इलाहाबाद: त्रेता युग के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म तीर्थराज प्रयाग में गंगा तट स्थित श्रंगवेरपुर धाम की वजह से ही हुआ था. रघुवंश के विस्तार के लिए संतान प्राप्ति की खातिर राजा दशरथ ने श्रंगवेरपुर में ही श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था. इस यज्ञ की हवि को ही दशरथ ने अपनी तीनो रानियों को खिलाया था.


भगवान राम के जन्म की वजह से संतान तीर्थ कहलाता है श्रृंगवेरपुर


रामायण और पुराणों के मुताबिक श्रंगवेरपुर में हुए इस पुत्रेष्टि यज्ञ और इसके संकल्प की पूर्ति के लिए श्रृंगी ऋषि द्वारा किए गए त्याग की वजह से ही राजा दशरथ के यहाँ ब्रह्म रुपी भगवान श्री राम सहित चार पुत्रों का जन्म हुआ था. आज भी देश के कोने-कोने से हजारो लोग संतान प्राप्ति की कामना के लिए यहाँ पूजा-अर्चना कर रोट और खीर चढाते हैं. रामनवमी पर तो यहां भव्य मेला भी लगता है. राम के जन्म की वजह से श्रंगवेरपुर को संतान तीर्थ भी कहा जाता है.


पिता ने दिया था राजा दशरथ को अभिशाप, मुनि वशिष्ठ ने भेजा था श्रृंगवेरपुर


त्रेता युग में पिता से मिले अभिशाप की वजह से उम्र के चौथेपन में पहुंचने के बाद भी अवध नरेश राजा दशरथ तीन-तीन विवाह के बावजूद संतान सुख से वंचित ही रहे. उन्हें रघु कुल के खात्मे की चिंता सताने लगी. तमाम उपाय व्यर्थ साबित हुए तो अवध नरेश ने वशिष्ठ मुनि की शरण ली. वशिष्ठ ने उन्हें बताया की अभिशाप से बचने के लिए सिर्फ़ श्रृंगवेरपुर ही इकलौती जगह है, जहाँ श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर रघुवंश को विस्तार दिया जा सकता है.


भगवान राम के जन्म के लिए श्रृंगी ऋषि ने किया था पुत्रेष्टि यज्ञ


यज्ञ की साधना बेहद कठिन थी. महीनों तक यज्ञ चलने के बाद इसके संकल्प को पूरा करने के लिए इसे संपन्न कराने वाले को अपना पूरा जीवन इसी जगह पर ही बिताना था. राजा दशरथ के अनुरोध पर दिव्य ज्ञानी और त्रिकालदर्शी श्रृंगी ऋषि पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए तैयार हो गए क्योंकि अपने दिव्य ज्ञान से उन्होंने संतान के रूप में ब्रह्मरुपी भगवान श्री राम के अवतरण को जान लिया था.


रानियों ने खाई हवि, तो पैदा हुए राम-लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न


श्रृंगी ऋषि ने मुनि वशिष्ठ की मौजूदगी में राजा दशरथ को साथ लेकर गंगा तट के इसी पेड़ के नीचे कई दिनों तक पुत्रेष्टि यज्ञ किया. इस यज्ञ से उत्पन्न हवि (यज्ञ की राख) को दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को खिलाया तो जल्द ही उन्हें अभिशाप से मुक्ति मिली और उनके यहां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुपी विष्णु के चार अवतारों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ.


राम जन्म के बाद दत्तक पुत्री शांता को श्रृंगी ऋषि से ब्याहा था राजा दशरथ ने


रघुकुल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जन्म पर अयोध्या समेत समूचे अवध में कई दिनों तक उत्सव मनाया गया. उत्सव का यह दौर लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के जन्म तक जारी रहा. श्रृंगी ऋषि के चमत्कार से प्रभावित होकर राजा दशरथ अपनी तीनों रानियों और चारो पुत्रों को आशीर्वाद दिलाने के लिए दोबारा श्रृंगवेरपुर आएं. उन्होंने यही पर अपनी दत्तक पुत्री राजा महिपाल की बेटी शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ कराया.


विवाह के बाद राजकुमारी से आनंदी माई हो गई थीं शांता


भगवान राम की बहन शांता का विवाह जिस जगह श्रृंगी ऋषि के साथ हुआ वहाँ अब भी एक हवन कुंड बना हुआ है. श्रृंगी ऋषि से विवाह के बाद शांता एक राजकुमारी से आनंदी माई हो गई थी. पुराणों के मुताबिक अपनी बहन शांता से मिलने और श्रृंगी ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान राम कई बार श्रृंगवेरपुर आए थे. जन्म का मूल कारण होने की वजह से ही वनवास काल की शुरुआत भी उन्होंने यही श्रृंगी ऋषि से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही की थी.


राम के जन्म की वजह से ही संतान तीर्थ कहलाता है श्रृंगवेरपुर धाम


भगवान राम के जन्म के बाद त्रेता युग से ही श्रंगवेरपुर को संतान तीर्थ कहा जाने लगा. यहाँ गंगा तट पर श्रृंगी ऋषि और आनंदी माई के नाम से मशहूर शांता जी का भव्य मन्दिर है. मन्दिर पर फहराती पताकाए इस संतान तीर्थ के महत्त्व को दर्शाती हैं. आज भी यहाँ देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं. इस मन्दिर की एक-एक सीढियों को नमन करते हैं. श्रृंगी ऋषि और शांता देवी की बेहद प्राचीन मूर्तियों के सामने शीश नवाजते हैं.


रामनवमी पर संतान तीर्थ में चढ़ता है खीर और रोट


मान्यता है की गंगा में स्नान के बाद जो भी स्त्री सच्चे मन से इस मन्दिर में पूजा-अर्चना कर खीर व रोट (विशेष पूडी) चढाकर मूर्तियों के पास रंगीन धागे बांधती है, संतान प्राप्ति की उसकी कामना ज़रूर पूरी होती है. संतान प्राप्ति के लिए यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं.


गोस्वामी तुलसीदास ने खूब किया है श्रृंगवेरपुर तीर्थ की महिमा का गुणगान


भगवान राम का जन्म भले ही अयोध्या में हुआ हो लेकिन राजा दशरथ के घर उनके अवतरण की प्रक्रिया संतान तीर्थ श्रंगवेरपुर से ही हुई. शायद इस वजह से गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण में इस संतान तीर्थ के महत्त्व पर लिखा है की अगर श्रंगवेरपुर न होता तो दशरथ के घर राम का जन्म न होता, अगर राम का जन्म न होता तो रामायण न होती और राम व रामायण के बिना इस सृष्टि की कल्पना ही नही की जा सकती.