बीमार होने लगी है लोगों को जीवन देने वाली गंगा
जो गंगा सदियों से न सिर्फ करोड़ों लोगों की आस्था बल्कि एक पूरी सभ्यता की पहचान रही है उसकी अविरलता रुक गई है, वह दूषित हो गई है, उसके वजूद पर संकट मंडराने लगा है.
नई दिल्ली: सदियों से देश दुनिया ने जाना है गंगा गंगोत्री से निकलती है. बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है. कई राज्यों को जिन्दगी देती गंगा ढाई हजार किलोमीटर तय करती है. लेकिन जो गंगा सदियों से न सिर्फ करोड़ों लोगों की आस्था बल्कि एक पूरी सभ्यता की पहचान रही है उसकी अविरलता रुक गई है, वह दूषित हो गई है, उसके वजूद पर संकट मंडराने लगा है. क्योंकि देश के 5 राज्यों के 97 शहरों से गुजरने वाली गंगा को सरकार हर पल साफ और अविरल करने की कसम खाती है पर गंगा हर पल मैली होती जा रही है.
गंगा में हर दिन गिराया जाता है करीब 1369 मिलियन लीटर कचरा
गंगा में हर दिन करीब 1369 मिलियन लीटर कचरा गिराया जा रहा है.गंगा की सफाई के नाम पर 20 हजार करोड़ रुपए का फंड है.पर जो हालात गंगा सफाई को लेकर हैं वो कितने त्रासदी वाले हैं ये इससे भी समझा जा सकता है कि तीन साल पहले 2015 में ''नमामि गंगे'' के नाम से मोदी सरकार ने गंगा की सफाई का अभियान शुरू किया और 3 बरस बाद 20 हजार करोड़ में से अब तक सिर्फ 4131 करोड़ रुपए ही दिए गए हैं और उसमें से भी फरवरी 2018 तक सिर्फ 3062 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाए हैं. मतलब ना पैसे की कमी है ना योजनाओं की लेकिन गंगा फिर भी मैली हो रही है.
नमामि गंगे के नाम पर होती है सिर्फ घाटों की झाड़-पोंछ यहां तक कि उस वाराणसी में भी गंगा की हालत में कोई सुधार नहीं जहां 4 साल पहले लोकसभा चुनाव के वक्त नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है. अब पीएम के संसदीय क्षेत्र के लोग कह रहे हैं कि 4 साल बाद बी गंगा वैसी ही गंदी है, उसमें पहले की तरह नालों का पानी गिराया जा रहा है और नमामि गंगे के नाम पर सिर्फ घाटों की झाड़ पोंछ की जाती है.
शहर-दर-शहर एक जैसी है गंगा में गिरते गंदे नालों की कहानी गोमुख से गंगा सागर तक की यात्रा कर चुके प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी का कहना है कि जब तक पर्याप्त संख्या में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाए जाएंगे तब तक वाराणसी में गंगा साफ नहीं हो सकती. हालत ये है कि वाराणसी के नगवा नाले के पानी को गंगा में जाने से रोकने के लिए जो प्लांट लगाया गया वो 10 साल बाद भी काम नहीं कर रहा है और गंगा में गिरते गंदे नालों की कहानी शहर दर शहर एक जैसी है. कानपुर में तो गंगा का स्वागत ही गंदगी से होता है. गंगा बैराज से लेकर जाजमऊ तक 22 नालों का पानी गंगा में गिरता है, जिसमें से सिर्फ 12 नालों का ट्रीटमेंट हो रहा है बाकी के 10 नालों का गंदा पानी उसी तरह गंगा में मिलता जा रहा है.
कानपुर में हर दिन 50 लाख लीटर से भी ज्यादा कचरा गंगा में गिराया जाता है
यूपी का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर में हर दिन 50 लाख लीटर से भी ज्यादा कचरा गंगा में गिराया जा रहा है और इसमें चमड़े की फैक्ट्रियों से निकलने वाले वेस्ट से लेकर खतरनाक केमिकल तक शामिल हैं जिससे कैंसर जैसी बीमारियों के होने का खतरा रहता है.यानी जिस गंगा में लोग पवित्र होने के लिए डुबकी लगाते हैं वो अब बीमार करने वाली बन चुकी है.
संगम में डुबकी लगाने आए लोग सिर्फ आचमन करके ही लौट जाते हैं संगम के शहर इलाहाबाद में तो मोक्षदायिनी गंगा खुद अब एक नाले जैसी नजर आने लगी है. यहां गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर रोजाना करीब एक लाख श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने आते हैं लेकिन गंगा की हालत देखकर सिर्फ आचमन करके ही लौट जाते हैं. घाट पर चारों तरफ गंदगी ही गंदगी है. संगम में गंगा का पानी न पीने लायक बचा है न नहाने लायक.
अगले साल कुंभ में 15 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद है शहर के 54 बड़े नालों और फैक्ट्रियों का पानी सीधे गंगा में गिरता है. 4 में से 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बंद पड़े हुए हैं.इलाहाबाद में गंगा की ये हालत तब है जब कुछ दिनों बाद यहां कुंभ का मेला लगने वाला है, जिसमें करीब 15 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद है. गंगा की ये हालत तब है जब बीते 30 बरस में गंगा की सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रुपए बहाए जा चुके हैं.