लखनऊ: यूपी के एक यात्री को ट्रेन से धक्का मार कर उतार दिया गया. वो भी 73 साल के सीनियर सिटीज़न को. बस इसीलिए कि उनके पास जो टिकट था वो एक हज़ार साल आगे का था. मतलब टिकट पर साल वाले कॉलम में 3013 लिखा हुआ था.


बात अब से 5 साल पहले यानी साल 2013 की है. सहारनपुर के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर विष्णु कांत शुक्ल ने सहारनपुर से जौनपुर जाने के लिए ट्रेन का टिकट लिया. थर्ड एसी कोच में वे सवार हुए. टीटीई ने उनका टिकट चेक कर शुक्ल को ट्रेन से उतरने को कहा.


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उन्होंने जब कारण पूछा तो बताया गया कि टिकट ग़लत बना है. रेलवे की ग़लती से टिकट पर 19-11-3013 लिखा हुआ था. शुक्ल ने कहा इसमें मेरा क्या क़सूर, मैंने तो सही फ़ार्म भरा था. टिकट बनाने वाले की ग़लती है लेकिन टीटीई नहीं माने.



टीटीई ने 800 रूपये जुर्माना देने पर यात्रा की इजाज़त देने की बात कही. शुक्ल तैयार नहीं हुए तो उन्हें धक्का मार कर ट्रेन से नीचे उतार दिया गया.


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रिटायर्ड प्रोफ़ेसर विष्णु कांत शुक्ल को अपने मित्र के यहाँ जौनपुर जाना था जिनकी पत्नी का निधन हो गया था. शुक्ल ने रेलवे के ख़िलाफ़ अपने पड़ोसी वक़ील की मदद से उपभोक्ता कोर्ट में केस कर दिया. लगातार पाँच सालों तक मुक़दमा चलता रहा.


शुक्ल का कहना है कि रेल के अफ़सरों ने जान बूझ कर मामला लटकाने की कोशिश की. किसी न किसी बहाने परेशान करते रहे. ट्रेन का टिकट लेने के लिए शुक्ल ने जो फ़ार्म भरा था, रेलवे विभाग को वो भी नहीं मिला.


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लेकिन एक कहावत है भगवान के घर देर है लेकिन अंधेर नहीं. 12 जून को उपभोक्ता अदालत का फ़ैसला आया. कोर्ट ने रेलवे पर 10 हज़ार रूपयों का जुर्माना लगाया.


अदालत ने कहा कि एक बुज़ुर्ग को बीच सफ़र में ट्रेन से उतारना ग़लत है. इस से उन्हें शारीरिक और मानसिक पीड़ा हुई है. अगर उन्होंने ट्रेन का टिकट ठीक से नहीं देख पाये तो रेलवे अपनी ग़लती से नहीं बच सकता है.