गोरखपुर: जिन हाथों में था भीख मांगने का कटोरा, उन नन्हें-मुन्ने हाथों में पकड़ा दी कलम
गोरखपुर के एक युवा के जज्बे को कोई भी सलाम करने से नहीं चूक सकता. ये युवा ऐसे बच्चों के हाथों में कलम थमाकर साक्षर बनाने में जुटे हैं, जिन हाथों में पहले भीख मांगने का कटोरा था.
गोरखपुर: भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समाज के अंतिम व्यक्ति को भी साक्षर बनाने की मुहिम में लगे हुए हैं. ‘स्कूल चलो अभियान’ जैसी केन्द्र सरकार की अनेक योजनाएं ‘क’ ’ख’ ’ग’ ‘घ’ का ककहरा बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को साक्षर की मुहिम का हिस्सा है. गोरखपुर के एक युवा के जज्बे को कोई भी सलाम करने से नहीं चूक सकता. ये युवा ऐसे बच्चों के हाथों में कलम थमाकर साक्षर बनाने में जुटे हैं, जिन हाथों में पहले भीख मांगने का कटोरा था.
गोरखपुर के अंधियारीबाग रामलीला मैदान के पास रहने वाले गंगा प्रसाद पाण्डेय के 25 वर्षीय पुत्र मित्र प्रकाश पाण्डेय ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की है. वे जब 2011 में बीए प्रथम वर्ष के छात्र रहे हैं, तो विश्वविद्यालय आते-जाते बांसफोड़ समुदाय के लोगों को देखते रहे हैं. बांसफोड़ समुदाय के लोगों के बच्चे सड़क पर भीख मांगते अक्सर ही प्रकाश को दिख जाते थे. उनके मन में उन बच्चों के लिए कुछ करने की ललक हमेशा रही. लेकिन, अध्ययन-अध्यापन में व्यस्त होने के कारण वे उनके लिए कुछ कर नहीं पा रहे थे.
एक राहगीर की व्यथा ने प्रकाश को दिया था हौसला एक दिन वे विश्वविद्यालय से बैंकरोड होते हुए घर जा रहे थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात वर्ष 2013 में बांसफोड़ समुदाय के युवक मनोज से हुई. मनोज भारत सरकार के कागजातों में भारत का नागरिक तो था. लेकिन, सरकारी सुविधाओं के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था. अनपढ़ होने के कारण न तो उसे अपने और न ही बच्चों के अधिकारों के बारे में पता था. मनोज भी कई पीढि़यों से बैंक रोड पर सड़क के किनारे परिवार रहने को मजबूर था. प्रकाश का मन उसकी व्यथा सुनकर द्रवित हो गया. उन्होंने उसी दिन से बांसफोड़ समुदाय के बच्चों को साक्षर बनाने और उनके लिए कुछ करने की मुहिम शुरू कर दी.
बांसफोड़ समुदाय के लोगों की मदद करते हैं प्रकाश
प्रकाश ने मनोज की मदद की और उसका आधार कार्ड, राशन कार्ड और बैंक में खाता भी खुलावाया. उसके बाद से प्रकाश बांसफोड़ समुदाय के लोगों के मित्र बन गए. प्रकाश जो भी कहते बांसफोड़ समुदाय के लोगों ने उनकी बातों की कभी अनदेखी नहीं की. उन्होंने शहर के एचएन सिंह चौराहा, झंकार रोड, नौसड़ पर रहने वाले बांसफोड़ समुदाय के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. वे पहले तो अकेले ही इस काम को करना शुरू किए. लेकिन, बाद में उनके इस नेक काम से प्रभावित होकर उनके दोस्त भी उनकी इस मुहिम का हिस्सा बन गए. जब उन्होंने परास्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली, तो वे नौकरी के लिए प्रयास करने लगे और कुछ दिनों तक तैयारी में जुट गए.
