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जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सम्मान में कोई भी कुर्सी से खड़ा नहीं हुआ

इंदिरा गांधी को यह बात इस कदर नागवार गुजरी थी कि देश में इमरजेंसी लागू करने के उनके फैसले में यह भी एक बड़ी वजह बना था. इंदिरा ने बाद में अपने कुछ करीबियों से इस बात का जिक्र भी किया था.

प्रयागराज: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की चुनिंदा ताकतवर हस्तियों में शुमार किया जाता था. अपने ज़माने में इंदिरा गांधी की तूती बोलती थी, लेकिन अब से करीब चौवालीस बरस पहले एक ऐसा दिन भी रहा, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए ऐसी जगह पहुंची, जहां सौ से ज़्यादा लोग कुर्सियों पर बैठे हुए थे, लेकिन इंदिरा के पहुंचने पर कोई भी उनके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ. इतना ही नहीं करीब पांच घंटे बिताने के बाद इंदिरा जब वहां से वापस जाने लगीं, तब भी कोई अपनी जगह से नहीं हिला.

इंदिरा को यह बात इस कदर नागवार गुजरी थी, कि देश में इमरजेंसी लागू करने के उनके फैसले में यह भी एक बड़ी वजह बना था. इंदिरा ने बाद में अपने कुछ करीबियों से इस बात का जिक्र भी किया था. वह कौन सी तारीख थी और क्या था वह पूरा माजरा, जानते हैं इस ख़ास व दिलचस्प रिपोर्ट में.

तारीख- 18 मार्च 1975 . दिन- मंगलवार. वक्त- सुबह करीब साढ़े दस बजे. जगह- इलाहाबाद हाईकोर्ट की कोर्ट नंबर पंद्रह-

कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था. सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम थे. कोर्ट रूम में सिर्फ पास वालों को ही इंट्री दी जा रही थी. जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा चैंबर से कोर्ट में आए, तो वहां मौजूद सभी लोग उनके सम्मान में अपनी जगह पर खड़े हो गए. उनके दाहिनी तरफ के गेट पर मेटल डिटेक्टर लगा हुआ था. कुछ ही पलों बाद देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मेटल डिक्टेक्टर से गुजरते हुए कोर्ट रूम में दाखिल हुईं. उन्होंने पहले हाथ जोड़े और सिर को थोड़ा सा झुकाकर जस्टिस सिन्हा का अभिवादन किया, फिर सामने की तरफ नजर उठाई.

कोर्ट रूम में जस्टिस सिन्हा के सामने तकरीबन डेढ़ सौ लोग कुर्सियों पर बैठे थे, लेकिन बेहद ताकतवर समझी जाने वाली प्रधानमंत्री के पहुंचने पर भी कोई अपनी जगह से नहीं हिला. न व्यक्तिगत इंदिरा के लिहाज में और न ही देश के प्रधानमंत्री के सम्मान में. इंदिरा के वकील एससी खरे ने अपनी जगह से हिलने की कोशिश ज़रूर की, लेकिन पूरी तरह खड़े होने की हिम्मत वह भी नहीं जुटा सके. कोर्ट रूम का यह नजारा देखकर इंदिरा हैरत में पड़ गईं. बहरहाल कोर्ट अर्दली ने उन्हें कटघरे में आने का इशारा किया. इंदिरा गांधी कटघरे में कुछ देर यूं ही खड़ी रहीं, फिर उनके वकील की गुजारिश पर जस्टिस सिन्हा ने उन्हें कटघरे में एक कुर्सी मुहैया करा दी और बैठे-बैठे ही जवाब देने की इजाजत भी दे दी.

कोर्टरूम में पहले जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा से कुछ सवाल किये. इसके बाद 1971 में इंदिरा के खिलाफ चुनाव हारने और कोर्ट में मुकदमा दाखिल करने वाले राज नारायण के वकील शांति भूषण ने इंदिरा से सवाल करने की इजाजत मांगी, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया. शांति भूषण ने इंदिरा से पूरे चार घंटे और बीस मिनट तक सवाल किये. ज़्यादातर सवालों के जवाब खुद इंदिरा ने ही दिए, जबकि कुछ मामलों में उनके वकील एससी खरे ने आपत्ति जताई और इंदिरा की तरफ से उन्होंने ही बातें रखीं.

