लखनऊ: यूपी में आज नई राजनीतिक इबारत लिखी जा रही है. कुछ ऐसा हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ था. पहली बार मायावती और अखिलेश यादव एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे. ऐसा नहीं है कि पहले कभी इन दलों ने हाथ नहीं मिलाया था. एक दौर था जब सपा-बसपा गठबंधन में थे. फिर दूरियां बढ़ीं तो इतनी कि कभी पास ना आ सके. अब अखिलेश यादव ने मायावती को सम्मान दिया तो मायावती ने भी दरियादिली दिखाई. अब यूपी में एक नया रंग दिख रहा है. लाल और नीला आपस में मिल गया है. देखना ये होगा कि ये नया रंग जनता पर कितना चढ़ेगा.


पूरे सूबे में इस नए रंग के पोस्टर, बैनर और झंडे दिखने लगे हैं. लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, मुरादाबाद, मेरठ, प्रयागराज, आगरा, अलीगढ़, बरेली और गोरखपुर में भी इस नई दोस्ती, नए गठबंधन की चर्चा है. इन नए पोस्टरों पर बाबा साहेब अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया, दोनों की ही तस्वीरें हैं. इन पोस्टरों-बैनरों में जहां बीएसपी का नीला है तो वहीं एसपी का लाल रंग भी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक सबसे अधिक पोस्टर-बैनर सीएम योगी आदित्यनाथ के आवास के पास ही लगाए गए हैं.


इस गठबंधन में बराबरी का बहुत ध्यान रखा गया है. इतना कि जहां सपा का झंडा है वहां बसपा का भी झंडा है और यहां अखिलेश जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं वो वहीं ''बहन जी'' जिंदाबाद के भी नारे लग रहे हैं. हाथी और साइकिल साथ-साथ हैं. अखिलेश पर सीबीआई जांच की आंच दिखी तो दोनों पार्टियों के नेताओं ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसके बाद मायावती ने भी अखिलेश को फोन किया. यही नहीं उनकी तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई जिसमें अखिलेश से निडर रहने को कहा गया.



दोनों के साथ से बीजेपी और कांग्रेस के खेमों में हलचलें तेज हो गई हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का दावा है कि इस बार यूपी से पार्टी 74 सीटें जीतेगी. कांग्रेस का कहना है कि गठबंधन से उनकी पार्टी को बाहर रखना एसपी-बीएसपी की गलती है. कांग्रेस का यूपी में लंबे वक्त से कोई खास यादगार प्रदर्शन नहीं रहा है और बीजेपी भी लंबे वक्त के बाद यूपी की सत्ता में लौटी है. 2014 में बीजेपी ने 73 सीटें जीती थीं. लंबे वक्त से यूपी में एसपी और बीएसपी की धाक रही है.


यूपी ने गठबंधनों का इतिहास देखा है, कभी मुलायम और कांशीराम गले मिले तो कभी कल्याण सिंह और मुलायम ने गलबहियां कीं. मुलायम ने कभी अजित सिंह को पार्टनर बनाया तो कभी अखिलेश और राहुल गांधी पार्टनर बने. हालांकि पिछले लंबे वक्त से मायावती कभी किसी गठबंधन में नहीं रहीं. ये वक्त अब एक नए गठबंधन का है. ये गठबंधन वक्त की मजबूरी भी है तो दोनों पार्टियों के लिए जरूरी भी है. पिछले 25 सालों में दोनों की पार्टियों ने जो वोटर कमाए हैं इस बार उनकी परख होगी. फिलहाल तो चर्चा इस नए रंग का ही है.