नई दिल्ली: 2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन से सहारे उतरने को बेताब कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. उत्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टी बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) और समाजवादी पार्टी ने सीट बंटवारे के फॉर्मूले को करीब-करीब अंतिम रूप दे दी है. सूत्रों के मुताबिक, सीट शेयरिंग के मुद्दे पर बीएसपी प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी (एसपी) प्रमुख अखिलेश यादव के बीच मुलाकात भी हुई है.


सूत्रों ने बताया कि दोनों पार्टियां 37-37 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. सूबे में कुल 80 सीटें हैं. एसपी और बीएसपी ने मात्र छह सीटें कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और अन्य छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद बने एसपी-बीएसपी गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल किये जाने की उम्मीद थी. लेकिन दोनों ही पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के इस गठबंधन के महागठबंधन में बदलने की उम्मीद कम दिख रही है.


सीट शेयरिंग और कांग्रेस को ज्यादा सीटें नहीं दिये जाने के मुद्दे पर तीनों ही पार्टियों का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस में सियासी तल्खी तब बढ़ गई थी जब वह मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अलग-अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़ी. समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने कांग्रेस पर गठबंधन को साथ नहीं लेकर चलने का आरोप लगाया था.


तीनों राज्यों के चुनाव में जब कांग्रेस जीती तो समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया. दोनों पार्टियों को उनके टिकट पर जीते विधायकों को मंत्री बनाए जाने की उम्मीद थी. कांग्रेस ने इससे इनकार कर दिया. जिसके बाद अखिलेश यादव ने कांग्रेस को साफ-साफ शब्दों में चेतावनी दे दी थी. उन्होंने कहा था, "हमने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया है, फिर भी कांग्रेस ने हमारे विधायक को मंत्री नहीं बनाया. ऐसी हरकत कर कांग्रेस ने यूपी में हमारा रास्ता साफ कर दिया है."


अखिलेश यादव फेडरल फ्रंट बनाने की कोशिश कर रहे के चंद्रशेखर राव का भी समर्थन कर चुके हैं. उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि चंद्रशेखर राव कांग्रेस और बीजेपी से अलग फ्रंट बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह स्वागत योग्य है. हम उनसे मिलने हैदराबाद जाएंगे.


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ध्यान रहे कि 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. लेकिन इस गठबंधन को खास सफलता नहीं मिली थी. विधानसभा की कुल 403 सीटों में कांग्रेस मात्र सात और समाजवादी पार्टी 47 सीट जीतने में कामयाब रही थी. वहीं बहुजन समाज पार्टी मात्र 19 सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी ने 312 सीटों पर कब्जा जमाया था.


2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो मोदी लहर में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी पस्त दिखी. इस चुनाव में कांग्रेस दो, समाजवादी पार्टी पांच सीटें ही जीत सकी थी. वहीं बीएसपी खाता खोलने में भी नाकामयाब रही.


लगातार खराब प्रदर्शनों को देखते हुए अखिलेश ने कांग्रेस से दूरी बना ली और मायावती के साथ जाने का एलान किया. दोनों ने सहयोग ने फूलपुर, गोरखपुर और कैराना में हुए उपचुनाव में शानदार सफलता हासिल की. तीनों सीटों पर चुनाव से पहले बीजेपी का कब्जा था. अब दोनों पार्टियों को उम्मीद है कि वह लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को पटखनी देगी.


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