मेरठ: दशहरे के दिन देश भर में रावण वध का मंचन होता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन रावण की ससुराल में यह परंपरा थोड़े बदलाव से मनाई जाती है. माना जाता है कि रावण की ससुराल मेरठ में है और यहां राम और रावण दोनों के अनुयायी रहते हैं. इसलिए यहां रावण की पूजा भी होती है और रावण का पुतला भी फूंका जाता है. मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र है और इसे लंकेश की महारानी मंदोदरी का पीहर कहा जाता है.


राम हो या रावण...इनसे जुड़ी किवदंतियां पूरे देश मे मौजूद है. मेरठ में रावण से जुड़ी किदवंती यह है कि यह शहर रावण का ससुराल और उसकी पत्नी मंदोदरी का मायका है. मायके के नाम से ही इसे प्राचीनकाल में मयराष्ट्र और फिर मेरठ कहा जाने लगा. यहां दशहरे के दिन घर-घर में रावण की पूजा होती है.


यहां रावण की पूजा दामाद के रूप में नहीं, उसे अपने काल के महाविद्वान और परमज्ञानी होने के कारण पूजा जाता है. दशहरे के दिन सुबह घर के लोग इस अनुष्ठान को करते हैं. एक लकड़ी की पटरे पर रावण के 10 सिर बनाए जाते हैं. रावण के 10 सिर गाय के गोबर से स्थापित किए जाते हैं और फिर मंत्रोच्चारण के साथ इन सिरों की पूजा की जाती है. घर के लोग खास करके पढ़ने-लिखने वाले बच्चे इस पूजा के माध्यम से रावण से बुद्धि और ज्ञान मांगते हैं.


रावण की इस पूजा के बाद गाय के गोबर से बनाए हुए सिरों को बहते जल में प्रवाहित कर दिया जाता है. शाम को रामलीला के मंचन के साथ रावण के पुतले फूंके जाते हैं. रावण की पूजा अनुष्ठान से जुड़े पंडित विद्याचरण त्रिपाठी बताते हैं कि रावण अपने काल का महाविद्वान और परमज्ञानी था.


भगवान राम ने खुद उसके वध के बाद इस बात को स्वीकारा है. श्रीराम ने लक्ष्मण से रावण के चरणों की ओर खड़े होकर ज्ञान मांगने को कहा था. श्रीराम के अनुयाई आज भी इस पूजा के जरिए रावण से ज्ञान की अभिलाषा रखते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र मेरठ में रावण की ससुराल होने की किदवंती भी जुड़ी हुई है इसलिए यहां यह पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है.