नई दिल्ली: तीन तलाक बिल पर एक बार फिर घमासान मचने की उम्मीद है. कांग्रेस के बाद अब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने कहा है कि वह इस बिल के मौजूदा प्रावधानों के खिलाफ है. यहां ध्यान रहे कि जेडीयू बिहार और केंद्र में बीजेपी के साथ है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में दोनों के बीच मतभेद खुलकर सामने आए हैं.


जेडीयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के मंत्री श्याम रजक ने गुरुवार को कहा, "जेडीयू इसके (तीन तलाक बिल) खिलाफ है और हम इसके खिलाफ लगातार खड़े रहेंगे." जेडीयू नेता ने कहा कि तीन तलाक एक सामाजिक मुद्दा है और इसे सामाजिक स्तर पर समाज के द्वारा सुलझाया जाना चाहिए. मोदी कैबिनेट ने बुधवार को ही तीन तलाक बिल को दोबारा मंजूरी दी है.


इसके पहले नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर तीन तलाक विधेयक का विरोध किया था. नीतीश कुमार ने पिछले दिनों कहा था कि अनुच्छेद 370 को हटाने, समान नागरिक संहिता लागू करने और अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कराने के मामले या तो संवाद के जरिए सुलझाए जाएं या अदालत के आदेश के जरिए.


जेडीयू का बीजेपी से मतभेद: बिहार में लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की है. इसके बावजूद जेडीयू मोदी कैबिनेट में शामिल नहीं हुई. ऐसा माना जा रहा है कि जेडीयू एक से अधिक मंत्री पद मांग रही थी और इसके लिए बीजेपी तैयार नहीं थी. नीतीश कुमार ने मोदी कैबिनेट के शपथ के बाद बिहार में कैबिनेट का विस्तार किया लेकिन बीजेपी के मंत्रियों को शामिल नहीं किया. इसके बाद जेडीयू ने बिहार को छोड़कर सभी राज्यों में बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ने का एलान किया है.


तीन तलाक बिल में अभी भी कुछ मुद्दे हैं जिनका हम विरोध करेंगे- कांग्रेस


कांग्रेस भी विरोध में: कांग्रेस ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि वह इस बिल के मौजूदा प्रावधानों के खिलाफ है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ''हमने तीन तलाक पर कई बुनियादी बातें उठाई थी. उनमें से कई मुद्दों पर सरकार ने हमारी बात मानी. अगर सरकार पहले तैयार हो जाती तो बहुत समय बच जाता.'' सिंघवी ने कहा, ''अभी भी एक या दो मुद्दे हैं जैसे परिवार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना. इन मुद्दों पर हम चर्चा करेंगे और विरोध भी करेंगे.''


तीन तलाक बिल सोमवार (17 जून) से शुरू हो रहे संसद के सत्र में पेश किया जाएगा और यह फरवरी में जारी एक अध्यादेश का स्थान लेगा. पिछले महीने 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ यह विवादित विधेयक निष्प्रभावी हो गया था क्योंकि यह संसद द्वारा पारित नहीं हो सका और यह राज्यसभा में लंबित था.


पिछले साल दिसंबर में तीन तलाक विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिली थी. लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के चलते है यह राज्यसभा में लंबित रह गया और यह विधेयक निष्प्रभावी हो चुका है. राज्यसभा में मोदी सरकार के पास संख्याबल की कमी है. नियम के तहत राज्यसभा में पेश विधेयक लोकसभा भंग होने के बाद भी निष्प्रभावी नहीं होते हैं. लोकसभा द्वारा पारित और राज्यसभा में लंबित विधेयक हालांकि निष्प्रभावी हो जाते हैं.


विपक्षी पार्टियां तीन तलाक की परंपरा को दंडनीय अपराध बनाने वाले प्रस्ताव का विरोध कर रही है. विपक्ष का दावा है कि अपनी पत्नी को तलाक देने वाले पति के लिए जेल की सजा कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश 2019 (तीन तलाक बिल) के तहत, एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी होगा और ऐसा करने वाले पति के लिए तीन साल के कारावास का प्रावधान रहेगा.