नई दिल्ली: बुलंदशहर गैंगरेप मामले में दिए गए बयान पर यूपी के कद्दावर मंत्री आजम खान ने आज 'बिना शर्त खेद' जताया. आज़म के माफ़ीनामे को मंज़ूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ चल रही कार्रवाई खत्म कर दी है. हालांकि, बड़े पदों पर बैठे लोगों के गौरज़िम्मेदारना बयानों पर लगाम लगाने को लेकर सुनवाई चलती रहेगी.
गौरतलब है कि आज़म खान ने यूपी के बुलंदशहर में हाइवे पर मां-बेटी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार को राजनीतिक साजिश करार दिया था. इस साल 30 जुलाई को हुई इस घटना पर आज़म के बयान को बेतुका बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनसे पीड़िता से माफ़ी मांगने को कहा था.
दरअसल, आज़म के बयान को आधार बनाकर गैंगरेप की 13 साल की नाबालिग पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. पीड़िता की मांग थी कि आजम खान के खिलाफ महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए एफआईआर दर्ज हो.
बाद में, आज़म के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से मामले को तूल न देने का आग्रह किया और कहा कि उनके मुवक्किल पीड़िता से बिना शर्त माफ़ी मांगने को तैयार हैं. कोर्ट ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते कहा था कि अगर पीड़ित पक्ष इस माफीनामे को मंज़ूर कर लेगा तो मामला खत्म कर दिया जाएगा. आज़म की तरफ से आज दाखिल हलफनामे में कहा गया है, "अगर पीड़िता को मेरे किसी बयान से तकलीफ पहुंची हो या उसने अपमानित महसूस किया हो, तो मैं बिना शर्त खेद जताता हूँ."
ध्यान रहे कि आजम के बयान की जानकारी मिलने पर कोर्ट ने इसे बेहद गंभीरता से लिया था. अगस्त में हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था - "संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्या ऐसा बयान दे सकता है? इससे पीड़ित की मनोदशा पर क्या असर पड़ेगा? कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी होती है. ऐसे बयानों से आम आदमी का भरोसा सिस्टम के उठता है."
नेताओं और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की अनर्गल बयानबाज़ी पर विस्तार से सुनवाई की ज़रूरत बताते हुए कोर्ट ने इस मसले पर सलाह देने के लिए वरिष्ठ वकील फली नरीमन को अमाइकस क्यूरी नियुक्त किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने आज ये साफ किया कि आज़म के माफीनामे के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी जाएगी. लेकिन मंत्रियों की बेतुकी बयानबाज़ी पर वो सुनवाई करता रहेगा. इस बारे में विस्तार से सुनवाई कर भविष्य में ऐसे बयानों पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए जाएंगे.
कोर्ट ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े पदों पर बैठे लोगों को कुछ भी बोलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. ऐसे बयानों की लक्ष्मण रेखा तय करनी ज़रूरी है.