कौशांबी, एबीपी गंगा. यूपी के कौशांबी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन अभियान को ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव पलीता लगा रहे हैं. यहां पर मूरतगंज ब्लॉक के पंसौर गांव में शौचालय निर्माण की 10 लाख 38 हजार धनराशि में जमकर बंदरबांट किया जा रहा है. घोटाले की जानकारी जब विभाग को हुई तो आरोपी प्रधान और सेक्रेटरी से जवाब मांगा गया. लेकिन कोरोना काल मे लॉक डॉउन हो गया तो मानो प्रधान व सेक्रेटरी को रामबाण मिल गया हो.


लॉकडॉउन के कारण पंसौर गांव के प्रधान व सेक्रेटरी ने पंचायती राज विभाग को घोटाले के बारे में कोई जवाब नहीं दिया. प्रधान और सेक्रेटरी ने मिलीभगत कर 21 ऐसे लाभार्थियों को शौचालय की धनराशि 2 लाख 52 हजार रुपए दिए, जो पहले भी शौचालय का लाभ पा चुके हैं. इनके कारनामे का खुलासा होने पर हड़कंप का माहौल है.


21 लाभार्थियों को दोबारा दिये गये पैसे
मूरतगंज ब्लाक के पंसौर ग्राम प्रधान ज्ञानमती और सेक्रेटरी मुकेश कुमार गुप्ता ने एक ही दिन यानि 4 जनवरी 2020 को संयुक्त हस्ताक्षर से 10 लाख 38 हजार रुपए निकाल लिया. मोटी कमाई के चक्कर में उन्होंने मनमाने तरीके से 12 हजार रुपए की दर से 87 शौचालय की धनराशि अपात्र लाभार्थियों के खाते में ट्रांसफर करवा दिया. इनमे 61 लाभार्थी ऐसे मिले, जो पात्रता सूची ( एमआईएस) में हैं ही नही.


इनके खाते में 7 लाख 32 हजार भेज दिया. हैरानी की बात तो यह है कि दोनों ने 21 ऐसे लाभार्थियों को भी शौचालय का लाभ दिया, जिन्हें पहले से ही निर्मल भारत अभियान के तहत शौचालय का लाभ दिया गया था. इनके खाते में लगभग 2 लाख 52 हजार ट्रंसफर करवा दिया. जबकि पहले शौचालय का लाभ पाने वाले लाभार्थियों को योजना का लाभ नहीं देना चाहिए. सूत्रों की माने तो प्रधान व सेक्रेटरी ने पहले ही लाभार्थियों से कुछ रकम देने के बाद बाकी का पैसा लेने के लिए सेटिंग कर ली थी. चंद पैसों की लालच में ग्रामीण भी घोटाले में सहयोगी बन गए.


प्रधान को जारी किया गया कारण बताओ नोटिस
पंचायती राज विभाग को जनवरी 2020 को घोटाले की जानकारी हुई तो डीपीसी सुजीत शुक्ला व एडीओ पंचायत मूरतगंज चंद्र भान सिंह ने गांव पहुंचकर स्थलीय सत्यापन किया. जांच के दौरान घोटाले की कड़ी परत दर परत खुल गई. आरोप सिद्ध होने के बाद डीपीआरओ गोपाल जी ओझा ने फरवरी 2020 में ग्राम प्रधान ज्ञानमती एवं ग्राम पंचायत सचिव मुकेश कुमार गुप्ता व तत्कालीन सेक्रेटरी रामकृत राम को कारण बताओ नोटिस जारी कर हफ्ते भर के भीतर जवाब मांगा. लेकिन लॉकडाउन होने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया तो प्रधान और सेक्रेटरी भी जवाब देने में कोताही बरतने लगे. अब सवाल यह है कि जब सरकार के नुमाइंदे ही सरकारी योजनाओं को पलीता लगाएंगे तो पात्र लाभार्थियों को योजना का लाभ कैसे मिलेगा. ग्राम प्रतिनिधि ने सिर्फ 3 लाभार्थियों के बारे में दोबारा शौचालय देने की बात स्वीकार किया.