बच्चों को पढ़ाने के साथ कॉपी-किताब और कलम भी उपलब्ध कराता हैं प्रकाश लेकिन, तैयारी और नौकरी करने की चाह उन पर हावी नहीं हो पाई. वे बताते हैं कि वे सोचने लगे कि जब उन्होंने एक लक्ष्य बनाकर इन बांसफोड़ समुदाय के बच्चों को साक्षर बनाने और उन्हें किसी लायक बनाने की जिद ठानी है, तो फिर उनके इस सपने का क्या होगा. नतीजा वे फिर इस काम में जुट गए. प्रकाश की माता श्रीमती लक्ष्मी पाण्डेय का स्वर्गवास हो चुका है. उनके पिता प्राइवेट जॉब करते हैं. माता-पिता की इकलौती संतान होने के बावजूद उनके पिता गंगा प्रसाद पाण्डेय उनके इस नेक कार्य में उनका काफी सहयोग करते हैं. प्रकाश इन बच्चों को पढ़ाने के साथ कॉपी-किताब और कलम भी उपलब्ध कराते हैं.
बांसफोड़ समाज के उद्धार को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया पहले वे घर पर ही कोचिंग से अपना खर्च निकाल लेते थे. लेकिन, अब वे दूसरे शिक्षकों से इसे संचालित करवा रहे हैं. उन्होंने बांसफोड़ समाज के उद्धार को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है. वे कहते हैं कि बांसफोड़ समुदाय के लोग कई पीढ़ियों से शहर के अलग-अलग स्थानों पर सड़क किनारे रहने को मजबूर हैं. ये समुदाय भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. जो हिन्दू विवाह में प्रयुक्त डाल जैसी अन्य पवित्र सामग्रियों से लेकर मृत्यु के उपरांत शव की अर्थी तक के निर्माण में सदियों से कार्यरत है.
बांसफोड़ समाज को मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम में लगे हुए हैं उत्तर भारतीय समाज का इतना महत्वपूर्ण अंग होने के बावजूद यह समाज सदियों से सड़क किनारे जीवन को सर्वाधिक तिरस्कृत स्थिति में जीने को मजबूर है. हज़ारों की संख्या में अपने मौलिक अधिकारों से अनभिज्ञ और वंचित बसफोड़ समुदाय के लोग जाड़ा, गर्मी और बरसात के सीजन में सड़क पर रहने को मजबूर हैं. हांड़ कंपाती ठंड हो, चाहे गर्मी की तपती दोपहरी और चाहे बरसात. इस समुदाय के लोग अपने बच्चों के साथ सड़क पर ही जीवन गुजर-बसर करते हैं. ये शहर के विभिन्न स्थानों पर सड़क किनारे अपमानित जीवन जीने को बाध्य हैं. इनका खाना भी सड़क पर ही बनता है. इसीलिए वे बांसफोड़ समुदाय को शिक्षारूपी शक्तिशाली उपकरण का उपयोग करके उन्हें समाज में सम्मान और न्याय दिलाकर मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम में लगे हुए हैं.
500 बच्चों को एक अभियान चलाकर सरकारी विद्यालयों में दाखिला करा चुके हैं प्रकाश वे बताते हैं कि उन्होंने बांसफोड़ समुदाय के भीख मांगने वाले लगभग 500 बच्चों को एक अभियान चलाकर सरकारी विद्यालयों में दाखिला करा चुके हैं. पहले जिन हाथों में कटोरा था, आज उन नन्हें-मुन्ने हाथों में कलम और कॉपी-किताबें हैं. उन्होंने पिछड़े समाज में प्रचलित बाल विवाह की कुप्रथा के विरुद्ध समाज में जागरूकता लाने का अभियान भी छेड़ रखा है. वे अपने सहयोगियों और समाज के लोगों के साथ मिलकर लगातार इस कुप्रथा को रोकने के प्रयास में जुटे हुए हैं. अभी तक वे 13 बाल विवाह को रोक चुके हैं.
प्रकाश को कई बार सम्मानित किया जा चुका है उन्हें समाज को नई दिशा देने के लिए किए गए कार्यों के लिए राम प्रसाद बिस्मिल सम्मान, बाबा साहब अम्बेडकर सम्मान, रेड पर्ल्स सम्मान, नगर निगम और नगर विधायक के हाथों सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा उन्हें शहर की विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न सम्मान प्रदान किये गए हैं. 10 जून को उन्हें केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ल के हाथों लोकमत सम्मान प्राप्त हुआ है.
भारत के युवा अगर ऐसे ही समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा खुद के अंदर पैदा करें. उनके लिए कुछ करने चाह रखें. तो वो दिन दूर नहीं जब भारत साक्षरता के पायदान पर विश्व में पहले स्थान पर पहुंचकर पूरी दुनिया में साक्षर युवा पीढ़ी के रूप में जाना-पहचाना जाएगा.