पटना: बिहार के जोकिहाट विधानसभा उपचुनाव में मिली बड़ी सफलता के बाद तेजस्वी यादव ने 2019 लोकसभा चुनावों के लिए तैयारी शुरू कर दी है. लगातार रैलियां, राजनीतिक मसलों पर प्रेस कांफ्रेंस, लोगों से सीधा संवाद उनकी रूटीन में शामिल है. राजनीतिक गलियारों में उनकी कामयाबी-नाकामयाबी का विश्लेषण होने लगा है. ये माना जा रहा है सत्ता से बाहर होकर भी तेजस्वी लालू की विरासत को बखूबी संभाल रहे हैं. लेकिन खामियों की भी एक लंबी फेरहिस्त भी उन्हें विरासत में मिल है जिससे उबरना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी.  महज तीन साल पहले सियासी पिच पर उतरे तेजस्वी क्या अपनी टीम को जीत दिला पायेंगे या सिर्फ पिच पर विकेट बचाने की जद्दोजहद करते हुए टिके रहेंगे. जानते हैं उन बातों को जो उनके पक्ष या विपक्ष में जाती हैं.


पांच बातें जो तेजस्वी केे पक्ष में जाती हैं  - 


1. बढ़ती राजनीतिक स्वीकार्यता  तेजस्वी यादव विरासत में मिली वोट बैंक की राजनीति में अपने पिता लालू यादव के रास्ते पर चल रहे हैं. एमवाई यानी मुस्लिम-यादव के समीकरण को अपने साथ बनाकर रखने में अबतक कामयाब रहे हैं. महागठबंधन से अलग होने बाद लालू यादव के चुनाव प्रचार के बगैर अपने बूते एक लोक सभा और दो विधान सभा की सीटें पार्टी को दिलाई. इन तीनों सीटों पर नीतीश कुमार के प्रचार के बावजूद तेजस्वी कामयाब रहे. जीतन राम मांझी को अपने पक्ष में लाने से दलित वोट का एक हिस्सा अपने से जोड़ने में सफल रहे. तेजस्वी की नज़र अब ऐसे वोट बैंक पर है जो नीतीश से शराब और बालू नीति से नाराज़ हैं . उन्हें साधने की रणनीति में जुटे हैं. राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के गठजोड़ में तेजस्वी अपनी भूमिका की छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.


2. सोशल मीडिया पर सक्रियता -  तेजस्वी यादव नए पीढ़ी के नेता हैं. उन्हें मौजूदा राजनीति माहौल में सोशल मीडिया की भूमिका अच्छे से पता है. चर्चा में बने रहने और लोगों के विचारों को प्रभावित करने में सोशल मीडिया की ताकत का वो खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. युवा वर्ग को अपने साथ जोड़ने के लिए वो सोशल मीडिया पर लगातार एक्टिव रहते हैं. अपने साथ युवाओं की टोली को ज़्यादा रख रहे जिसका फायदा हो रहा है.


3. अपने वोटरों से बेहतर होता संवाद - भाषण देने में तेजस्वी को महारथ हासिल होता जा रहा है. पत्रकारों को सवाल का जवाब देने का अंदाज़ दिनों दिन परिपक्व होता जा रहा है. अपने वोटरों से सीधा संवाद कर रहे और निशाने पर नीतीश कुमार सीधे रहते हैं. लालू से ठीक अलग अंदाज है पर भीड़ को समझकर उनसे अपना संबन्ध बना ले रहे. जनसभाओं में तालियां भी मिलती है.


4. पार्टी के अंदर चुनौती नही -  तेजस्वी यादव को फिलहाल पार्टी में किसी से चुनौती नहीं है. लालू को जनता दल के ज़माने में कई चुनौती देने वाले थे जिसमें नीतीश भी एक थे. लालू यादव ने चुनौती देने वालों को पहले किनारे किया और बाद में 1997 में आरजेडी बना ली. यही वजह थी कि कम पढ़ी लिखी राबड़ी देवी भी मुख्यमंत्री बन गई.  अब नौवीं फेल तेजस्वी को भी सबने स्वीकार कर लिया.


