लखनऊ: समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का रिश्ता काफी पुराना है. 1993 में सपा और बसपा साथ मिल कर चुनाव लड़े थे और जीत भी हासिल की थी. राजनीति के पुराने जानकार बताते हैं कि कांशीराम ने ही मुलायम सिंह को पार्टी बनाने की सलाह दी थी और इसी सलाह पर 1992 में सपा का गठन हुआ था. 1993 में सपा और बसपा ने 256 और 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था. सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटें जीती थीं.


सब कुछ ठीक ही था लेकिन मुलायम और मायावती की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं बढ़ती चली गईं और 1995 के गेस्टहाउस कांड ने वो दरार डाली जो कभी भरी नहीं जा सकी. भाजपा ने राज्यपाल को चिट्ठी सौंपी थी कि अगर बसपा सरकार बनाती है तो बीजेपी समर्थन करेगी. इसकी पृष्ठभूमि में ये था कि बसपा ने सपा सरकार को समर्थन किया था लेकिन वह सरकार में शामिल नहीं थी. भाजपा और मायावती के बीच नजदीकियां बढ़ रही थीं और फिर बीजेपी ने राज्यपाल को ये चिट्ठी सौंपी.


माया ने गेस्ट हाउस में अपने लोगों की बैठक बुलाई थी कि अचानक नाराज सपाई वहां पहु्ंचे और मारपीट शुरु कर दी. माया का मानना था कि सपा के लोग उनकी हत्या करना चाहते थे. यही कारण रहा कि माया ने फिर कभी सपा के साथ गठजोड़ नहीं किया.


अब क्यों साथ आए माया-अखिलेश
बताया जाता है कि मायावती को नाराजगी मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से है ना कि अखिलेश यादव से. अखिलेश ने भी कभी सार्वजनिक मंच से माया के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं कहा जो उनके सम्मान पर ठेस करे. सपा और बसपा दोनों ही जानते हैं कि कांग्रेस के साथ जुड़ कर उन्हें वैसा फायदा नहीं मिल सकता जैसा एक-दूसरे के साथ जुड़ कर मिल सकता है.


कांग्रेस को भी है फायदा
कांग्रेस भी ऐसा ही कोई गठबंधन चाहती है ताकि 2019 में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विकल्प जनता के सामने पेश किया जा सके. कांग्रेस यूपी में सभी पार्टियों के साथ गठबंधन करके देख चुकी है लेकिन उसे कोई खास फायदा नहीं हुआ है. अगर रालोद, कांग्रेस, सपा और बसपा एक साथ मिल कर यूपी में चुनाव लड़ें तो शायद 2019 में स्थितियां 2014 से काफी अलग हो सकती हैं.


दो स्तर पर चुनाव लड़ा गया
सपा बसपा को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि अखिलेश ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को बूथ मैनेजमेंट से लेकर प्रचार तक के कामों में लगाया जबकि बसपा के साइलेंट कार्यकर्ताओं ने अपने वोटरों को इशारा दिया कि उन्हें वोट कहां देना है. बसपा के वोटर को काफी समर्पित वोटर माना जाता है. शायद यही दोहरा मैनेजमेंट काम कर गया और बीजेपी की हार का कारण बना.