कोर्ट रूम में इंदिरा करीब पांच घंटे तक रहीं, लेकिन उनके वकील को छोड़कर इस दौरान कोई भी उनके पास नहीं गया. शांति भूषण के तीखे सवालों से इंदिरा कई बार नर्वस भी हुईं, लेकिन ज़्यादातर सवालों का उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया. हालांकि मौसम उस दिन हल्का गुलाबी था. सुबह हुई हल्की बूंदाबांदी के बाद आसमान में बादल छाए हुए थे और ठंडी हवाएं माहौल में गुलाबी रंग भर रही थीं. इसके बावजूद इंदिरा के माथे पर कई बार पसीने की बूंदें नजर आईं. तीन-चार बार तो उन्हें रुमाल का सहारा भी लेना पड़ा. कोर्ट रूम में उन्होंने कई बार पानी भी पिया.

करीब पांच घंटे बाद इंदिरा जब वापस जाने लगीं, तब भी कोर्ट रूम में मौजूद कोई भी शख्स अपनी जगह से खड़ा नहीं हुआ. इंदिरा के वकील एससी खरे इस बार ज़रूर उनके साथ बाहर निकले. कोर्टरूम के बाहर तमाम लोग इंदिरा से मिलने के लिए खड़े हुए थे. कई लोग तो पिछले पांच घंटों से इंतजार कर रहे थे, लेकिन कोर्टरूम में लोगों के रवैये से हैरान इंदिरा किसी से भी नहीं मिलीं और सीढ़ियां उतरने के बाद सीधे अपनी कार में जा बैठीं. दरअसल इंदिरा गांधी इस अदालत में एक आरोपी के तौर पर पेश हुई थीं. इसके लिए अदालत ने उन्हें बाकायदा समन जारी किया था.

अदालत क्यों आईं थीं इंदिरा

प्रधानमंत्री रहते हुए भी इंदिरा के आने पर कोई भी अपनी जगह से खड़ा क्यों नहीं हुआ और इंदिरा को क्यों आरोपी के कटघरे में खड़ा होना पड़ा, यह वाकया भी कम दिलचस्प नहीं है. 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस ने ज़बरदस्त कामयाबी हासिल की थी. इंदिरा ने खुद रायबरेली सीट से विपक्ष के उस वक्त के बड़े नेताओं में शुमार राज नारायण को एक लाख ग्यारह वोटों से हराया था. हालांकि इस चुनाव में राज नारायण ओवर कांफिडेंस का शिकार हो गए थे और इसी के चलते, नतीजे आने से पहले ही उन्होंने विजय जुलूस तक निकाल डाला था, लेकिन रायबरेली की इस सीट पर एक लाख से ज़्यादा वोटों से हारने के बाद राज नारायण ने इंदिरा पर सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करने, वोटरों को खरीदने और चुनाव में धांधली कराने का आरोप लगाया.

नतीजे जारी होने के कुछ दिनों बाद राज नारायण ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक अर्जी भी दाखिल की और अदालत से उन्हें अयोग्य घोषित किये जाने की मांग की. राज नारायण ने यह चुनाव याचिका 15 जुलाई 1971 को दाखिल की थी. इस अर्जी पर सबसे पहले जस्टिस लोकुर ने सुनवाई की थी. बाद में यह मामला जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बेंच में ट्रांसफर हो गया था. साढ़े तीन साल तक चली सुनवाई के बाद जस्टिस सिन्हा ने जब राज नारायण द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों को सच के करीब पाया तो उन्होंने प्रतिवादी बनाई गई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को समन जारी कर उन्हें 18 मार्च 1975 को कोर्ट में तलब कर लिया. भारत के इतिहास में यह पहला मौका था, जब किसी प्रधानमंत्री को अदालत ने समन जारी किया और उसे कोर्ट में पेश होना पड़ा.

