लखनऊ : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वांचल के जिले मऊ में हुई एक चुनावी रैली में 27 फरवरी को कहा था कि उत्तर प्रदेश की जेलें अपराधियों के लिए महल बन गयी हैं. गौरतलब है कि मऊ, गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी का क्षेत्र है. मोदी ने कहा था कि गैंगस्टरों को मुस्कुराते हुए और फोटो सेशन कराते देखा जा सकता है.


या फिर जेलों का 'इलाज' बड़े पैमाने पर करना होगा ? 


इस बीच माफिया के खिलाफ योगी सरकार ने अपने दावे करना शुरू कर दिए हैं. यूपी के कारागार मंत्री जय कुमार सिंह 'जैकी' ने कहा है कि योगी सरकार जेलों से होने वाली कॉल्स को लेकर गंभीर है और इसकी तोड़ खोज रही है. लेकिन, क्या सिर्फ यही काफी होगा या फिर जेलों का 'इलाज' बड़े पैमाने पर करना होगा ?


जेल : मकसद और वास्तविकता दोनों ही अलग 


जेल कहिए या सुधार गृह इनका मकसद और वास्तविक हालात दोनों ही अलग हो चुके हैं. मकसद था अपराध के दलदल में फंसे लोगों को सुधारना और वास्तविकता है कि यहां के हालात छोटे अपराधी को बड़ा बनने में मदद करते हैं. देशभर में जेलों के हालात को लेकर चर्चा होती रही है. लेकिन, सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की जेलों की हालत भी खस्ता है.


दोगुने कैदी हैं जेलों में


यूपी की तमाम जेलों में 30 से 40 हजार कैदियों के रहने की व्यवस्था है लेकिन, एक समय में 80 से 90 हजार कैदी इन जेलों में कैद हैं. इन जेलों की सुधार के लिए करीब 10 साल पहले तत्कालीन सरकार ने एक प्रयोग किया था, लेकिन वह प्रयोग सफल होता नजर नहीं आ रहा है और व्यवस्था को बदलने का ध्यान भी किसी का नहीं है.


आईपीएस को दी गई थी जिम्मेदारी


दरअसल, सन 2008 में मायावती की सरकार थी औऱ जेलों की दशा सुधारने के लिए जेल डीजी की पोस्ट पर आईपीएस अधिकारी को बैठाया गया. सोच यह थी कि पुलिस अधिकारी कानून-व्यवस्था के हिसाब से जेलों को देखेगा तो सुधार आ सकता है. तबतक आईएएस अधिकारी ही जेल प्रशासन का मुखिया होता था. इस प्रयोग के बाद अबतक इस मामले में कोई रीव्यू नहीं किया गया.


तीन साल का प्रयोग था अबतक जारी


खास बात यह है कि तीन सालों के लिए ही इस प्रयोग को लागू किया गया था. लेकिन, इस बारे में पुनर्विचार हुआ ही नहीं. इससे साफ है कि जेलों की हालात को लेकर सरकारें गंभीर नहीं रहीं. अब तक यह प्रयोग जारी है और इसे लेकर कोई फैसला नहीं हो रहा है. जबकि, जेलों में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं.


जेलों में फोन, मौज और सेल्फी


पिछले कुछ महीनों में जेलों के अंदर से मोबाईल फोन निकलना आम बात हो गई है. इसके साथ ही अंदर मारपीट और अपराध की घटनाएं भी हो रही हैं. इनको रोकने के लिए अगर कोई व्यवस्था की गई होती तो शायद इनके हालात पहले से बेहतर होते. और शायद यह भी सवाल है कि जेल प्रशासन की जिम्मा किन हाथों में होना चाहिए...?


चौंका देने वाली घटनाएं हैं सबूत : 


पिछले कुछ सालों में जेलों में जो घटनाएं हुई हैं वह न सिर्फ चौंकाने वाली हैं बल्कि सिहरा भी देती हैं. इन घटनाओं को देखकर ही लगता है कि जेलों के हालात अंदर कैसे हैं ? सवाल भी उठता है कि आखिर जेलें अपने मकसद में कैसे कामयाब होंगी. जानते हैं कुछ चौंकाने वाली घटनाओं के बारे में...


वाराणसी : जेल में ही कैदी बने जेलर - अप्रैल, 2016


वाराणसी जेल के अंदर हंगामा हुआ. कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त थी और कैदियों ने हिंसा की. यहां तक कि जेलर को भी अपने कब्जे में लेकर जेल के अंदर ही बंधक बना लिया.


फतेहगढ़ : जेल में बवाल, हिंसा - मार्च, 2017


फतेहगढ़ जेल में भी कैदियों ने जमकर आगजनी की. इसके साथ ही दो बंदीरक्षकों को बंधक बना कर रखा. हालात ऐसे थे कि दूसरे गेट से भी कोई अधिकारी अंदर नहीं जा रहा था.


मैनपुरी : कैदियों का पलायन - मार्च, 2017


होली के दिन जेल से तीन कैदी फरार हो गए. त्योहार का फायदा उठाकर उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया. पलायन को लेकर कोई इनपुट पुलिस के पास नहीं था.


मुजफ्फरनगर : जेल में हत्या - 2016


आजमगढ़ : 3 कैदियों का पलायन - अप्रैल, 2016


आजमगढ़ : 50 मोबाइल बरामद - अगस्त, 2015


मथुरा : जेल में हत्या - जनवरी, 2015


उरई : जेल में बम कांड - मार्च, 2010


मेरठ : जेल से 9 कैदियों का पलायन - जुलाई, 2010


मथुरा : कैदियों का पलायन - जून, 2010