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यूपी के बुंदेलखंड में पानी के लिए मचे कोहराम के बीच 'सूख' रहे हैं रिश्ते
पानी के लिए मचे कोहराम के बीच रिश्ते 'सूख' रहे हैं. घर बिखर रहे हैं. परिवार टूट रहे हैं. घर की महिलाओं का तो हाल बुरा है. पति का पत्नी से, मां का बेटी से, सास का बहू से रिश्तों की डगर कठिन हो गयी है. साथ चलना, साथ रहना अब बोझ बन गया है. दो बूंद पानी को तरस रही कई औरतों ने अपने पतियों को छोड़ दिया है.
लखनऊ: यूपी के बुंदेलखंड में पानी के लिए हाहाकार मचा है. तालाब, कुंए और हैंडपंप सब सूख गए हैं.नदियों में भी पानी बस नाम भर का बचा रह गया है. चारा और पानी के बिना मवेशी तड़प तड़प कर मर रहे हैं. पानी के लिए मचे कोहराम के बीच रिश्ते 'सूख' रहे हैं. घर बिखर रहे हैं. परिवार टूट रहे हैं. घर की महिलाओं का तो हाल बुरा है. पति का पत्नी से, मां का बेटी से, सास का बहू से रिश्तों की डगर कठिन हो गयी है. साथ चलना, साथ रहना अब बोझ बन गया है. दो बूंद पानी को तरस रही कई औरतों ने अपने पतियों को छोड़ दिया है. रिश्तों का मुकाबला पीने के पानी से हो गया है.
पानी के संकट के बीच लोग पलायन करने लगे हैं. जिसको जहां मिला, बोरिया बिस्तर लेकर चल दिए. उधार में पैसे-रुपये और अनाज का लेनदेन तो आपने सुना होगा. लेकिन बुंदेलखंड में अब उधार में पानी लेने और देने का चलन शुरू हो गया है. किसी ने एक बाल्टी पानी उधार लिया तो बदले में दो बाल्टी पानी देना पड़ता है. उधार जल का कोई फिक्स्ड रेट नहीं है.
दोपहर के एक बज रहे थे. धरती तप रही थी. आसमान में सूरज आग का गोला बन चुका था . लू के थपेड़ों से पेड़ पौधे भी झुलसने लगे थे. महिलाएं घर का सारा काम काज निबटा चुकी थी. लेकिन किसी के चेहरे पर आराम का भाव नहीं था. घरों में एक भी बूंद पानी नहीं बचा था. रामकली हमें गांव की गली में मिल गयी. एक-दो-तीन नहीं पूरे सात बर्तन उन्होंने लाद रखे थे. कुछ माथे पर, कुछ कंधे पर तो कुछ पेट से बंधे हुए. वो किसी झांसी की रानी जैसी लग रही थी. पानी के संकट के मोर्चे पर सरकार की बेरूखी से भिड़ने को तैयार रामकली को एक साथ सभी बर्तनों में पानी भर कर लाना था. बांदा ज़िले के नई दुनिया गांव की ज़िंदगी गर्मियों में ऐसी ही हो जाती है. ना जाने किसने इस गांव का नाम ऐसा रख दिया. कुछ भी नया तो नहीं है इस गांव में. वही सालों पुरानी लाचारी, बेबसी और मौत को ढकेलते ज़िंदगी जीने का नज़रिया. जागने से लेकर रात में सोने तक बस एक ही चिंता - पानी, पानी और बस पानी . बांदा शहर से ये गांव बस 42 किलोमीटर ही तो दूर है.
दो बूंद पानी का क्या महत्व है ? जल ही जीवन है . पानी अमृत सामान है. पानी बिन सब सून . ये सब अगर देखना हो समझना हो तो फिर रास्ता अपने आप बुंदेलखंड की तरफ मुड़ जाता है. गर्मियों में बुंदेलखंड की ज़िंदगी नर्क जैसी हो जाती है. तपती दोपहरी में पूर्णिमा घर से पानी लेने निकली . पड़ोस के घर से उषा भी बर्तन लेकर बाहर आई. दोनों नदी की तरफ चल पड़े. देखते ही देखते गांव की कई महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी हमें मिल गए. सबके हाथों में खाली बर्तन थे . किसी के माथे पर तो किसी के कमर पर पानी के संकट से जूझ रहे लोगों की लाईन लम्बी होती गयी. हम भी सबके साथ हो लिए. उबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए बढ़ते रहे. लगातार चार किलोमीटर तक चलने के बाद हम केन नदी के किनारे पहुंचे.