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5. नीतीश कुमार के साथ काम का फायदा -   बीस महीने में नीतीश के साथ रहकर प्रशासनिक क्षमता को भी बेहतर किया. किससे कब और क्या बात करनी है इसमें गंभीरता है. राजनीति में कोई सदा के लिए न दोस्त होता है और ना ही दुश्मन इस पर चलते हुए नए संबन्ध बनाने में कोई झिझक नहीं है. यानी नीतीश के बहुत सारे गुर सीख लिए जिसका फायदा दिखेगा.


अपने पाले में इन मजबूत बातों के होने के बावजूद कई ऐसे मुद्ये हैं जो तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती हैं. उन्हें कामयबी के लिए पहले इन चुनौतियों से दो चार होना पड़ेगा.  पांच वो बड़ी चुनौतियां जो तेजस्वी का आगे का रास्ता मुश्किल कर सकती हैं -


1. अनुभव की कमी -  बेशक तेजस्वी तेज तर्रार नेता के तौर पर उभर रहे हैं पर अनुभव की काफी कमी है. चुनावी राजनीति में सफलता से मजबूती ज़रूर मिली है पर संगठन को आगे बढाने के लिए अभी बहुत कुछ सीखना है. 2019 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार का चयन और 2020 में कार्यकर्ताओं में जोश बनाए रखने के लिए काफी मिहनत करनी होगी. नीतीश कुमार और सुशील मोदी सरीखे नेताओं के सामने खड़े रहने के लिए अभी अपनी समझ काफी बढ़ानी होगी.  विरोधियों की चाल में फंसने पर कैसे निकले इसकी समझ की जरूरत होगी.


2. भ्रष्टाचार के आरोप - पिता लालू यादव से विरासत में मिले भ्र्ष्टाचार के आरोपों को मिटा नहीं पाए. अकूत संपत्ति जमा करने के मामले में सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स के निशाने पर हैं.  ऐसे में अगर किसी भी दिन वो परेशानी में पड़ गए तो उबरने में काफी वक्त लग सकता है. ज़्यादा वक्त कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है. इसके अलावा अपने विरोधियों पर भ्रष्टाचार को लेकर हल्ला बोलना भी उनके लिए उल्टा पड़ सकता है.


3. अलग पहचान का संकट - तेजस्वी यादव को अभी अपनी अलग पहचान बनानी होगी. 20 महीने सरकार में रहे पर अपने विभागों के ज़रिए कोई ऐसा फैसला नहीं लिया जिससे उनकी अलग पहचान बन पाए. उनके आगे लालू यादव का बेटा होने के अलावा औऱ कोई ऐसी उपलब्धि नही है जो उन्हें अपनी पहचान दे सके. अबतक अपने विरोधी पर हमला सिर्फ राजनीतिक जुमला से करते हैं जिसमें तथ्यों की कमी होती है.


4. नए वोटर जोड़ना - तेजस्वी यादव के सामने पार्टी के लिए नए वोट समीकरण बनाने का भी है. क्योंकि एमवाई समीकरण में जब तक अति पिछड़ा नहीं मिलेगा बिहार में सरकार बनाने के लिए सीटों का जादुई आंकड़ा नहीं मिल पाएगा. ऐसे में नीतीश से इस वोट बैंक को छीन पाना मुश्किल काम है.


5. पार्टी में बड़े नेताओं की कमी -  बीजेपी, नीतीश और राम विलास पासवान से मुकाबला करने के लिए तेजस्वी के पास बड़े नेताओं का चेहरा नहीं है. पासवान के बेटे चिराग पासवान भी अपना कद बढाने में लगे हैं जिससे जल्द ही मुकाबला होगा.


जाहिर है महज उपचुनावों के नतीजों को देख ये आंकलन नही हो सकता कि बिहार में तेजस्वी यादव की राह बिल्कुल आसान है. ध्यान ये भी रखना होगा कि अभी तक राजनीति फैसले लालू यादव की छत्रछाया में ही हो रहे हैं. इसलिए अभी तक की कामयाबी का पूरा श्रेय तेजस्वी के खाते में नही जाते.


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