इलाहाबाद: अल्लाह के नेक बंदों पर रहमतों की बारिश करने वाला रमजान का पाक महीना आज (बृहस्पतिवार 17 मई) से शुरू हो गया है. इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रमजान के महीने में तीस दिनों तक रोज़े रखकर खुदा की बारगाह में सजदे करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. रोजदारों के लिए इस बार कुछ मुश्किलें हो सकती हैं, क्योंकि इस साल के रोज़े पंद्रह घंटों से ज्यादा वक्त के पड़ रहे हैं.


संगम के शहर इलाहाबाद में भी रमज़ान की तैयारियां पूरी हो गई हैं और खरीददारों की भीड़ के चलते बाज़ारों में चहल- पहल बढ़ गई है. हालांकि चांद को लेकर यहां असमंजस की स्थिति है. शिया समुदाय और देवबंदी मसलक के लोग आज से ही रमज़ान मनाएंगे, जबकि बरेलवी मसलक के लोग शुक्रवार यानी जुमे के दिन से रोजे रखेंगे.


रमजान के लिए सामान लेने वाले खरीददारों की भीड़ से गुलजार हैं इलाहाबाद के बाज़ार. कोई खजूर खरीद रहा है तो कोई सूतफेनी. किसी को टोपी खरीदनी है तो किसी को सहरी और इफ्तार के सामान. खुदा की इबादत में कोई कोर- कसर न रह जाए, इसके लिए धार्मिक किताबों, जानमाज़ और तस्वीह भी ली जा रही है. इस बार ईरान से आए खजूर की ज्यादा डिमांड है.


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रोजदारों को इस बार पंद्रह घंटो से ज्यादा का रोज़ा रखना होगा. यानी सुबह करीब पौने चार बजे से लेकर शाम सात बजे तक पानी की एक बूँद लेने पर भी मनाही होगी. करीब पचीस सालों बाद पंद्रह घंटे के रोज़े होने से लोगों को थोड़ी मुश्किल ज़रूर हो सकती है, लेकिन रोजगारों को इसकी कोई परवाह नहीं है. उनका मानना है कि जितनी ज्यादा देर तक रोज़ा रखना पड़ेगा, उन्हें इबादत करने और सबाब हासिल करने का उतना ही ज्यादा मौका मिलेगा.



इस्लामी कैलेण्डर के बारह महीनो में रमजान को सबसे पाक (पवित्र) और मुक़द्दस (इबादत के लिए महत्वपूर्ण ) महीना माना जाता है. कहा जाता है कि रमजान के महीने में तीस रोज़े रखकर अल्लाह की इबादत करने वालों के सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं और ज़िंदगी ख़त्म होने पर उन्हें जन्नत में जगह दी जाती है.


रमजान के महीने में की गई इबादत का फल आम दिनों से सत्तर गुना ज्यादा हासिल होता है. इस महीने में अल्लाह अपने बंदो की इबादत से खुश होकर उन पर रहमतों की बारिश करते हैं. रमजान के महीने में पूरे तीस दिनों तक सुबह की अज़ान होने के वक्त से लेकर सूरज डूबने के बाद होने वाली मगरब की अजान तक खाना- पानी छोड़कर रोज़ा रखना पड़ता है.


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इस दौरान लोगों को रोजाना पांच वक्त की नमाज़ अता करनी होती है तो साथ ही गुनाहों और बुराइयों से दूर रहते हुए अपना पूरा इबादत में बिताना पड़ता है. तीस दिन रोज़े रखकर इबादत करने वाले को ही ईद की खुशियाँ मनाने का मौका मिलता है.


रमजान के महीने की दस्तक के साथ ही इलाहाबाद के पुराने इलाकों में चहल- पहल बढ़ गई है. रोजदारों के मद्देनज़र मस्जिदों में सजावट कर वहां ख़ास इंतजाम किये गए हैं. शाम के वक्त कई जगहों पर लोग सामूहिक तौर इफ्तार (रोज़ा खोलना) करेंगे. इफ्तार पार्टियों में रोजदारों को कई ख़ास तरह के खाने के सामान परोसे जाते हैं.


हालांकि चांद के दीदार को लेकर इलाहाबाद के मुसलमान इस साल दो हिस्सों में बंट गए हैं. शिया समुदाय के धर्मगुरुओं ने चांद की तस्दीक करते हुए बृहस्पतिवार से रोजे रखे जाने का एलान किया है तो वहीं सुन्नी समुदाय में देवबंदी मसलक के लोग भी बृहस्पतिवार से ही रोजे रखने लगे हैं, जबकि ज़्यादा आबादी वाले बरेलवी मसलक के लोग शुक्रवार से रमज़ान मनाएंगे. इलाहबाद के शहर काजी ने भी चांद का एलान नहीं किया है.