रांची: बिहार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसकी एक और बानगी देखने को मिली है. बीजेपी के सहयोग से बिहार में सरकार चला रही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 'गठबंधन धर्म' तोड़ आज झारखंड में बीजेपी की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. जेडीयू ने पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर मोदी सरकार के रवैये पर सवाल उठाए.


जेडीयू के राज्यसभा सांसद हरीवंश नारायण सिंह ने कहा कि रघुवर दास की सरकार में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है. पावर कट से लोग परेशाना है. उन्होंने कहा, ''झारखंड में बिहार जैसी पॉलिसी की जरूरत है.'' जेडीयू ने पिछले दिनों आए लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव परिणाम में बीजेपी को झटका लगने पर कहा था कि लोग पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से परेशान है और इसी का नतीजा है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की हार हुई है.


...तो 40 सीटों पर लड़े बीजेपी
झारखंड के साथ बिहार में भी जेडीयू ने बीजेपी को सख्त संदेश देने की कोशिश की. जेडीयू के नेता संजय सिंह ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा, ''बिहार में बीजेपी के जो नेता सुर्खियों में बनना चाहते हैं, उन्हें नियंत्रण में रखा जाना चाहिए. 2014 और 2019 के बहुत अंतर है. बीजेपी को पता है कि वह बिहार में बिना नीतीश कुमार के साथ चुनाव जीतने में सक्षम नहीं होगी. अगर बीजेपी को सहयोगियों की जरूरत नहीं है, तो वह बिहार में सभी 40 सीटों पर लड़ने के लिए स्वतंत्र है.''





दरअसल, बिहार में 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था. जेडीयू को इसकी कीमत चुकानी पड़ी और कुल 40 सीटों में से मात्र दो सीटों पर सिमट गई. अब एक बार फिर जेडीयू बीजेपी के साथ है. जेडीयू 40 में से 25 सीटें मांग रही है. जो किसी भी कीमत पर संभव नहीं है. बीजेपी के साथ रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी भी है. एलजेपी ने पिछले चुनाव में 6 और आरएलएसपी ने 3 सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी ने मोदी लहर में 22 सीटों पर सफलता हासिल की थी.


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इसी मसले पर जेडीयू-बीजेपी के बीच लंबे समय से खटपट चल रहा है. कई मौकों पर दोनों दलों के बीच की वर्चस्व की लड़ाई सार्वजनिक मंच पर भी दिखी. पिछले दिनों ही जब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पटना में कार्यक्रम आयोजित किया गया तो बीजेपी नेताओं के साथ नीतीश या उनके पार्टी के कोई सदस्य नहीं दिखे. जबकि ये कार्यक्रम सरकार की तरफ से आयोजित किये गये थे.


विशेष राज्य का मसला हो या सूबे में बढ़ी सांप्रदायिक हिंसा जेडीयू लगातार इशारों-इशारों में बीजेपी पर निशाना साध रही है. साफ है कि नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के एक साल पहले से ही दबाव बना रहे हैं की उनकी बड़े भाई की भूमिका बनी रहे. अगर सीटों पर सहमति नहीं बनती है तो दूसरे रास्तों यानि अन्य दलों के साथ गठबंधन के रास्ते अपनाए जाएं. कांग्रेस भी बीच-बीच में नये तरह के गठबंधन को हवा देती रही है. पिछले दिनों ही कांग्रेस ने नीतीश कुमार से कहा था कि अगर वह बीजेपी का साथ छोड़ते हैं तो महा-गठबंधन (कांग्रेस, आरजेडी, हम) में उनका स्वागत है.


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आज ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्ता आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने कहा, ''अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद छोड़ कर महागठबंधन में शामिल होते हैं, तब तेजस्वी यादव 2020 में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में हमारे सीएम पद का चेहरा होंगे.''


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