मेरठ: संसार के मानवाधिकार पैरोकारों के लिए यह गहन शोध का विषय हो सकता है कि दो देशों के बीच रिश्तों की तल्खी की वजह से मेरठ की एक बहू की जिंदगी महज एक शहर में सिमटकर रह गई है. मेरठ के नामचीन नादिरअली खानदान की बहू सबा फरहत 27 सालों से इस प्रतिबंध के दायरे में कैद हैं. पाकिस्तान से 1991 में ब्याहकर आई सबा फरहत को इतने लंबे वक्त में भारतीय नागरिकता नहीं मिल पाई है और स्थानीय खुफिया के निर्देशों के चलते इन बरसों में उन्होंने मेरठ शहर से बाहर इस देश में कुछ भी नहीं देखा.


पाकिस्तान के लाहौर शहर के इस्लामपुर इलाके में खान स्ट्रीट की गली नंबर 50 की निवासी सबा का निकाह 22 जनवरी 1990 को मेरठ के नादिरअली के पोते मसूद फरहत से लाहौर शहर में हुआ था. एक साल तक चली कागजी खानापूरी के बाद सबा 1991 में मेरठ आ गयी. सबा मसूद की मौसी की बेटी है और देश के बंटवारे के वक्त उनका परिवार पाकिस्तान के लाहौर शहर जाकर बस गया था. दो देशों की सरहद के बीच परिवार के रिश्ते न बंट जाये. यही सोचकर दोनो के वालिदैन ने उनकी शादी कराई थी. मेरठ की नादिरअली फैमिली 135 बरसों से ब्रासबैंड के निर्माता है और उनका कारोबार दुनिया भर में हैं.


सबा की शादी को 27 साल हो चुके हैं


बुजुर्गो की सोच ने एक परिवार के रिश्ते तो बनाये रखे लेकिन भारत-पाकिस्तान सीमा पर तल्खी का खामियाजा सबा ने भुगता. निकाह के बाद सबा लॉग-टर्म वीजा पर भारत आई थी जो हर साल रिन्यूवल होता है. कायदे कानून जब भारत में सख्त हुए तो जबाब में पाकिस्तान ने भी पासपोर्ट की वैलिडिटी महज एक साल की कर दी. सबा की शादी को 27 साल हो गये. उन्हें मुहब्बत करने वाला शौहर मिला, प्यार देने वाली ससुराल नसीब हुई और तीन बच्चों से उनका आंगन भी खुशहाल हुआ. मगर भारत की नागरिकता उन्हें नहीं मिल सकी.


मेरठ में कैद होकर रह गई है सबा की जिंदगी


सबा की एक बेटी और बेटा वकील है और तीसरा सबसे छोटा बेटा भी कानून की पढ़ाई कर रहा है. मगर फिर भी उनकी मां भारत जैसे लोकतन्त्र में मेरठ शहर की सीमा से बाहर नहीं जा पाती. पाकिस्तानी होने के नाते उन्हें राज्य की अनुमति के बिना कहीं भी जाने की इजाजत नहीं है. ऐसे में उनकी जिंदगी महज मेरठ शहर के दायरे में कैद होकर रह गई है. सबा अपनी भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए बीते 20 सालों में तीन बार आवेदन कर चुकी है मगर लखनऊ से आगे उनकी फाइल को रास्ता ही नहीं मिलता.


करना पड़ता है इन परेशानियों का सामना


अपने इन हालातों से परेशान सबा फरहत बताती है कि 2018 में उन्हें अपनी मां से लाहौर जाकर मिलना था. इमीग्रेशन के अफसरों ने उनका पासपोर्ट देखते ही फेंक दिया. कहा- नागरिकता लो या फिर पाकिस्तान में रहो. बेटा और बेटी के सामने मां को बेईज्जत होना पड़ा. बच्चों ने बड़ी मिन्नतों के बाद बार्डर पार करने की परमीशन पाई. ठीक ऐसी ही दिक्कत फिर हुई जब वह लाहौर से अकेली भारत लौट रही थी. उन्हें अफसरों ने अल्टीमेटम दिया है कि अगली बार वह पाकिस्तान से नहीं आ पाएंगी.


पाकिस्तान में सबा का परिवार रहता है और वह अपने परिवार की अकेली बेटी हैं. कई साल पहले उनके पिता बहुत बीमार थे. लेकिन वीजा न मिलने की वजह से वह उन्हें देखने नहीं जा सकी. बूढ़े पिता इकलौती बेटी का चेहरा देखने की उम्मीद लिए साल 2004 में अल्लाह को प्यारे हो गये. ऐसी दिक्कत उन्हें अपने भाई की शादी के दौरान 2001 में भी हुई थी. परमीशन नहीं मिल सकी और शादी में जाने का प्लान चौपट हो गया. बच्चे मामा की शादी में जाने की उम्मीद लगाये बस रोकर रह गये.


कागजात इकठ्ठा करते-करते परेशाना हो चुका है सबा का परिवार


उनकी वालिदा अब अकेली हैं. सबा तीन भाइयों के बीच अकेली बहन हैं. उनका परिवार उन्हें बुलाता रहता है लेकिन कड़ी पाबंदियों के चलते उन्हें पाकिस्तान जाने की इजाजत बामुश्किल मिल पाती है. हर साल वीजा और पासपोर्ट रिन्यूवल कराना होता है. 6 महीने पासपोर्ट रिन्यूवल की फार्मलिटीज और 6 महीजे लॉग-टर्म वीजा के लिए जरूरी कागजात इकठ्ठा करते उनका परिवार अब आजिज आ चुका है. सबा कहती है कि अब तो ऐसा लगता है कि मैं अपने शौहर और बच्चों के लिए मुसीबत बन गई हूं.


सबा की बेटी कानून की पढ़ाई के बाद जुडीशियली की परीक्षा के लिए दिल्ली में तैयारी करना चाहती थी लेकिन उनकी मां उनके साथ दिल्ली नहीं जा सकती. ऐसे में परिवार अकेली बेटी को बाहर भेजने को राजी नहीं है. मजबूरन, मेरठ कचहरी में ही बेटी को वकालत की प्रैक्टिस करा रहे हैं. ठीक ऐसे ही हालात उन रिश्तेदारों के साथ भी है जो उनकी कानूनी पाबंदियां नहीं समझते और ताने देते हैं कि- जब आप हमारे घर नहीं आ सकती तो हम आपसे रिश्तेदारी ही क्यों रखें.