आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी की कन्हैया को नसीहत- चुनाव लड़ने की बजाय पार्टी को मजबूत बनाएं
शिवानंद तिवारी ने कहा, ''कन्हैया को मैं पसंद करता हूं. उनका प्रशंसक हूं. बगैर संसद में गए उनकी एक राष्ट्रीय छवि बन गई है. लोग उनको सुनते हैं. मीडिया उनको पसंद करता है.''
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पटना: जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को आरजेडी के सीनियर नेता शिवानंद तिवारी ने सलाह दी है. उन्होंने कहा कि क्यों नहीं पांच-दस साल कन्हैया पार्टी को ताकतवर बनाने में लगाते हैं. पार्टी का ढांचा तो है लेकिन नेतृत्व पुराना पड़ चुका है. उसमें आकर्षण नहीं बचा है. कन्हैया में आकर्षण है. मुझे लगता है कि चुनाव लड़ने की इच्छा को दबाकर उन्हें इस दिशा में अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए. यह मेरी निजी राय है.
बगैर संसद में गए कन्हैया की राष्ट्रीय छवि बन गई है- शिवानंद तिवारी
शिवानंद तिवारी ने कहा, ''कन्हैया कुमार चुनाव लड़ने के लिए इतना बेचैन क्यों हैं? कन्हैया को मैं पसंद करता हूं. उनका प्रशंसक हूं. बगैर संसद में गए उनकी एक राष्ट्रीय छवि बन गई है. लोग उनको सुनते हैं. मीडिया उनको पसंद करता है. देश के कितने ऐसे सांसद हैं जिनको यह स्थान और प्रतिष्ठा प्राप्त है? वे अभी बत्तीस साल के हैं. राजनीति की उनकी धारा वामपंथी है. सीपीआइ से जुड़े हैं. एक समय बिहार की सियासत में सीपीआइ एक ताक़त थी. अब वह अतीत की बात हो गई. कन्हैया में एक आकर्षण है. जाति-मज़हब के दायरे को लाँघ कर नौजवान उनके पीछे हो जा रहे हैं.''
इसके साथ ही शिवानंद तिवारी ने एक किस्से का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ''उस ज़माने में लोहिया विचार मंच का मैं कार्यकर्ता हुआ करता था. किशन पटनायक हमारे नेता थे. लोहिया के बाद समाजवाद की उस धारा का मैं उनको मौलिक चिंतक मानता हूं. एक मरतबा बात निकली कि समाजवादी कार्यकर्ता को किस उम्र में चुनाव लड़ना चाहिए. किशन जी का जवाब था कि चालीस की उम्र के पहले चुनाव लड़ना ठीक नहीं है. ऐसा क्यों? उनका जवाब था कि आदमी जब जवान रहता है तो उसके अंदर एक तरह की आदर्शवादिता रहती है. कुछ कर गुज़रने का जोश और उमंग होता है. उस उम्र में चुनाव लड़ने का अर्थ है उस आदर्शवादिता से समझौता करना. उनके अनुसार चुनाव लड़ने और जीतने के लिए आपको समझौते करने पड़ते हैं. अपनी आदर्शवादिता पर क़ायम रहते चुनाव लड़ना और जीतना संभव नहीं है.''
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