नई दिल्ली: अयोध्या भूमि विवाद को फौरन ही एक बड़ी पीठ के पास भेजने की मांग करने वाली एक याचिका से सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं हुआ.


दरअसल, अयोध्या विवाद के मूल वादकार ने एक याचिका में कहा था कि यह मुद्दा मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा से ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके लिए एक संविधान पीठ बनाई गई है.


जज दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ ने एम सिद्दीकी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजीव धवन को यह स्पष्ट कर दिया कि वह सभी पक्षों को सुनने के बाद ही इस विषय (अयोध्या भूमि विवाद) को संविधान पीठ के पास भेजने के बारे में कोई फैसला करेगी.


सिद्दीकी बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि विवाद में एक मूल वादियों में से एक हैं. हालांकि, उनकी मृत्यु हो चुकी है.


पीठ के सदस्यों में जज अशोक भूषण और जज एसए नजीर भी शामिल हैं.


धवन ने पीठ से कहा, ‘‘आपने (सीजेआई) बहुविवाह प्रथा को खत्म करने के लिए याचिकाओं को फौरन ही संविधान पीठ के पास भेज दिया लेकिन आप बाबरी मस्जिद मामले को संविधान पीठ के पास भेजने को अनिच्छुक हैं. क्या बहुविवाह प्रथा मस्जिद में नमाज अदा करने के मुसलमानों के अधिकार से ज्यादा महत्वपूर्ण है.’’


वहीं, हिंदू संगठन की ओर से पेश हुए पूर्व अटार्नी जनरल और सीनियर एडवोकेट के. परासरन ने याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह फैसला करना सुप्रीम कोर्ट का विशेषाधिकार है कि मामले की सुनवाई कौन सी पीठ करेगी.


इस संवेदनशील विषय की सुनवाई दोपहर में धवन और अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल (एएसजी) मनिंदर सिंह और तुषार मेहता के बीच तीखी बहस के साथ शुरू हुई, जब धवन ने जोर से कहा, ‘‘बैठ जाइए, मि. मनिंदर सिंह.’’ इस पर, एएसजी ने कहा कि ‘‘तमीज से पेश आइए, मि. धवन.’’


यह विशेष पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के बहुमत के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है.


इससे पहले, कोर्ट ने श्याम बेनेगल और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोगों की इस मामले में हस्तक्षेप करने की उम्मीदों पर यह कहते हुये पानी फेर दिया था कि सबसे पहले मूल विवाद के पक्षकारों को ही बहस करने की अनुमति दी जायेगी.


इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने बहुमत के फैसले में विवादास्पद भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बंटवारा करने का आदेश दिया था.