अयोध्या: छह दिसंबर 1992 में आखिर हुआ क्या था? उस दिन अयोध्या में हालात कैसे थे? कितने लोग उस दिन अयोध्या में थे? बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए प्लान कब से बनाया जा रहा था? कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब आज तक तलाश किए जा रहे हैं. उस दिन वरिष्ठ पत्रकार दिबांग भी अयोध्या में ही थे. एबीपी न्यूज़ संवाददाता पंकज झा उनके साथ अयोध्या की गलियों में पहुंचे और बाबरी ढहाए जाने के चश्मदीद रहे दिबांग से बात की.


दिबांग ने बताया कि हनुमान गढ़ी के पास उस दिन बहुत भीड़ थी, इतनी भीड़ कि चलना भी मुश्किल था. 5 नवंबर की रात अटल बिहारी वाजपेई के भाषण की बहुत चर्चा थी जिसमें उन्होंने जमीन समतल करने की बात कही थी.


पत्रकारों को भी पीटा गया था. कई लोगों को चोटें भी आई थीं. पत्रकारों को एक गुलाबी रंग का कार्ड दिया गया था ताकि पता चल सके कि कौन-कौन पत्रकार है. पथराव शुरु हुआ तो पीएसी के जवानों ने मैदान छोड़ दिया और भागने लगे.



दिबांग ने बताया कि कुदालें, गेंदी, हथौड़े लेकर कारसेवक पहुंचे थे. साफ था कि तैयारी पूरी थी. एक के बाद एक लोग गुबंदों पर चढ़ने लगे थे. मानस भवन में पत्रकारों को आश्रय मिला था. हमें लग रहा था कि बहुत ऐतिहासिक चीज हो रही है. हम मानस भवन की छत पर चढ़ गए थे.


उन्होंने बताया कि हम दो पत्रकारों ने कारसेवकों की तरह सिरों पर पट्टी बांध ली थी. हम मौके पर पहुंचे तो साफ हो गया था कि आज शायद बाबरी को तोड़ दिया जाएगा. थोड़ी देर में ही पहला मुख्य गुंबद गिर गया था. वहां धूल ही धूल थी. फिर बाकी दोनों गुंबद भी गिरा दिए गए थे.


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