इलाहाबाद: इलाहाबाद में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर इन दिनों माघ का मेला लगा हुआ है. तकरीबन डेढ़ महीने तक चलने वाले इस माघ मेले में रोजाना कई लाख श्रद्धालु संगम की धारा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं. संगम तक जाने के लिए श्रद्धालुओं के पास सिर्फ नाव का ही सहारा होता है. संगम के अलग-अलग घाटों पर आम दिनों में तकरीबन दो हजार नावें चलती हैं, लेकिन माघ मेले के दौरान इनकी संख्या बढ़कर तीन हजार से ऊपर हो जाती है.
मॉनीटरिंग करने वाला भी कोई नहीं
हैरान कर देने वाली बात यह है कि ये श्रद्धालु घाट से संगम तक का नाव का सफर भगवान भरोसे तय करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इन तीन हजार नावों में से किसी में भी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होते. किसी भी नाव पर न तो लाइफ सेविंग जैकेट होती है, न ही सेफ्टी किट या फिर रबर की ट्यूब. नाविक ट्रेंड है या नहीं या फिर वह पैसे कमाने के लिए नाव पर कितनी सवारियां बिठा रहा है, इसकी मॉनीटरिंग करने वाला भी कोई नहीं होता.
नाव में रबर की ट्यूब तक नहीं
कहने को तो इस माघ मेले के लिए संगम की रेती पर अलग शहर ही बसाया जाता है, लेकिन अलग- अलग घाटों से संगम तक आने जाने के लिए नाव के किराए का कहीं एक बोर्ड तक नहीं लगा हुआ है. नियम के मुताबिक़ मेले के दौरान छोटी नाव पर छह और बड़ी नाव पर आठ सवारियां बिठाई जा सकती है.
बड़ी नाव पर दो नाविक होने चाहिए, लेकिन पटना की घटना के बाद किये गए रियलिटी चेक में ज़्यादातर नावों पर दस से सोलह और सत्रह यात्री सवार नजर आए. किसी भी एक नाव में रबर की ट्यूब तक नहीं दिखी. श्रद्धालुओं को लाइफ सेविंग जैकेट पहनाना दूर की बात रही, पूरे मेला क्षेत्र में चलने वाली तीन हजार नावों पर यह कहीं नजर तक नहीं आई. नाविक श्रद्धालुओं से मोलभाव करते और मनमाना किराया वसूलते नजर आए.
नशे की हालत में नाव चलाते हैं तकरीबन एक तिहाई नाविक
देश के अलग- अलग हिस्सों से आए कई श्रद्धालुओं ने तो यह बताया कि घाट से संगम तक के सफर के दौरान उनकी सांस अटकी रही. किसी ने आंख बंद कर यह सफर तय किया तो कोई राम नाम जपते और गंगा मइया की आरधना करते हुए अपनी सलामती की कामना करता रहा. तकरीबन एक तिहाई नाविक तो यहां नशे की हालत में नाव चलाते हैं. कई श्रद्धालुओं ने तो यह दावा किया कि नावों पर सुरक्षा के कोई इंतजाम न होने की वजह से डर के चलते उन्होंने नाव का सफर ही नहीं किया और किनारे से ही पूजा-अर्चना करते हुए वापस जा रहे हैं.
घाट से संगम तक का सफर भगवान भरोसे
मेले को छोड़िये, संगम के अलग- अलग घाटों पर आम दिनों में भी जल पुलिस व पी.ए.सी की टुकडी तैनात रहती है. उनकी नावें व स्टीमर भी लगाई जाती हैं लेकिन यह व्यवस्था सिर्फ वीआईपी घाट पर रसूख वालों के लिए ही होती हैं. पटना हादसे के अगले दिन संगम के कई घाटों का जायजा लिया गया, लेकिन कहीं भी न तो पुलिस और पीएसी की टीमें नजर आई और न ही इमरजेंसी पड़ने पर राहत व बचाव का काम करने वाली सरकारी नावें व स्टीमर. ज़्यादातर श्रद्धालुओं का भी यही कहना है कि उन्होंने घाट से संगम तक का सफर भगवान भरोसे ही तय किया.
संगम पर कभी भी हो सकता है पटना जैसा हादसा
इस बारे में माघ मेला प्रशासन और पुलिस के अफसरों से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया और दावा किया कि अगले स्नान पर्व से पहले नावों की सुरक्षा से जुड़े सभी नियमों का सख्ती से पालन कराया जाएगा. फोन पर की गई बातचीत में अफसरों ने दलील दी कि माघ मेला शुरू हुए अभी सिर्फ चार दिन हुए हैं, इसलिए कुछ कमियां रह गई हैं, लेकिन इन्हें आगे दूर कर लिया जाएगा. अब भला इन अफसरों को यह कौन समझाए कि सिर्फ चार दिनों में ही एक करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालु मेले में आकर ज़िंदगी को दांव पर लगाते हुए संगम पर आस्था की डुबकी लगा चुके हैं. साफ़ है कि पटना जैसा हादसा संगम पर कभी भी हो सकता है.
