लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा ने एक महत्वपूर्ण विधेयक पारित किया, जो अग्रिम जमानत के प्रावधान को फिर से शुरू करने का रास्ता साफ करेगा. प्रदेश में 1976 में आपातकाल के दौरान अग्रिम जमानत के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया था.


दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक 2018 राज्य में अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल करेगा क्योंकि प्रदेश में चार दशक से अग्रिम जमानत की अर्जी देने का कोई प्रावधान नहीं था.


विधेयक को अंतिम मंजूरी के लिए केन्द्र सरकार के पास भेजा जाएगा क्योंकि यह विधेयक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 (अग्रिम जमानत) में उत्तर प्रदेश के लिए संशोधन का प्रस्ताव करता है.


इस विधेयक में एक संशोधन यह है कि आरोपी को अग्रिम जमानत के लिए सुनवाई के दौरान उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं होगा.उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा अन्य सभी राज्यों में अग्रिम जमानत का प्रावधान है.


एक अधिकारी ने बताया कि जिन मामलों में मौत की सजा है या जहां गैंगस्टर एक्ट लगा है, उन मामलों में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी.एक अन्य संशोधन है कि अदालत को अर्जी मिलने के बाद 30 दिन में अग्रिम जमानत की अर्जी पर फैसला करना होगा.


बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में 16 जुलाई को राज्य सरकार ने अग्रिम ज़मानत व्यवस्था को लागू करने का भरोसा दिया था. इमर्जेंसी के दौरान यूपी में अग्रिम ज़मानत लेने पर रोक लग गई थी. ये बात 1976 की है. तब से यही व्यवस्था चली आ रही है. ऐसा होने से लोगों को कई तरह की परेशानियां होती रही हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में इसे ख़त्म करने को कहा था.सीएम रहते हुए मायावती ने हालात बदलने की कोशिश की थी.साल 2010 में विधान सभा से अग्रिम ज़मानत वाला बिल पास हो गया था. लेकिन राष्ट्रपति ने इसे वापस राज्य सरकार के पास भेज दिया था. तब से मामला यूं ही लटकता रहा.