लखनऊ: ‘जिसको जहां जाना हो, चले जायें’, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस बयान की बड़ी चर्चा है. ये बात उन्होंने संसद में पार्टी के सांसदों की बैठक में कही. आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा ? किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा है. सब अपने अपने हिसाब से अखिलेश के इस बयान का मतलब ढूंढ रहे हैं. राज्य सभा सांसद नीरज शेखर पार्टी छोड़ कर बीजेपी में जा चुके थे. राजनीतिक गलियारों में तरह तरह की ख़बरें चल रही थीं. कहीं ये दावा किया जा रहा था कि एसपी के चार सांसद बीजेपी जा सकते हैं. तो कोई कह रहा था कि तीन एमपी समाजवादी पार्टी छोड़ सकते हैं.


इसके साथ ही कुछ नाम भी चर्चा में थे. अखिलेश यादव इसी बात पर भड़के हुए थे. जब बैठक में एक एमपी ने यही मामला उठा दिया. तो अखिलेश फट पड़े. उन्होंने कहा कि जिसको जहां जाना हो चले जायें और कान खोल कर सुन लें. मैं किसी को रोकने वाला नहीं हूं. अखिलेश के इतना कहते ही सांसदों की बैठक में सन्नाटा छा गया.


लगातार मिल रहे राजनीतिक झटकों से अखिलेश यादव परेशान हैं. अपने कट्टर विरोधी मायावती से मिल कर चुनाव लड़े. लेकिन समाजवादी पार्टी को कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बीएसपी ने चुनाव बाद ही अखिलेश पर तमाम आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ लिया. उससे पहले वे कांग्रेस के साथ मिल कर विधानसभा चुनाव हार चुके थे. परिवार में मचे घमासान से भी कम नुक़सान नहीं हुआ था. अखिलेश सारे प्रयोग कर चुके थे. अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ताक़तवर बीजेपी से अपना घर बचाने की है. एक-एक कर कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. अब ख़बरें आ रही हैं कि समाजवादी पार्टी के कम से कम तीन एमपी पाला बदल सकते हैं. सांसद होने के बावजूद अखिलेश दिल्ली के बदले लखनऊ में डेरा डाले हुए हैं.


समाजवादी पार्टी के सभी एमपी को सवेरे दस बजे संसद पहुंचने के लिए कहा गया था. ये बताया गया था कि सब गांधी जी की मूर्ति के पास इकट्ठा होंगे. सांसदों से कहा गया था कि अखिलेश यादव भी मौजूद रहेंगे. उनकी अगुवाई में सोमवार 22 जुलाई को विरोध प्रदर्शन होगा. यूपी के सोनभद्र में 10 लोगों की मौत पर योगी सरकार को घेरा जाएगा. समाजवादी पार्टी के सांसद जब पहुंचे तो देखा वहां तो कांग्रेस के नेता पहुंचे हुए हैं. एसपी के एमपी इंतज़ार करते रहे लेकिन अखिलेश यादव नहीं आए. वे तो लखनऊ में थे. किसी को कुछ पता नहीं, आख़िर ऐसा क्यों हुआ?


लोकसभा में समाजवादी पार्टी के 5 सांसद हैं. मुलायम सिंह यादव की तबियत ख़राब रहती है. इस बार अखिलेश यादव भी आज़मगढ़ से चुनाव जीत कर आए हैं. लेकिन अब तक संसद में वे मौन रहे हैं. एक भी सवाल नहीं उठाया है. अखिलेश एक दो बार संसद आए भी, तो कुछ नेताओं से मिल कर लौट गए. रामपुर के सांसद आज़म खान ही चर्चा में रहे हैं. जबकि राज्य सभा में पार्टी के 12 सांसद हैं. संसद में एक तरह से पार्टी नेतृत्व विहीन हो गई है. रामगोपाल यादव भी कम एक्टिव रहते हैं.


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