लखनऊ: हाल ही एससी/एसटी एक्ट को लेकर भारत बंद हुआ. बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने भी इस बंद का समर्थन किया था. हालांकि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने इस कानून के दुरूपयोग को रोकने की पहल की थी. अब सवाल ये उठने लगे हैं कि भारत बंद का समर्थन करना मायावती की राजनीतिक विवशता थी या दलितों के लिए चिन्ता.


बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश के जरिए एससी—एसटी कानून को कथित तौर पर कमजोर किए जाने के विरोध में भारत बंद किया गया था. मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तब उन्होंने खुद ही इस कानून के दुरूपयोग या निर्दोषों को झूठा फंसाने से बचाव की पहल की थी. बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि वह बंद का समर्थन करती हैं. हालांकि उन्होंने हिंसा की निन्दा की और इसके लिए असामाजिक तत्वों को दोषी ठहराया.


विभिन्न दलित संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए बंद का आह्वान किया था. कोर्ट ने 20 मार्च को कानून में अग्रिम जमानत का प्रावधान जोड़ा और निर्देश दिया कि एससी—एसटी कानून के तहत दायर किसी शिकायत पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. मायावती ने 2007 में मुख्यमंत्री रहते दो आदेश जारी किए थे जो इस कानून के दुरूपयोग या किसी निर्दोष को झूठा फंसाने के खिलाफ बचाव से संबंधित थे.


उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव प्रशांत कुमार की ओर से 29 अक्तूबर 2007 को जारी आदेश में कहा गया था कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस अधीक्षक हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों पर संज्ञान लें और प्राथमिकता के आधार पर जांच कराएं वह सुनिश्चित करें कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर अत्याचार के मामलों में त्वरित न्याय मिले. साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि किसी निर्दोष का उत्पीडन ना होने पाये,


आदेश में कहा गया कि अगर जांच में पाया गया कि कोई फर्जी मामला बनाया गया है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 182 के तहत कार्रवाई होनी चाहिए. तत्कालीन मुख्य सचिव की ओर से जारी दोनों आदेशों में स्पष्ट कहा गया था कि केवल शिकायत के आधार पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए लेकिन जब आरंभिक जांच में आरोपी प्रथम दृष्टया दोषी नजर आये तो ही गिरफ्तारी की जानी चाहिए.


यह आदेश मायावती के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ समय बाद ही जारी किया गया था. आदेश में साफ कहा गया था कि हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराध ही उक्त कानून के तहत दर्ज किये जायें. अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों से संबद्ध कम गंभीर अपराध आईपीसी की संबद्ध धाराओं के तहत लिए जाएं.


आदेश के मुताबिक एससी—एसटी एक्ट में बलात्कार की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ कार्रवाई तभी शुरू करनी चाहिए जब मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि हो जाए और प्रथम दृष्टया आरोप सही लगें.