वाराणसी: भागती-दौड़ती जिंदगी में रिश्तों के मायने बदल चुके हैं. युवा पीढ़ी के पास अब बुजुर्गों के लिए समय नहीं है. ऐसे में भगवान शंकर की नगरी कही जाने वाली काशी में दो बेटों ने अनोखी मिसाल पेश की है. ये दोनों बेटे 90 साल की अपनी बूढ़ी मां को कावंड़ पर लेकर पंचक्रोशी परिक्रमा करवा रहे हैं.


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पक्का महाल की रहने वाली 90 साल की शीला देवी अब चल फिर पाने में मुश्किल होती है. पुरुषोत्तम मास शुरू होने पर काशी में पंचकोशी यात्रा शुरू हुई तो उन्होंने भी अपने बेटों से पंचकोशी यात्रा की इच्छा जाहिर की. उनके बेटे शिवेश और शंकर ने खुशी-खुशी मां की इच्छा पूरी करने को तैयार हो गए.

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आने-जाने वाले देते हैं भरपूर आशीर्वाद
बीते तीन दिनों से मां को कांवड़ में लेकर ये दोनों भाई काशी के विभिन्न इलाकों से गुजर रहे हैं. जो भी इन भाइयों को मां को कांवड़ में लिए जाते देखता है, वह गदगद हो जाता है. रास्ते में मिलने वाली बुजुर्ग महिलाएं दोनों भाइयों को जीभर कर आशीर्वाद देती हैं. दोनों भाइयों में शिवेश सात साल की उम्र से पंचकोशी परिक्रमा करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि इतने वर्षों से पंचकोशी परिक्रमा करने का फल महादेव ने दिया है कि मां को अपने कंधों पर लेकर परिक्रमा करने का सौभाग्य मिला है.

तपती जमीन पर बिना थके चलते जा रहे हैं दोनो भाई
शिवेश कहते हैं कि उनकी मां ने नौ महीने अपनी कोख में पाला है. शायद उन्हें इस बात की उम्मीद रही होगी कि बड़े होकर उनका सहारा बनेंगे. यही कारण है कि दोनों बेटे 45 डिग्री टेम्परेचर में भी घाटों और गलियों के उबड़-खाबड़ रास्तों पर मां को पंचकोशी परिक्रमा कराने के लिए नंगे पांव, बिना थके चले जा रहे हैं.



11 मील की होती है ये यात्रा
इन दोनों भाइयों का मां के प्रति प्रेम काशी के उस इतिहास और परम्परा की याद दिला रहा है, जिसके लिए काशी जानी जाती है. दुनिया भर में काशी अपनी धार्मिकता के लिए जानी जाती है. काशी में पंचकोशी परिक्रमा का बहुत बड़ा महत्व है. पुरुषोत्तम मास में की जाने वाली यह यात्रा पांच कोस यानि (11 मील) के घेरे में होती है. पंचकोशी यात्रा की शुरुआत महाश्मशान पर स्थिति मणिकर्णिका कुंड से होती है. यह कुंड एक छोटा सा जलाशय है जो प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है. मान्यता है कि यह कुंड वाराणसी में बहनेवाली गंगा से भी प्राचीन है. इस कुंड को शिव, शक्ति और विष्णु से जोड़कर मान्यता दी जाती है. इसीलिए हिन्दू धर्म के तीनों संप्रदायों के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताया जाता है.