यूपी: कानून बनने के बाद तीन तलाक के मामलों में हुई वृद्धि, तीन साल की सजा का है प्रावधान
तीन तलाक बिल को जुलाई में लोकसभा में तीसरी बार पेश किया गया और इसे 25 जुलाई 2019 को लोकसभा से पास करा लिया गया. आखिरकार तीसरी कोशिश में 30 जुलाई 2019 को राज्यसभा में सरकार तीन तलाक बिल पास कराने में सफल हुई. सदन में 99 वोट बिल के पक्ष में पड़े और 84 वोट बिल के विरोध में पड़े है.
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लखनऊ: तीन तलाक पर भले ही नया कानून बिल पास हो गया हो लेकिन तीन तलाक देने वालों में कोई कानून का खौफ नही हैं. अकेले उत्तर प्रदेश में ही तीन तलाक के चार मामले सामने आए हैं. शामली, एटा, हापुड़ जिले में तीन तलाक के मामले हुए हैं. इससे पहले बाराबंकी, कुशीनगर जौनपुर और मेरठ में ऐसे मामले सामने आए थे.
मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत तीन तलाक को अपराध के अंतर्गत रखा गया है लेकिन इसके बावजूद इसके लागू होने से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में तीन तलाक के मामलों कमी नहीं आई है. हालिया हफ्तों में राज्य में ऐसे मामलों में तेजी आई है.
शामली जिले की एक महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पति ने इस महीने की शुरुआत में उसे फोन पर तीन तलाक दिया था. पीड़िता ने कहा, "मेरे पति ने मुझे फोन पर तीन तलाक दिया. मेरे पास यह साबित करने के लिए उसकी कॉल रिकॉडिग है. मुझे न्याय चाहिए. अगर मुझे न्याय नहीं दिया गया तो मैं खुद को खत्म कर दूंगी."
एक अन्य घटना में एक महिला ने दावा किया है कि उसके पति ने इस महीने की शुरुआत में एटा में चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) अदालत के परिसर के अंदर तीन तलाक दिया था. दंपति एक मामले को लेकर अदालत में आए थे.
इसी तरह हापुड़ जिले में भी एक महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पति ने उसकी दहेज की मांगों को पूरा करने में असमर्थ होने पर उसे तीन तलाक दे दिया.
नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया, "निस्संदेह तीन तलाक के मामलों में तेजी आई है, जो आश्चर्यचकित करने वाला है, क्योंकि इस मामले को लेकर पहले से ही कानून लागू है. हमें इसके पीछे कोई खास कारण नहीं दिख रहा, सिवाय इसके कि इस समुदाय के पुरुष प्रतिशोधवश ऐसा कर रहे हैं."
1 अगस्त को लागू हुए कानून के अनुसार, एक बार में तीन तलाक देने पर पति को तीन साल की सजा हो सकती है. तब से राज्य भर में कानून का उल्लंघन कर तीन तलाक के तीन दर्जन से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. पुलिस को सूचित किए गए मामलों में कार्रवाई भी धीमी रही है.
एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने बताया, "कुछ मामलों में परिवार वाले (खासकर महिला पक्ष) ये सोच कर कार्रवाई नहीं करते हैं कि शायद दंपति के बीच सुलह हो जाए. वहीं अन्य मामलों में कार्रवाई से बचने के लिए पुरुषों ने तीन तलाक देने की बात से ही इनकार कर दिया."
वहीं एक मुस्लिम महिला कार्यकर्ता का कहना है कि तीन तलाक के मामलों में तेजी मुस्लिम पुरुषों के बीच बढ़ते आक्रोश का परिणाम है, जिन्हें ऐसा लगता है कि उनसे उनके अधिकारों को छीन लिया गया है.
कार्यकर्ता ने कहा, "अगर पुलिस मामले में जल्द कार्रवाई करती है, तो यह कानून भविष्य में एक समाधान के रूप में काम करेगा."
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