तीन तलाक पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख गैर इस्लामिक क्यों ?
नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक बार में तीन बार तलाक कहना सिर्फ इस्लामिक ही नहीं है बल्कि कुरान और हदीस में इसे मंजूरी भी दी गई है.
''इस्लाम और मुसलमान पर्सनल लॉ पर हमला करने का मौका''
इस मुद्दे पर दुनियाभर में गंभीर बहसें हुई हैं और ये सभी प्रमाणित हैं लेकिन अरब के देशों सहित एआईएमपीएलबी इन घटनाक्रमों को समझने को तैयार नहीं है. बोर्ड का कई मुद्दों पर रुख मनमाना और तर्कसंगत रहा है और वह यह जानने में असमर्थ रहे हैं कि इस्लामिक न्यायशास्त्र की अस्पष्ट व्याख्या नकारात्मक साबित होगी और इससे इस्लाम विरोधी ताकतों को इस्लाम और मुसलमान पर्सनल लॉ पर हमले करने का मौका मिल जाएगा.
आपको पूरी कुरान पढ़ने के बाद तीन तलाक का कोई उल्लेख नहीं मिलेगा. यह एक विवेकहीन पति द्वारा लिया गया फैसला है. तीन तलाक आमतौर पर गुस्से में लिया जाता है, जब शख्स फैसला लेने की क्षमता खो देते हैं और फिर इसे कानूनी अमलीजामा पहनाना गैर इस्लामिक है.
कुरान में जहां भी तलाक का उल्लेख है तो इसमें लंबी प्रक्रिया का उल्लेख है जो पति को इसका पूरा नियंत्रण नहीं दे देता. यह पति को ही अपनी मर्जी से फैसला लेने और परिवार को नष्ट करने की मंजूरी नहीं देता. इस पर एआईएमपीएलबी का कहना है कि तीन तलाक को कुरान और हदीस में मंजूरी दी गई है.
कुरान में तलाक की लंबी प्रक्रिया का उल्लेख
कुरान, सुरह में तलाक की प्रक्रिया का उल्लेख करता है. कुरान में तलाक की लंबी प्रक्रिया का उल्लेख है और इस पूरी अवधि में पत्नी के घर से जाने की मनाही है ताकि जोड़े को सुलह करने का मौका मिल जाए. एक ही सुरह में कुरान के अनुरूप इस निश्चित अवधि के दौरान जोड़े को यह तय करना होगा कि क्या वह एक साथ रहना चाहता है या अलग-अलग रहना चाहता है.
कुरान में एक अन्य स्थान पर दो बार तलाक के बारे में कहा गया है और जोड़े को यह तय करने को कहा गया है कि क्या वे एक-साथ रहना चाहते हैं. यदि उन्होंने अलग होने का फैसला कर लिया है तो वे उन्हें सौहार्दपूर्ण ढंग से अलग होने का आदेश देते हैं और पति द्वारा पत्नी के वैध अधिकारों का हनन करने पर भी मनाही है. कुरान में पति और पत्नी में सुलह नहीं होने की स्थिति में मध्यस्थ की सहायता लेने का भी हवाला दिया गया है.
कुरान में कहीं भी एक बार में तीन तलाक का जिक्र नहीं है. इसके अलावा, कुरान में मोहम्मद के जीवन के स्पष्ट साक्ष्य हैं जब वह अपने सहयोगी अब्दुल्ला बिन अब्बास से अपनी पत्नी को वापस लाने को कहता है क्योंकि अब्दुल्ला ने अपनी पत्नी को उचित तरीके से तलाक नहीं दिया था.
तलाक की सिर्फ दो बार ही मंजूरी
कुरान कहता है, "तलाक की सिर्फ दो बार ही मंजूरी दी गई है. इसके बाद पक्षों को या तो समान शर्तो पर एक-साथ आ जाना चाहिए या फिर सौहार्दपूर्ण तरीके से अलग हो जाना चाहिए. पुरूषों के लिए पत्नी से उपहार वापस लेना सही नैतिक कदम नहीं है."
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का सिर्फ एक बार में तीन तलाक पर पक्ष मनमाना और असंगत नहीं है बल्कि तलाक के समय मुआवजे को लेकर भी यह असंगत है. जब कई वर्षो के बाद पुरूष एक स्त्री को तलाक देता है तो यह कहा जाता है कि पति शादी के समय तय मेहर (विवाह राशि) की ही अदायगी करेगा. शाह बानों के मामले में उनके पति ने 30 से अधिक वर्ष के विवाह के बाद सिर्फ 3,000 रुपये ही हर्जाने के तौर पर दिए.
कुरान में उन लोगों का भी जिक्र है जिन्हें परिस्थितिजन्य हालात में तलाकशुदा पत्नी को पैसे देने के लिए विवश होना पड़ता है. ऐसी स्थिति में पति की वित्तीय हालत के अनुरूप पैसे का भुगतान किया जाएगा.