केन नदी में सबने पानी भरा. स्नान किया फिर सब वापस अपने गांव की तरफ चल पड़े. पानी के संकट के बोझ तले दबी कई ज़िंदगियां, पानी को तरसते लोगों की दर्द भरी कहानियां. आठवीं के बाद पूर्णिमा ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर वाले इस पर शादी का दवाब बना रहे हैं. लेकिन पूर्णिमा ऐसा नहीं चाहती है. उसने अपनी मां को पानी के लिए संघर्ष में दम तोड़ते देखा है. उसकी चाहत गांव से बाहर जाकर कुछ करने की है. इसने हमसे कहा “आप तो बहुत लोगों को जानते होंगे, आप मेरी मदद कर सकते हैं.”
उषा की ज़िंदगी भी पूर्णिमा जैसी ही है. घर में सास-ससुर की सेवा, चार बच्चे, खाना बनाने से लेकर घर का सारा काम काज और फिर दिन भर में कम से कम 20-25 बार पानी लाने जाना पड़ता है. उषा कहती हैं “ शीशे में चेहरा देखने तक की फ़ुरसत नहीं मिलती है.”
सवेरे चार बजे से गांव की औरतों की दौड़ भाग शुरू हो जाती है. नदी की तरफ जाना और पानी भर कर लाना . देर शाम तक ये सिलसिला चलता रहता है. हालत ऐसी ही कि पानी के जुगाड़ में ही सारा वक्त निकल जाता है. गांव के कुंए सूख चुके है. एक हैंडपंप लगा था लेकिन अब इस से पानी नहीं निकलता है.जब हम केन नदी से गांव की तरफ़ लौट रहे थे. हमें जामुन के एक पेड़ के नीचे कुछ लोग पूजा करते हुए मिल गए. खीर-पूरी और सब्ज़ी बन रही थी. देशी दारू भी पूजा के लिए रखी थी. हमने पूछा, ये कैसी पूजा है ? तो दयाराम बोले “इसे खेर पूजा कहते हैं, इस पूजा के बाद बारिश होती है”.
गांव के लोगों से पता चला कि अब उधार में पानी के लेनदेन का चलन शुरू हो गया है . हमारे लिए ये बड़ी हैरानी की बात थी. अब तक तो हमने रुपए-पैसे और अनाज ही उधार में देने की बात सुनी थी. ये उधार में पानी का लेनदेन कैसे होता है? ब्रजेश प्रजापति ने कहा “ मान लीजिए हमारे घर कोई मेहमान आ गया. लेकिन घर में पानी नहीं है तो हम पड़ोसी से एक बालटी पानी उधार ले लेते हैं. बदले में हमें दो बाल्टी पानी देना पड़ता है.”
पानी की कमी से अब रिश्ते भी ‘सूखने’ लगे है. पानी की मारामारी ने घर में कई दीवारें खड़ी कर दी है. धैर्य ख़त्म हो चुका है. ज़िंदगी बचेगी तो रिश्ते निभा लेंगे जैसा माहौल है. सालों पुराने पति पत्नी के रिश्ते बिखरने लगे है. पानी का इंतजाम करते करते महिलायें थक चुकी हैं. वे ज़िंदगी से हारने लगी हैं. कमला ने ऐसा ही किया. बीस साल की शादी के बाद अब संतू अकेले पड़ गए हैं. उनकी पत्नी कमला पिछले हफ्ते टेम्पो में बैठ कर अपने मायके चली गयी. इस धमकी के साथ कि जब तक पानी का इंतजाम नहीं होगा, वापस नहीं आएंगी. एक मां के लिए अपने पति और बच्चों को छोड़ कर रहना, इस दर्द को बस मां की ममता ही जानती है. संतू अपनी पत्नी को मनाने गया लेकिन उसने हाथ जोड़ लिए.
