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Saharanpur: नंगे पैर, भूखे-प्यासे पैदल निकल पड़े अपने गांव की ओर, मजदूरों के ये आंसू बहुत कुछ कहते हैं
सहारनपुर में छलका भूखे प्यासे मजदूरों का दर्द. मजदूर अपनी घर की ओर पैदल ही निकल पड़े हैं. मजदूरों ने अपनी दर्दभरी दास्तान सुनाई.
![Saharanpur: नंगे पैर, भूखे-प्यासे पैदल निकल पड़े अपने गांव की ओर, मजदूरों के ये आंसू बहुत कुछ कहते हैं This group of laborers from Haryana reached Saharanpur after two days Saharanpur: नंगे पैर, भूखे-प्यासे पैदल निकल पड़े अपने गांव की ओर, मजदूरों के ये आंसू बहुत कुछ कहते हैं](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/05/14024628/saharanpur-majboor4.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
सहारनपुर: सफर की मुश्किलें जाकर जरा तुम उनसे पूछो, जो हजारों मील पैदल चलके घर जा रहे हैं. सिर पर सुलगती धूप, पांव में न चप्पल, करो मत बात रोटी की, वो पत्ते खा रहे हैं. ये पंक्तियां आज उन मजदूरों पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं. जो पैदल सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर अपने घरों की ओर जा रहे हैं. 50 दिनों से चल रहे लॉकडाउन में दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने मौत का मंज़र नजदीक से देखा है, लेकिन हमारा देश इस खतरनाक बीमारी के साथ-साथ मजदूरों के पलायन से भी जूझ रहा है. कोरोना काल में सबसे ज़्यादा अगर किसी तबके को जान-माल का नुकसान हुआ है, तो वो है देश का गरीब और मजदूर.
![saharanpur-majboor](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/05/14024813/saharanpur-majboor.jpg)
लॉकडाउन में सड़क पर सिर पर कपड़ों की गठरी, हाथ में थैला, चेहरे पर रास्तों से मिलने वाले दर्द की झलक लिए जो लोग दिखाई देंगे, वो देश के गरीब और मजदूर हैं, जो लॉकडाउन के बाद बंद हुए कारोबार और वक्त की मार से परेशान होकर भूखे-प्यासे तेज धूप, आंधी-तूफान व बारिश का सामना करते हुए अपनी जान जोखिम में डालकर हजारों किलोमीटर से साइकिल या फिर पैदल सफर पर निकल पड़ा है. छालों से भरे नंगे पांव हो या सामान का बोझ झेलता कमजोर जिस्म, दर्द में तड़प कर बार-बार अपने खून को निहारती ममता भरी आंखें हो या फिक्र में माथे पर आने वाले ज़िम्मेदारी की लकीरें हों, सबका गवाह वो रास्ता है, जिसने इनकी तकलीफों को देखा है.
![saharanpur-majboor1](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/05/14024844/saharanpur-majboor1.jpg)
दो दिन पहले हरियाणा से चले मजदूरों की ये टोली यमुना पार कर सहारनपुर के एक पहुंची, तो मजदूरों के साथ छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं को देख गांव वालों का दिल पसीज गया. जिसके बाद ग्राम प्रधान के आह्वान पर ग्रामीणों ने पूरी टोली को भोजन कराया. वहीं, गांव से डॉक्टर बुलाकर जरूरमंदों के लिए दवाई की व्यवस्था करवाई.
मजदूरों की टोली में शामिल महिला मीना 17 साल पहले पति के साथ यूपी के कुशीनगर से आकर यमुनानगर रहने लगी थी. प्लाइवुड इंडस्ट्री में प्रतिमाह 15000 रुपये की पगार ले रहे मीना के पति लॉकडाउन से पहले होली पर छुट्टी लेकर घर गए थे. महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन में पति वापस नहीं आ पाए. "काम नहीं तो खाना नहीं" कहकर फैक्ट्री मालिक ने हाथ खड़े कर दिए, तो कुछ पैसे घर से मंगाकर जैसे तैसे गुजारा करने लगी. पैसे खत्म हुए तो अपने तीनों बच्चों को साथ लेकर उस सफर पर निकल पड़ी, जिसे पूरा करने में समय कितना लगेगा, इसका पूरी टोली को अंदाजा नहीं है. मीना ने बताया कि बच्चे यमुनानगर के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, इसलिए लॉकडाउन खुलते ही न चाहते हुए भी वापस आना उनकी मजबूरी होगी.
![saharanpur-majboor2](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/05/14024919/saharanpur-majboor2.jpg)
यूपी सरकार द्वारा तमाम तरह की व्यवस्थाएं दूर दराज़ से आ रहे गरीब और मजदूर पेशा लोगों के लिए किए जाने का दावा किया जा रहा है. जिसकी तारीफ ये लोग भी कर रहे हैं, लेकिन घर भेजने में हरियाणा सरकार की उदासीनता इन मजदूरों को बार-बार खिन्न कर देती है. गोपालगंज के मुन्ना 9 माह पहले यमुनानगर आकर राजमिस्त्री के पास 300 रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी करते थे. लॉकडाउन में काम बंद होने के बाद रुपये पैसे की किल्लत हुई, तो मकान मालिक और राशन दुकानदार परेशान करने लगे. बस द्वारा घर जाने के लिए सरकार से अर्जी लगाई, तो तारीख पर तारीख मिलने लगी. जिसके बाद मुन्ना पैदल रास्ते निकलने का संकल्प लेकर गंतव्य की ओर निकल पड़े और अब तभी आएंगे जब सब कुछ ठीक हो जाएगा.
![saharanpur-majboor3](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/05/14024957/saharanpur-majboor3.jpg)
सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर की रहने सुशीला ने चेहरे पर लाचारी लिए बताया कि लॉकडाउन में पैसे की कमी से घर में राशन खत्म हुआ, तो ठेकेदार ने भी विवशता की बात कहते हुए जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया. हरियाणा सरकार ने घर जाने के लिए बसों आदि की कोई व्यवस्था नहीं की. ऐसे में पैदल घर जाना उनकी मजबूरी भी है. कोरोना के चलते हालात कब काबू होंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है. फिलहाल इन गरीब मजदूरों की स्थिति देश और राज्यों की सरकारों के काबू में आते नहीं दिख रही हैं. जिसकी बयानगी के लिए ये भूखे-प्यासे मौसम और वक़्त की मार झेल रहे ये तड़पते मज़दूर काफी हैं.
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अनिल चमड़ियावरिष्ठ पत्रकार
Opinion: 'आस्था, भावुकता और चेतना शून्य...', आखिर भारत में ही क्यों होती सबसे ज्यादा भगदड़ की घटनाएं
Opinion