राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद: एक पक्षकार ने जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में की अपील
राम जन्मभूमि विवाद में एक हिन्दू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट से मुख्य मामले पर जल्दी सुनवाई करने की अपील की है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है.
नई दिल्ली: अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित एक पक्षकार ने इस मामले की जल्द सुनवाई के लिए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. पक्षकार गोपाल सिंह विशारद का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये आठ मार्च को शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी लेकिन इसमें बहुत कुछ नहीं हो रहा है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की तीन सदस्यीय खंडपीठ से विशारद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस नरसिम्हा ने इस मामले का उल्लेख करते हुये कहा कि मालिकाना हक के इस विवाद को शीघ्र सुनवाई के लिये कोर्ट में सूचीबद्ध किये जाने की आवश्यकता है.
नरसिम्हा ने कहा कि तीन सदस्यीय समिति को कोर्ट द्वारा सौंपे गये भूमि विवाद के इस मामले में अधिक कुछ नहीं हो रहा है.
इस पर पीठ ने जानना चाहा कि क्या आपने शीघ्र सुनवाई के लिये आवेदन किया है. इस पर नरसिम्हा ने सकारात्मक जवाब दिया.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मध्यस्थता के लिये बनाई गयी इस समिति का कार्यकाल मई में 15 अगस्त तक के लिये बढ़ा दिया था ताकि वह अपनी कार्यवाही पूरी कर सके.
पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि यदि मध्यस्थता करने वाले परिणामों के बारे में आशान्वित हैं और 15 अगस्त तक का समय चाहते हैं तो समय देने में क्या नुकसान है? यह मुद्दा सालों से लंबित है. इसके लिये हमें समय क्यों नहीं देना चाहिए?
मध्यस्थता के लिये गठित समिति में न्यायमूर्ति कलीफुल्ला के अलावा अध्यात्मिक गुरू और आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर और जाने माने मध्यस्थता विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू को इसका सदस्य बनाया गया था.
शीर्ष अदालत ने आठ मार्च के आदेश में मध्यस्थता के लिये बनी इस समिति को आठ सप्ताह के भीतर अपना काम पूरा करने के लिये कहा था. इस समिति को अयोध्या से करीब सात किलोमीटर दूर फैजाबाद में अपना काम करना था. इसके लिये राज्य सरकार को पर्याप्त बंदोबस्त करने के निर्देश दिये गये थे.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल की 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारो-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांट दी जाये. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कुल 14 अर्जियां दायर की गयी हैं.
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