नावों पर बचाव के लिए ज़रूरी उपकरण, खतरे, बचाव के तरीके और संगम के नावों की स्थिति:-
1- नावों पर जितने लोग बैठें, उतनी लाइफ सेफ्टी जैकेट होनी चाहिए. लाइफ सेफ्टी जैकेट लोगों को डूबने से बचाती है और आदमी डूबने के बजाय पानी में ऊपर तैरता है. बचाव के लिए यह सबसे ज़रूरी चीज होती है. संगम पर चलने वाली तकरीबन तीन हजार प्राइवेट नावों में से यह किसी में भी मौजूद नहीं है.
2- नावों पर कम से कम एक लाइफगार्ड किट ज़रूर होनी चाहिए. लाइफगार्ड किट एक ट्यूब होती है जिसमे काफी बड़ी रस्सी लगी होती है. किसी भी डूबते हुए आदमी की तरफ इसे फेंक दिया जाता है और रस्सी के सहारे उसे किनारे की तरफ खींचा जाता है. संगम की किसी भी प्राइवेट नाव में यह मौजूद नहीं है.
3- अगर मंहगे लाइफ सेफ्टी जैकेट और लाइफगार्ड किट नहीं है तो कम से कम हवा भारी हुई रबर की साधारण ट्यूब को ही नाव में ज़रूर रखना चाहिए. प्राइवेट नावों के लिए यह बेहद अहम होती है. यह लाइफ गार्ड किट की ही तरह काम करता है और डूबते हुए आदमी को बचाने में मदद करती है ,बाज़ार में यह ट्यूब आसानी से पचास से सत्तर रूपये में मिल जाती है. संगम की प्राइवेट नावों में किसी में भी यह ट्यूब मौजूद नहीं है.
4- नाव पर क्षमता (लिमिट) से ज़्यादा सवारियां नहीं बैठानी चाहिए, इससे उसके असंतुलित होकर पलटने का ख़तरा बढ़ जाता है, लेकिन पैसे कमाने की लालच में संगम के नाविक ज्यादा से ज्यादा सवारियां बिठाकर लोगों की जान जोखिम में डालते हैं.
5- नाव में कहीं पर भी कोई छेद (लीकेज) नहीं होना चाहिए, अगर नाव में कहीं से भी थोडा पानी आ रहा है तो उसका भार (वजन) बढ़ जाता है और उसके पलटने या डूबने का ख़तरा बढ़ जाता है. फिलहाल ऐसी कोई नाव नजर तो नहीं आई, लेकिन ज़्यादातर नावें पुरानी हो चुकी हैं और उन्हें किसी तरह मरम्मत कर ज़बरदस्ती चलाया जा रहा है.
6- नाव हमेशा ट्रेंड (प्रशिक्षित) लोगों को ही चलानी चाहिए. नाविक को खुद अच्छा तैराक भी होना चाहिए. अनट्रेंड लोगों के नाव चलाने से तेज़ हवा चलने, तूफ़ान आने या सावधानी न बरतने पर इसके पलटने और डूबने का ख़तरा रहता है. संगम पर कौन नाव चला रहा है और नाविक नशे की हालत में तो नहीं है, इसकी मानीटरिंग शायद ही कभी होती हो.
7- सवारियां बिठाते वक्त ही और खतरे की संभावना होने पर नाव में बैठी सवारियों को बचाव के तरीकों के बारे में ज़रूर बता देना चाहिए, ताकि लोग सतर्क रहें और ख़तरा होने पर अपनी सुरक्षा के लिए प्रयास कर सकें. संगम पर ऐसे कोई इंतजाम नहीं है.
8- सार्वजनिक और महत्वपूर्ण जगहों पर गोताखोर और जल पुलिस के जवानो को अत्याधुनिक उपकरणों के साथ तैनात किया जाना चाहिए ताकि नाव पलटने या डूबने पर वह लोगों की मदद कर सकें. संगम की महत्ता को देखते हुए यहाँ मेले के अलावा आम दिनों में भी जल पुलिस और पी. ए.सी. के की टीम तैनात की जाती है लेकिन यह लोग निगरानी रखने के बजाय नाविकों से वसूली करने और वीआईपी की खिदमत करते ही नजर आते हैं.
9- नावों पर बैठने वाली सवारियों का किराया और पूरी नाव बुक करने का रेट निर्धारित होना चाहिए और जगह - जगह इसके बोर्ड भी लगे होने चाहिए, लेकिन संगम पर ऐसा कुछ भी नहीं है.