नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अयोध्या भूमि विवाद मामले की सुनवाई के समय में अगले हफ्ते यानी सोमवार से अतिरिक्त एक घंटे की वृद्धि करने का निर्णय लिया है. इससे पहले अदालत ने मामले में सुनवाई पूरी करने के लिए 18 अक्टूबर की समयसीमा तय की थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता समिति के किसी नतीजे पर नहीं पहुंचने के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले पर रोजाना सुनवाई कर रही है.
सुनवाई के 28वें दिन, पीठ ने हिंदू और मुस्लिम पक्षों के वकीलों से कहा कि न्यायाधीशों द्वारा एक निर्णय लिया गया है कि वे सुनवाई के लिए एक घंटा समय बढ़ा सकते हैं. पीठ प्रत्येक दिन चार बजे उठ जाती है, जोकि विभिन्न मामलों पर सुनवाई समाप्त करने का समय है. लेकिन अयोध्या मामले के लिए न्यायाधीश शाम पांच बजे तक बैठेंगे और अदालत की कार्यवाही में एक घंटा ज्यादा वक्त देंगे.
पीठ ने कहा, "हम सोमवार(23 सितंबर) से रोजाना एक घंटा अतिरिक्त बैठ सकते हैं."
पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर अन्य सदस्यों के रूप में शामिल हैं.
चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. इसलिए अदालत ने 18 अक्टूबर या इससे पहले मामले की सभी सुनवाइयों को निपटाने के लिए समयसीमा तय की है. इसका मतलब है कि मामले के सभी पक्षों को समयसीमा के अंदर अपनी बहस पूरी करनी होगी. अदालत ने इसके साथ ही सभी पक्षों को समयसीमा का सम्मान करने और इसके अंदर बहस पूरी करने के लिए कहा है. मामले पर निर्णय संभवत: नवंबर तक आ सकता है.
इलाहबाद हाई कोर्ट ने 2010 के अपने आदेश में 2.77 एकड़ के इस विवादास्पद भूमि को राम लला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांट दिया था.
28वें दिन सुनवाई में क्या हुआ?
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के 28वें दिन आज सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने विवादित इमारत को मस्जिद साबित करने की कोशिश की. उन्होंने बाबर की आत्मकथा बाबरनामा के अलग-अलग संस्करणों का कोर्ट में ज़िक्र किया और कहा, "हर संस्करण में साफ तौर पर यह दर्ज है कि बाबर के हुक्म से अयोध्या में मस्जिद तामीर की गई थी." धवन ने यह भी कहा कि इमारत पर अरबी और फारसी भाषा में कई बातें लिखी थी. इससे भी साबित होता है कि वह इमारत हिंदू मंदिर नहीं थी.
धवन ने रामलला विराजमान और श्रीराम जन्मस्थान के नाम पर याचिका दाखिल किए जाने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "एक तरफ देवता के अधिकार की बात कही जा रही है. दूसरी तरफ पूरे जन्म स्थान को ही पूजा की जगह बता कर देवता जैसा दर्जा दिया जा रहा है. हिंदू पक्ष की कोशिश यही है कि मुस्लिम पक्ष को जमीन से पूरी तरह से बाहर कर दिया जाए."
धवन ने आगे कहा, "इलाहाबाद हाई कोर्ट को यह देखना चाहिए था कि जन्मस्थान को याचिकाकर्ता बनाकर याचिका कैसे दाखिल हो सकती है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट इस कमी को दूर कर सकता है. जन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए."
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