वाराणसी: जब-जब भारत की आजादी की लड़ाई का जिक्र होगा, चंद्रशेखर आजाद के योगदान का भी जिक्र होगा. क्रांतिकारियों की धरती वाराणसी से उनके जीवन का अटूट रिश्ता रहा है. यहीं वे चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने गए. हाल ही में एक बार फिर चंद्रशेखर आजाद और वाराणसी में बीते उनके जीवन के अहम हिस्से की चर्चा हुई.  इसी साल मई में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी की सेंट्रल जेल में चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा का अनावरण किया. ख़ास बात यह रही कि इसी जगह पर उनका नाम आजाद पड़ा था. उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों द्वारा दी गई सजा भुगती थी.



उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और मां का नाम जगरानी था. किशोरावस्था में ही चंद्रशेखर संस्कृत पढ़ने के लिए काशी आए थे. उस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरे देश में असहयोग आंदोलन चल रहा था. जलियावाला बाग़ में प्रदर्शन कर रहे निहत्थे लोगों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसा, उन्हें मौत के घाट उतार दिया था. इसे लेकर भी चंद्रशेखर के किशोर मन पर काफी प्रभाव पड़ा था. उसी दौरान वाराणसी के दशाश्वमेध घाट इलाके में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार के लिए लोग प्रदर्शन कर रहे थे. ब्रिटिश हुकुमत की पुलिस ने वहां पहुंच प्रदर्शनकारियों पर लाठियां भांजनी शुरू कर दी. चंद्रशेखर आजाद भी वहीं मौजूद थे. निहत्थे लोगों पर लाठियां बरसते देख उनसे रहा नहीं गया. उन्होंने सड़क पर पत्थर उठाकर दरोगा के सिर पर दे मारा. पुलिस ने चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया.



पुलिस ने चंद्रशेखर को मजिस्ट्रेट खरेघाट पारसी के सामने पेश किया. मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर से नाम पूछा तो जवाब मिला आजाद, उन्होंने मां का नाम धरती मां, पिता का नाम स्वतंत्रता और अपना घर जेल को बताया. एक किशोर के यह तेवर देखकर मजिस्ट्रेट ने पंद्रह बेंतें मारने की सजा सुनाई थी. इस बयान के बाद ही चंद्रशेखर तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ गया. उन्हें जेल ले जाया गया जहां उन पर सजा के मुताबिक बेंतें बरसाई गईं. इसी जगह पर आज शिवपुर सेंट्रल जेल स्थित है और उस जगह पर चंद्रशेखर आजाद का स्मारक बना हुआ है. सजा के बाद जेल से आजाद होने पर काशी के लोग उमड़ पड़े और उन्हें कंधे पर बिठा लिया. इस जगह पर लगे शिलापट्ट पर बालक चंद्रशेखर तिवारी के आजाद बनने की पूरी कहानी लिखी हुई है.



चंद्रशेखर की इस बहादुरी और उनके इस बयान के चर्चे पूरी काशी में थे. इस घटना के बाद काशीवासियों की एक मीटिंग ज्ञानवापी में हुई. यहां सर्वसम्मति से सभी ने उनका नया नामकरण किया. इसी के बाद से वे चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने गए. काशी शहर में जगह-जगह चंद्रशेखर आजाद की निशानियां मिल जाएंगीं. शिवपुर स्थित वाराणसी सेंट्रल परिसर के बाहर उनकी प्रतिमा लगी हुई है , इसी जेल में उन्हें बेंत मारने की सजा दी गई थी. इसी तरह लहुराबीर इलाके में उनके नाम पर आजाद पार्क है.


काशी में घटी इस घटना के बाद ही अचानक असहयोग आन्दोलन वापिस ले लिया गया. इसके चलते चंद्रशेखर आजाद की सोच में बड़ा परिवर्तन आया. इसी दौरान वे मन्मथनाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आए. उन्होंने असहयोग आंदोलन के समाप्त होने पर 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी' के सदस्यता ग्रहण कर ली. आगे चलकर वे इस पार्टी के कमांडर-इन-चीफ़ भी बने.