संतू, उसके छह बच्चे और बूढ़ी मां. पानी को तरसते संतू पर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. उनके गांव छिछन में दो हैंडपंप है. एक पर हमेशा लाईन लगी रहती है. एक बाल्टी पानी लेने के लिए कई घंटों इंतजार करना पड़ता है. वही एक और हैंडपंप है. जो अपनी मर्जी से पानी देता है.
संतू जैसी हालात प्रदीप शुक्ल की भी होने वाली थी. पानी के संकट से परेशान होकर पत्नी भोली ने बगावत कर दी थी. महीने भर पहले वो भाग कर अपने मायने चली गयी थी. उनकी भाभी ने उसे बहुत समझाया. सुहागिन के लिए उसका ससुराल ही सब कुछ होता है.
लेकिन दो बेटों की मां तो ठान कर आई थी. अब वापस ससुराल नहीं जाना है.सूरज के उगने से पहले ही भोली हर दिन हैंडपंप पर खड़ी हो जाती थी. दो साल के छोटे बेटे को कमर पर लटकाए हुए. दिन भर पानी ढो कर घर लाना. एक दिन जब दोनों बेटों के साथ वो हैंडपंप की तरफ़ जा रही थी. सामने से आ रही जीप से बच्चे टकरा गए. बड़े बेटे का हाथ टूट गया.जान जाते जाते बची. पानी के चक्कर में भोली अब अपने लाल को नहीं खोना चाहती है. पति प्रदीप ने भोली के मायके आकर बहुत मनाया. तब वो मानी. वो भी इस शर्त पर कि घर में हैंडपंप लगवाना है. चाहे इसके लिए ज़मीन ही क्यों न बेचनी पड़े. समझाने बुझाने पर भोली इसी मंगलवार को अपने ससुराल वापस चली आयी. लेकिन उनका बड़ा बेटा अब भी उनके मायके में है.
भोली के गांव में हमें कई घरों पर ताले लटके मिले. हमारे मन में सवाल उठने लगे ? ऐसा क्यों . पता चला पानी ना मिलने से परेशान होकर कई परिवार गांव छोड़ चुके हैं. हर साल यही होता रहा है. कोई अपने ससुराल चला जाता है. तो कुछ अपने रिश्तेदारों के घर. अरविंद त्रिपाठी ने बताया “बारिश का मौसम शुरू होते ही लोग अपने गांव लौटने लगते हैं”.
यूपी के बुंदेलखंड में सात ज़िले हैं. बांदा, महोबा, चित्रकूट, ललितपुर, हमीरपुर, झांसी और जालौन अधिकतर इलाकों में पाने के लिए कोहराम मचा है.
अगले दिन हम महोबा के मूढ़ारी गांव पहुंच गए. ये गांव काफ़ी बड़ा है. यहां की आबादी क़रीब 12 हज़ार की है . हम एक जगह खड़े होकर लोगों से बातचीत कर रहे थे . तभी पानी का एक टैंकर आ गया . लोग बालटी लेकर ऐसे भागे मानो गांव में सलमान खान आ गए हों. पानी के एक टैंकर के पास मेला जैसा लग गया. सब अपना बर्तन पहले भर लेने की जुगत में लग गए. कुछ लोग आपस में झगड़ भी लिए. महेश ने बताया. दिन भर यही हालत बनी रहती है . पानी को लेकर रोज झगड़े होते हैं. इस गांव के सभी हैंडपंप सूख गए हैं जहां से पानी सप्लाई होता था. वो तालाब ही सूख गया है. अब बस एक ही सहारा बचा है पानी का टैंकर. हर साल उम्मीदों में ही बुंदेलखंड के लोगों की ज़िंदगी कट जाती है. शायद अगले बरस अच्छे दिन आ जाए. अब तो इंतज़ार भी सूख गया है. उसे भी इंतज़ार की आदत लग गई है.
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