लखनऊ: यूपी में बीजेपी के नेता आपस में एक ही सवाल पूछते हैं. क्या इसी तैयारी से हम बीएसपी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन से मुक़ाबला करेंगे? लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पार्टी का नेतृत्व चिंतित है. हाल में ही दिल्ली में अमित शाह के घर पर बड़े नेताओं की बैठक हुई, देर रात तक मंथन हुआ. लेकिन इसका असर ग्राउंड पर नहीं है. संगठन और सरकार में तालमेल की कमी है. संघ भी इन दोनों के बीच समन्वय बनाने में नाकाम रही है. बीजेपी की कई बैठकों में नेता आपस में ही भिड़ जाते हैं.
ताज़ा मामला बस्ती जिले का है जहां प्रभारी मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बैठक बुलाई थी. कमिश्नर, डीएम, एसपी समेत कई अफ़सर मौजूद थे. इलाक़े के सांसद हरीश द्विवेदी और पांचों विधायकों को भी बुलाया गया था. मीटिंग शुरू होते ही लोकसभा एमपी ने कप्तानगंज के एमएलए चंद्र प्रकाश शुक्ल की शिकायत शुरू कर दी. देखते ही देखते दोनों नेता भिड़ गए. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. सांसद और विधायक को बाक़ी नेताओं ने न रोका होता तो शायद नौबत मार पीट तक पहुंच गई होती.
एमपी हरीश द्विवेदी ने विधायक को शहर में न घुसने देने की चुनौती दी. तो एमएलए शुक्ल ने भी जवाबी हमला बोला. बाक़ी अफ़सर चुपचाप बैठे रहे. सांसद हरीश द्विवेदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के आरोप में दो लोगों को थाने बंद करवा दिया था. सवेरे विधायक को इसका पता चला तो उन्होंने दोनों को थाने से छुड़वा दिया. बस इसी बात पर दोनों नेताओं में ठन गई थी.
बीजेपी नेताओं के बीच अनबन और आपसी झगड़ा अब पार्टी के लिए जी का जंजाल बन गया है. ये कहानी हर जिले की है. कहीं मंत्री किसी विधायक से लड़ रहे हैं तो कहीं इलाक़े के सांसद की विधायकों से ठनी हुई है. कोई एक दूसरे पर भरोसा करने को तैयार नहीं है. योगी मंत्रिमंडल आपसी गुटबाज़ी की शिकार है. सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के अपने-अपने समर्थक हैं. समर्थक अपने अपने नेताओं की मार्केटिंग में लगे हैं. एक मंच पर बैठ कर भी नेता मन से एक नहीं रहते हैं.
कुछ ही महीनों पहले सीतापुर में सांसद और विधायक की हाथापाई भी ख़ूब चर्चा में रही थी. कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को हरा कर उषा वर्मा धौरहरा से एमपी बनी हैं. एक कार्यक्रम को लेकर महोली से बीजेपी एमएलए शशांक त्रिवेदी से उनका झगड़ा हो गया. बस मारपीट ही बची रह गयी है. यूपी में बीजेपी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है. लेकिन घर का झगड़ा और घर का विभीषण कही खेल न बिगाड़ दे. इस बात का एहसास तो सभी नेताओं को है. लेकिन किसी ने कुछ किया नहीं है. ख़तरे की घंटी तो दिल्ली तक में बज चुकी है.