लखनऊ: देश के बड़े संत समाज के संप्रदायों में से एक गोरखपुर स्थित नाथपंथ का मुख्यालय कभी किसी ने वहां इस तरह के दृश्य के बारे में न सोचा होगा न देखा होगा, जब गोरखनाथ मंदिर के कपाट इस तरह बंद हो सकते हैं. मगर यह सब हुआ है आम लोगों के व्यापक हित के लिए ताकि कोरोना के संक्रमण से लोग और उनका परिवार सुरक्षित रहे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को देर रात इसकी घोषणा की. शनिवार को इस पर प्रभावी तरीके से अमल भी शुरू हो गया.


किदंवतियों के अनुसार गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर की स्थापना त्रेता युग में सिद्ध गुरु गोरक्षनाथ ने की थी. मान्यता के मुताबिक उस समय गुरु गोरक्षनाथ भिक्षाटन करते हुए हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर गये. वहां देवी ने उनको भोजन के लिए आमंत्रित किया. आयोजन स्थल पर तामसी भोजन को देखकर गोरक्षनाथ ने कहा मैं तो भिक्षाटन से जो चावल-दाल मिलता है वहीं ग्रहण करता हूं. इस पर ज्वाला देवी ने कहा कि मैं गरम करने के लिए पानी चढ़ाती हूं. आप भिक्षाटन कर पकाने के लिए चावल-दाल ले आइए.


गुरु गोरक्षनाथ यहां से भिक्षाटन करते हुए हिमालय की तलहटी में स्थित गोरखपुर आ गये. यहां उन्होंने राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर एक मनोरम जगह देखकर अपना अक्षय भिक्षापात्र वहां रखा और साधना में लीन हो गए. बाद में वहीं पर उन्होंने मठ और मंदिर की स्थापना की तबसे यह पूरे देश खासकर उत्तर भारत के लाखों-करोड़ों लोगों के श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. मकर संक्रांति से एक माह तक लगने वाले खिचड़ी मेले में यह श्रद्धा दिखती भी है.


खिचड़ी में जो अन्न मिलता है वह मंदिर के साधु-संतों के अलावा जो भी भोजन के समय आता है उसे मिलता है. मंदिर परिसर स्थित संस्कृत महाविद्यालय के छात्रों के अलावा अन्य जरूरतमंदों को भी यह दिया जाता है. अन्न का यह सम्मान और सदुपयोग भी खुद में जनकल्याण का एक नमूना है. जनहित में मंदिर के कपाट कर गोरक्षपीठ ने फिर एक बार इतिहास रचा है.


पूर्वांचल जब शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा था, तब उस समय के पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ ने महाराणा शिक्षा परिषद की स्थापना कर शिक्षा की ज्योति जगाई. आज परिषद के बैनर तले हर तरह के चार दर्जन से अधिक शैक्षणिक संस्थान चल रहे हैं. गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी पीठ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.


आम लोगों को सस्ते में अत्याधुनिक चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए गोरखनाथ चिकित्सालय की स्थापना से लेकर वनटांगियां गांवों का कायाकल्प, जोखिम लेकर बाढ़ पीड़ितों को राहत, आगजनी या प्राकृतिक आपदा से शिकार किसानों की मदद और जनहित के अन्य काम इसके उदाहरण हैं. गोरखनाथ मंदिर और इससे संबंधित शक्ति पीठ देवीपाटन बलरामपुर की बंदी और शनिवार को कोरोना के मद्देनजर गरीबों के लिए की गयी घोषणाओं के पीछे भी जनकल्याण की वही सोच है. मालूम हो कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं.


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