवी का था उन्होंने इस शख़्स को आवाज़ देकर टोका. इस कनस्तर से पानी निकाल कर रकबर को नहलाया गया ताकि उसके शरीर पर लगी मिट्टी और कीचड़ साफ़ हो जाए.
नहलाने के बाद रकबर पुलिस गाड़ी में बिठा दिया गया और फिर दोनो गाड़ियां वहां से रामगढ़ थाने के लिए रवाना हो गई. पुलिस की गाड़ी पहले गोविन्दगढ़ पहुंची और डालचंद चाय वाले की दुकान के बाहर खड़ी हो गई. दरअसल ये लोग गाय वाली पिकअप गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे. इसी दौरान डाल चंद ने चार चाय बनाकर पुलिस की गाड़ी में दी.
अलवर लिंचिंग: पीड़ित को अस्पताल ले जाने की बजाए गायों को गौशाला लेकर गए पुलिसवाले
रामगढ़ थाने से पहले एक दुकान पर लगे सीसीटीवी के फुटेज के मुताबिक, पुलिस की गाड़ी रात क़रीब 2.45 बजे थाने की तरफ जाती दिख रही है. इससे पहले रामगढ़ अस्पताल के सामने एक बिल्डिंग पर लगे सीसीटीवी के फुटेज में रात करीब 3.47 बजे पुलिस की गाड़ी अस्पताल की तरफ जाती दिख रही है. थाने से अस्पताल की दूरी महज पांच सौ मीटर है ऐसे में ये साबित होता दिख रहा है कि रकबर को करीब एक घंटे तक रामगढ़ पुलिस थाने में रखा गया था.
पुलिस नहीं समझ सकी रकबर की भीतरी चोटों की गंभीरता
रकबर पर हमले के दौरान उसकी कमर और पीठ पर लकड़ी के भारी डंडों का इस्तेमाल हुआ था जिसकी वजह से उसके शरीर पर काफी निशान भी पाए गए. लेकिन उसके शरीर पर कोई बाहरी घाव या ख़ून निकलने जैसी हालत नहीं थी. इसी वजह से पुलिस उसकी चोटों की गंभीरता को समझ ही नहीं सकी.
पुलिस अफसरों को मौत के बाद दी गई घटना की सूचना
अस्पताल से रकबर की मौत की पुष्टि होने के बाद कार्यवाहक थाना प्रभारी मोहन सिंह ने सबसे पहले सी ओ अलवर साउथ अनिल बेनीवाल को सुबह क़रीब चार बजे घटना की जानकारी दी.
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