कोरोना संकटकाल के बीच महाराष्ट्र से मजदूरों का पलायन जारी होने की वजह उद्योग- धंधे ठप्प पड़े हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मजदूर महाराष्ट्र से पलायन कर अपने गृह राज्य के गांव लौट रहे हैं. राज्य की सत्ताधारी शिवसेना इसे अवसर के रूप में देख रही है. शिवसेना अब प्रवासी मजदूरों की जगह भूमिपुत्रों को काम देने के लिए तैयारियां कर रही हैं जिसके लिए 'भूमिपुत्र अभियान' चलाया गया है.


शिवसेना के कार्यकर्ताओं का मानना है कि परप्रांतीय मजदूरों के चले जाने से अब जब लॉक डाउन खुलेगा और कंपनियों, कारखानों को लोगों की जरूरत होगी तो उस जरूरत को भूमि पुत्र पूरा करेंगे. भूमिपुत्र यानी जिसका जन्म महाराष्ट्र का हो और वह मराठी माणूस हो और इसके लिए शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. महाराष्ट्र के सोलापुर के बार्शी तालुका में शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भूमि पुत्र अभियान की शुरुआत की है.


शिवसेना के बार्शी शहर प्रमुख भाऊसाहेब आंधळकर ने बताया कि, ''इस भूमि पुत्र अभियान के तहत महाराष्ट्र के मराठी लड़के, लड़कियों को नामी कंपनियों में उनकी योग्यता अनुसार काम मिले और परप्रांतीय के जगह पर भूमिपूत्रो को काम मिले इसलिए लड़के और लड़कियों को ट्रेनिंग दी जा रही है. इस भूमिपुत्र अभियान के तहत युवक-युवतियों का ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन कराकर राज्य की नामी कंपनियों और फैक्ट्री में ऑनलाइन इंटरव्यू दिलाया जा रहा है. इस भूमिपुत्र अभियान का एक मकसद महाराष्ट्र के लड़के और लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना भी है.''


गौरतलब है कि अलग-अलग राज्यों से आए हुए परप्रांतीय महाराष्ट्र में के कई कंपनियों में क्लर्क, ऑफिस ब्वॉय, कैंटीन कर्मचारी, लेबर वर्क जैसे काम करते हैं. इस लॉक डाउन के दौरान अधिकतक प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र से जा चुके हैं . शिवसेना के इस भूमिपुत्र अभियान का ग्रामीण इलाके में काफी समर्थन भी मिल रहा है . बार्शी तालुका में करीब 500 युवक-युवतियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जिनमें से कुछ लड़के और लड़कियों को एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में काम भी मिल गया है.


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