नई दिल्ली: यूपी में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी का दंगल थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. आलम ये है कि पार्टी अब पूरी तरह से दो खेमों में बंट चुकी है. एक तरफ मुलायम और शिवपाल तो दूसरी तरफ अखिलेश के साथ रामगोपाल यादव हैं. दोनों ही गुट समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल को अपना बनाना चाहते हैं. इसे लेकर आज दोनों गुट के नेता एक बार फिर चुनाव आयोग से मुलाकात करने वाले हैं. ऐसे में ये कयास तेज हो गए हैं कि आखिर किसकी होगी ‘साइकिल’ ?


जानें अब क्या-क्या हो सकता है ?


अब समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान का मामला आयोग तक पहुंच चुका है तो इस मुद्दे पर आखिरी फैसला चुनाव आयोग ही करेगा. आपको बता दें कि सबसे पहले चुनाव आयोग दोनों पक्षों की दलीलों को सुनेगा. उसके बाद चुनाव आयोग ये तय करेगा कि आखिर चुनाव चिन्ह साइकिल किसे देना है.


किसके पास रहेगा सिम्बल और नाम ?


इसका फ़ैसला आसान नहीं होता. कोई एक पार्टी चुनाव आयोग के पास जाएगी. इसके बाद आयोग एक तरह का जूडिशल प्रॉसेस शुरू करेगी. यानी दूसरी पार्टी को नोटिस देगी और पूछा जाएग कि आप क्या कहते हैं ? वो अपना पक्ष रखेंगे फिर सबूत पूछे जाएंगे. कौन किसके साथ है, ये देखा जाएगा. हर एक पक्ष अपनी-अपनी लिस्ट पेश करेगा फिर चुनाव आयोग की कोर्ट में इसका केस चलेगा. इनकी सुनवाई होगी और फिर फ़ैसला हो पाएगा की कौन सी पार्टी रियल पार्टी है. आपको बता दें कि इस प्रॉसेस में चार से पांच महीने नॉर्मली लग ही जाते हैं.


जल्द ही होने वाला है विधानसभा चुनाव


इस प्रॉसेस में चार-पांच महीने लगेंगे और इस बीच इलेक्शन बिलकुल सर पर है. ऐसे में दोनो पार्टी ये कहे कि नाम और सिम्बल हमारे पास रहे ये संभव नहीं तो ऐसी सूरत में ये होता है कि पार्टी का नाम और सिम्बल ले लिया जाता है और अढ़ॉक फॉर्मूले से टेंपरेरी सिम्बल और नाम भी दिया जाएगा.


ऐसे में दोनों को मिलेगा टेम्परेरी सिम्बल


एक नयी पार्टी को रजिस्टर होने में दो से तीन महीने लगते है और इस बीच इलेक्शन एक दम सामने है तो दोनों पार्टियों को टेम्परेरी सिम्बल मिलेगा. कुछ वक़्त के लिए मिले सिम्बल और नाम पर वो दोनों फ़्रैक्शन (पार्टियां) अपने उम्मीदवार चुनाव में उस सिम्बल पर उतार सकते हैं.


मेजोरिटी टेस्ट ही किया जाता है अप्लाई


इसी बीच चुनाव आयोग के द्वारा ये देखा जाएगा कि किसकी पार्टी रजिस्टर है ? उसकी हिस्ट्री क्या है ? संविधान के तहत क्या-क्या गतिविधि हुई है. दूसरी तरफ़ ये देखा जाएगा कि किसके साथ मेजॉरिटी है. इंडियन नैशनल कांग्रेस जब स्पिल्ट हुई थी तब सुप्रीम कोर्ट ने यह क्लीयर फ़ैसला किया था कि इलेक्शन कमिशन ने जो मेजोरिटी का टेस्ट अप्लाई किया है वो बिलकुल ठीक है और उसके बाद से मेजोरिटी टेस्ट ही अप्लाई किया जाता है.


जब्त हो सकता है साइकिल चुनाव चिन्ह


पूर्व निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि दोनों में से किसी भी गुट को साइकिल चुनाव चिन्ह न मिले. मतलब ये है कि किसी भी पक्ष के पास ये सिंबल नहीं होगा, दोनों ही पक्ष जब तक फ़ैसला नहीं हो जाता ये सिम्बल और नाम नहीं यूज़ कर सकते हैं. बाद में जो फ़ैसला होगा उस गुट को वो सिम्बल मिलेगा और तब तक टेम्परेरी सिम्बल से ही काम चलाना होगा.


पहले भी जब्त हुआ है चुनाव निशान


अगर समाजवादी पार्टी की चुनाव चिन्ह जब्त होता है तो यह राजनीति में पहली बार नहीं होगा. चुनाव चिन्ह जब्त करने का सबसे बड़ा उदाहरण हैं सत्रह साल पहले 1999 के लोकसभा चुनाव का है. उस वक्त जनता दल में टूट हुई थी.


दरअसल जनता दल का चुनाव चिन्ह चक्र हुआ करता था. शरद यादव, पासवान, देवगौड़ा एक साथ जनता दल में थे. वाजपेयी को समर्थन के सवाल पर जनता दल में फूट पड़ी. देवगौड़ा वाजपेयी को समर्थन के खिलाफ थे ते शरद यादव बीजेपी के समर्थन में थे. दोनों खेमे ने खुद को असली जनता दल बताया और चक्र पर दावा किया.


मामला चुनाव आयोग पहुंचा और चक्र के साथ साथ नाम भी जब्त हो गया. शरद यादव के जेडीयू का तीर मिला तो देवगौड़ा के जीडीएस को महिला के सिर पर धान की बाली का चिन्ह मिला.