नई दिल्ली: तीन तलाक बिल पर लोकसभा में चर्चा चल रही है. चर्चा की शुरुआत करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि 20 से ज्यादा इस्लामिक देशों ने इस बदला है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इसे गलत बता चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पीड़ित बहनें क्या घर में टांगे? वहीं कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी, टीएमसी जैसे कई विपक्षी दल मौजूदा फॉर्मेट में बिल का विरोध कर रहे हैं. एनडीए की सहयोगी पार्टी जेडीयू ने तीन तलाक बिल के विरोध का फैसला किया है.


जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा, ''जेडीयू का जो पुराना स्टैंड है वहीं कायम है. चाहे वो तीन तलाक का मामला हो या राम मंदिर का मामला हो या धारा 370 का मामला हो इन सब पर जेडीयू ने अपना स्टैंड पहले ही क्लीयर कर दिया है. तीन तलाक बिल का जो मौजूदा प्रारूप है, उसका हम विरोध करते हैं. आज भी जेडीयू विरोध करेगी. इन सब मामलों में सभी दलों को एक साथ बैठा कर तय करने की जरूरत थी पर ऐसा नही किया गया. हम लोग अपने पुराने स्टैंड पर ही कायम हैं.''


लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा जाएगा. विधेयक में एक साथ, अचानक तीन तलाक दिए जाने को अपराध करार दिया गया है और साथ ही दोषी को जेल की सजा सुनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है.


नरेंद्र मोदी सरकार ने मई में अपना दूसरा कार्यभार संभालने के बाद संसद के इस पहले सत्र में सबसे पहले इस विधेयक का मसौदा पेश किया था. कई विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया है लेकिन सरकार का यह कहना है कि यह विधेयक लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक कदम है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके मांग कर रही हैं कि इसे जांच पड़ताल के लिए संसदीय समिति को सौंपा जाए.


बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के पास निचले सदन में पूर्ण बहुमत है और उसके लिए इसे पारित कराना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. लेकिन राज्यसभा में सरकार को कड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ सकता है जहां संख्या बल के लिहाज से सत्ता पक्ष पर विपक्ष भारी है. जेडीयू जैसे बीजेपी के कुछ सहयोगी दल भी विधेयक के बारे में अपनी आपत्ति जाहिर कर चुके हैं.