1971 के चुनाव में ज़बरदस्त कामयाबी पाने के बावजूद 1975 आते- आते इंदिरा गांधी पार्टी के अंदर और बाहर कई मोर्चों पर घिर चुकी थीं. बहुमत की सरकार के बावजूद उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. हालांकि पार्टी में उनका दबदबा पहले की तरह ही कायम था. बहरहाल इंदिरा गांधी ने अपने सलाहकारों से राय मशविरा करने के बाद 18 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेश होने का फैसला कर लिया. उस दिन अदालत में एक ऐसे आरोपी को पेश होना था जो देश की प्रधानमंत्री भी थीं. लिहाजा कोर्ट कैम्पस को छावनी में तब्दील कर दिया गया था. कोर्टरूम में दाखिल होने के लिए लोगों को पास जारी किये गए थे. इसके बावजूद कोर्टरूम खचाखच भरा था. जितने लोग कुर्सियों पर बैठे थे, तकरीबन उतने ही खाली जगहों पर खड़े भी हुए थे.

उस दिन सुबह करीब साढ़े दस बजे जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा जैसे ही चैंबर से कोर्ट में आए, लोग उनके सम्मान में खड़े हो गए. इस दौरान सरकारी वकील ने जस्टिस सिन्हा से सवाल किया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब कोर्ट रूम में दाखिल होंगी तो सामने बैठे वकीलों और बाकी लोगों का रवैया क्या होगा, क्योंकि अदालत में सिर्फ जज के आने पर ही उनके सम्मान में खड़े होने की परम्परा है. जस्टिस सिन्हा के जवाब से पहले राज नारायण के वकील शांति भूषण ने सरकारी वकील को जवाब दिया कि इंदिरा गांधी यहां प्रधानमंत्री की हैसियत से नहीं, बल्कि एक आरोपी की हैसियत से पेश होंगी, इसलिए लोगों का रवैया वही होना चाहिए, जो बाकी आरोपियों के अदालत में आने पर होता है.

जस्टिस सिन्हा ने भी शांति भूषण की इस दलील को मंजूर करते हुए यह निर्देश दिया कि इंदिरा के आने पर कोई भी अपनी जगह पर उठकर खड़ा नहीं होगा. उन्होंने इंदिरा के वकील एससी खरे को इस बारे में ख़ास तौर पर ताकीद किया. जस्टिस सिन्हा का यह निर्देश होने के बाद ही इंदिरा गांधी के कोर्टरूम में आने पर भी कोई उनके सम्मान में अपनी जगह पर खड़ा नहीं हुआ. यही हाल पांच घंटे बाद उनके वापस जाते समय भी हुआ. इंदिरा को यह बात बेहद नागवार गुजरी थी और बाद में उन्होंने अपने वकील एससी खरे व दूसरे लोगों से इस बारे में बात भी की थी.

बहरहाल इंदिरा की पेशी के बाद अदालत ने दो और तारीखों पर सुनवाई के बाद मई महीने में अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था और फैसला सुनाने के लिए बारह जून 1975 की तारीख तय की थी. बारह जून को दिए गए फैसले में जस्टिस सिन्हा की बेंच ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को न सिर्फ रद्द कर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था, बल्कि अगले छह सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी भी लगा दी थी. इसी दिन आए गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजे भी इंदिरा के खिलाफ गए थे.

हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किये जाने पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी उन्हें पूरी तरह राहत नहीं दी थी. जिस मुक़दमे में पेशी के दौरान इंदिरा के सम्मान में कोई भी अपनी जगह से खड़ा नहीं हुआ था, उसी का फैसला आने के बाद मुश्किलों में घिरने की वजह से इंदिरा ने 25 जून 1975 की रात से देश में इमरजेंसी लगाए जाने की सिफारिश कर दी थी. इंदिरा की इस सिफारिश को तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने मंजूरी देते हुए देश में इमरजेंसी का एलान कर दिया था. राज नारायण द्वारा दाखिल किये गए मुक़दमे का फैसला अगर इमरजेंसी लगने की सबसे बड़ी वजह बना था तो साथ ही उसी साल 18 मार्च को इंदिरा गांधी की पेशी के दौरान किसी का अपनी जगह से खड़ा न होना भी एक सबब था, क्योंकि इंदिरा को यह बात काफी बुरी और बेहद नागवार गुजरी थी.

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