नोएडा: ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में दो इमारतें जमींदोज़ हो गईं. एक निर्माणाधीन बिल्डिंग दूसरी बिल्डिंग पर गिर गई. कुल कितने लोग अभी मलबे में दबे हैं, ये अभी साफ नहीं है. अनुमान है कि करीब 30 से 35 लोग मलबे में दबे हो सकते हैं. तीन शवों को एनडीआरएफ की टीम ने निकाल लिया है. 6 और 4 मंजिल वाली इन इमारतों में हर मंजिल पर कई-कई फ्लैट बने हुए थे. एक इमारत पूरी तरह तैयार हो चुकी थी जबकि दूसरी में काम जारी था.

कुछ लोग फ्लैट में शिफ्ट भी हो चुके थे. एक पीड़िता दीपिका ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि उन्होंने 22 लाख रुपये में फ्लैट खरीदा था. कुछ और पैसे भी घर को सजाने में लगाए थे. चंद दिनों के बाद वे यहां पर परिवार समेत शिफ्ट होने वाली थीं. ऐसा कहते हुए उनकी आखों से आंसू बह निकलते हैं.



उन्होंने बताया कि चौथी मंजिल पर उनकी जान पहचान का एक परिवार शिफ्ट हो गया था जो शायद अब मलबे में दबा हो सकता है. चार लोगों के परिवार में एक बच्चा भी था. दीपिका ने जब बिल्डर को फोन किया तो फोन स्विच ऑफ था.

किसानों के गांव शाहबेरी में अब अनाज और सब्जियां नहीं उगाई जातीं, फ्लैट बनाए जाते हैं

एबीपी न्यूज़ को एक अन्य पीड़ित नेहा ने बताया कि उनका रिश्तेदार परिवार यहां हाल ही में शिफ्ट हुआ था. रात 9 बजे वीडियो कॉल पर बात भी हुई थी. लेकिन कुछ देर बाद ही हादसे की खबर मिली. 15 घंटे से अधिक हो गए हैं, फोन नहीं मिल रहा है. पुलिस का कहना है कि मलबे में ढूंढने का काम किया जा रहा है. ये सब बताते हुए नेहा बिलख पड़ती हैं.

बहुत लोगों से बात की गई लेकिन कोई ठीक से नहीं जानता कि कितने फ्लैट्स में परिवार शिफ्ट हो चुके थे. कुल कितने लोग दबे हैं ये आंकड़ा भी सही नहीं बताया जा सकता. आस पास के लोगों में से कुछ ये आंकडा 30-35 बताते हैं तो कुछ लोग 50 बताते हैं. हालांकि ये साफ नहीं है कि कितने लोग मलबे में दबे हुए हैं.

आखिर कौन है ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में हुए बिल्डिंग हादसे का जिम्मेदार?

परिवार की औरतें गहने बेचती हैं, गिरवी रखती हैं, लोन लिया जाता है, पाई-पाई जोड़ी जाती है तब जाकर एक घर खरीद पाता है आम इंसान. सपनों का घर जैसे मुहावरों के साथ बिल्डर फ्लैट बेच देते हैं, आप अगर टालने की कोशिशें करते हैं तो वो साइट विजिट के लिए गाड़ी भेज देते हैं. दिन-रात फोन और मैसेज भेजते हैं.



सस्ती ईएमआई का झांसा दिया जाता है और बुकिंग अमाउंट बेहद कम रखा जाता है. किराए पर रहने वाले लोग अमूमन किराया दे-देकर थक चुके होते हैं और घर खरीदने की चाहत रखते हैं. अपने गांव-देहात के घर, जमीनों को बेच कर वो डाउन पेमेंट का इंतजाम करते हैं और फिर किश्तों के जाल में फंस जाते हैं.

उम्मीद होती है कि चलो घर तो मिला. लेकिन क्वालिटी कैसी है ये कैसे पता चलेगा. चमकदार पेंट के पीछे दीवार कितनी मजबूत है ये समझ नहीं आ पाता. अक्सर शाहबेरी जैसे हादसे होते हैं और लोग काल के गाल में समा जाते हैं. प्रशासन भी कुछ वक्त सख्ती बरतता है लेकिन थोड़े दिन बाद फिर से बिल्डर राज कायम हो जाता है.